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युगेंद्र अशोक काकडे

#Time

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कुछ सही नही जमाने मे , तुझे देखे जमाना हुआ
बदल गयी हे जमाने की घडीया , तेरा तो बस् बहाना हुआ
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ए-जमाना हसने भी नही देता ,  तेरा इंतज़ार मेरा सहारा हुआ
रूख बदला हे मेरी हालातों ने  , मेरा इश्क़ बंजारा हुआ
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 बडी तकलीफ दे रही हे तेरी याद , एसा  इशारा हुआ
छुपकर मिलता हु तेरी परछाई से , इस लिये इश्क़ दोबारा हुआ
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#काकडे #Time

युगेंद्र अशोक काकडे

#irrfankhan

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इंसानी दिलो में एसे कलाकार जिंदा रेहते हे
चांद एक ही हे तारे हजारों रेहते हे
हरदिन चांद को ही देखा जाता हे
आपसा कोई नही आपको दिल मे रखा जाता हे

🌷भावनीक श्रृद्धांजलि🌷
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#काकडे #irrfankhan

युगेंद्र अशोक काकडे

#sunrays

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एक अंजान राज़ हे , कोयी जानता नही
मे कातिल हु खुद का , पर कोयी मानता नही
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राज़ कि गवाही मे क्या दु , ए-वक्त वकालत का नही
गुलाम हु मजबूरी का , झुठी मेरी मोहब्बत नही
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वक्त का इंतजार हे , ए सिलसिला हे जो कटता नही
वो रोशनी मे सुरज , और मे कभी बुझता नही 
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#काकडे #sunrays

युगेंद्र अशोक काकडे

बताओ ना ???

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चुभ रहा हु मे खुदको , मे तुम्हे भी सताता हु क्या ?
तकिया गिला हो जाता हे , मे तुझे भी रुलाता हु क्या ?
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सोया नही हु कितने दिनोसे , मे तेरे सपनो मे आता हु क्या ?
जख्म से भरा पडा हे दिल , मे तुझे चौट पोहोचाता हु क्या ?
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रुठी हो या मजबूर , मे तुझसे घबराता हु क्या ?
मे तो खुदसे ही हू खफा , तुझसे कभी दूर जाता हु क्या ?
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#काकडे बताओ ना ???

युगेंद्र अशोक काकडे

#Hope #Love

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चिल्ला रही हे खामोशियां , ए केसी परेशानी हे
घना अंधेरा हे , ए उस रात की कहानी हे 
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बुझ गये कयी दिये , ए जले हुये दिल कि निशानी हे
सवेरा फिर होगा , इश्क़ की नाराजगी जो उन्हे बतानी हे.
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पत्थर सीने मे रखता हु , आँखो से बेहता फिरभी पानी हे
गिरके उठा फिरसे , तुझसे मोहब्बत तो बस् नादानी हे
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#काकडे #Hope #Love

युगेंद्र अशोक काकडे

लफ्जो मे कहा खंजर छुपाये बैठे हो
शाम होती नही और रात कि आस लगाये बैठे हो
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सुना हे धुप मे बारीश को सीने से लगाये बैठे हो
केहते हो सासो से मोहब्बत हे तुम्हे हवा को रुलाये बैठे हो
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पत्थरो की लकीर पर ए किसका नाम लिखाये बैठे हो
हवा दर्द की चल रही हे ,खुदको पिंजरे मे कैद करके बैठे हो
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#काकडे #पिंजरा #दर्द  #इश़्क

युगेंद्र अशोक काकडे

कविता💕

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प्रेम हीच कविता
कविता हेच प्रेम
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#काकडे



Note- कविता नावाच्या मुलीशी माझा काही एक संबंध नाही.
धन्यवाद. #कविता💕

युगेंद्र अशोक काकडे

#poor

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उडती पंछीयो की आवाज सुनकर आया हु
घायल हु पर घाव गिनकर आया हु
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लिखी हुयी किताब जलाकर खुद राख होकर आया हु
नाराज हु खुद से कुछ पन्ने बचाकर लाया हु
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 वक्त के अंधेरे मे मेरा वजूद पिछे छोडकर आया
नंगे पाव निकला हु अश्क बहाने आया हु
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#काकडे #poor

युगेंद्र अशोक काकडे

डरा हुआ था एक परींदा , पर उसके तुटे थे 
रोता रहा रातभर शायद अपने ही कुछ झुठे थे
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नमक लगाता रहा घावपर कुछ जखम भर गये थे
हौसलो से उडा था शायद इरादे तो मर गये थे
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बनाकर खुद्द को ढाल मोहब्बत को वो मिलाता रहा 
जल गया सब पन्ने की तरह फिरभी याद सबको आता रहा
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#काकडे #परींदा

युगेंद्र अशोक काकडे

दस्तक

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दस्तक देकर मेरे दरवाजे पर तुम कहा चले गये
कैद करके मेरे दिल को मुझे कैसे भुला गये
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मुझे पागल केहकर तुम खुद खफा हो गये
गुनाहगार मुझे बताकर खुद बेवफा हो गये
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इश्क कि समंदर मोहब्बत-ए-अश्क कहा गुम हो गये 
हर बात पर तेरी याद दिलाने वाले वो सपने सब चुर हो गये
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#काकडे दस्तक
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