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#_अल्फ़ाज़_#
मेरे महबूब ने दरबार सजाया है, बीते दिनों को फिर याद दिलाया है, थामे रहना इसी कदर, मेरे हाथों को, ये कह कर पता नही वो, क्यू मुस्कुराया है, #_अल्फ़ाज़_# #दरबार
#_अल्फ़ाज़_#
मोहब्बत-ए-दर्द की, गर दवा बने, तो दिए जख्मो जैसी, सफा बने, शराकत मेरी ही क्यू बने इसमें, थी शामिल तू भी तो, तेरे लिए भी जफ़ा बने, #_अल्फ़ाज़_# #शामिल
#_अल्फ़ाज़_#
मोहब्बत की भी अब गिनती होने लगी है, कहाँ पहली दफा वाली, ठहरने लगी है, माना जिस्म बिकने लगे है, किराये पर, फिर क्यू खरीदारों की जुबां से, मोहब्बत की बात होने लगी है, आम है ये कहना के तुम ही मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत हो, पर अगली सुबह, कोई और क्यू उनसे लिपटने लगी है, #_अल्फ़ाज़_# #खरीददार
#_अल्फ़ाज़_#
अब तो तेरी हर बात को, हम दिल से लगाते है, भीड़ में भी तुझे, अब पहचान जाते है, तेरी राह के दरख्तों का, इमान डोल गया है शायद, तभी आजकल वो तेरा पता, गलत बताते है, #_अल्फ़ाज़_# #पहचान
#_अल्फ़ाज़_#
लगा के हाथों पे मेहंदी, वो आज ख़ुशी से सज रही होगी, ये कैसा आलम है, मेरी मोहब्बत आज मुझी से बट रही होगी, अब जीने की तमन्ना नही है तेरे बिन, और मेरे कफ़न की चर्चा, उसके मोहल्ले में, कुछ दिनों बाद भी चल रही होगी, #_अल्फ़ाज़_# #मेहंदी
#_अल्फ़ाज़_#
मोहब्बत नीलाम हो रही थी किसी,जमाना बोली लगा रहा था, में कभी गुजरा नही था वहा से, लेकिन आज कल वही से गुजर रहा था, किसी ने होटो की,किसी ने आँखों की, किसी ने खूबसूरती की कीमत लगाई, ना खरीदा जख्मो,अश्को और जज्बातो को ,ये देख कर में अकेला ही रोया जा रहा था, #_अल्फ़ाज़_# #कीमत
#_अल्फ़ाज़_#
हर रोज़ शाम, तेरे इंतज़ार में, उस शाम का इंतज़ार करते है, हर गम भुला दे जो मेंरे,उस आखिरी जाम का इंतज़ार करते है, क्या हुआ गर तेरे चेहरे पर, दाग आ गए बदनामी के, हम तो अब भी, तेरी रूह से प्यार करते है, #_अल्फ़ाज़_# #रूह
#_अल्फ़ाज़_#
मेरा चाँद, अब कुछ दूर दिखाई देता है, चलो कोई नही, अब हर रोज़ दिखाई देता है, रोता है, वो भी किसी की याद में , ये भी हर रोज़ सुनाई देता है, #_अल्फ़ाज़_# #चाँद
#_अल्फ़ाज़_#
इंतजाम कर, फिर एक जाम का, भुलाने लगा हूँ गम, में उस अंजाम का, शिकायत तो मुझसे, हर जर्रे को है, कोई तो हो,जो समझ ले मतलब मेरे पैगाम का, #_अल्फ़ाज़_# #पैगाम
#_अल्फ़ाज़_#
अंधेरो ने, चिरागो से मदद मांगी है, तुझे खोजने को, फिर से हमने मोहलत मांगी है, जिन्दा थे तो, सोचा नही तुमने, फिर भी मेरी कब्र ने, तेरी मोहब्बत मांगी है, कबूल हो जाना, अब मेरी दुआओ में, के फिर हमने खुदा से,जिंदगी की दौलत मांगी है, #_अल्फ़ाज़_# #मोहलत