Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best डांट Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best डांट Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about डांट पड़ेगी,

  • 43 Followers
  • 283 Stories
    PopularLatestVideo

अदनासा-

विडिओ सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C3DYehHpI6U/?igsh=NzhscXpiZWNxY2M3 #हिंदी #माँ #डांट #बेटा #जोगी #सन्यासी #दुख #Instagram #Facebook #समाज

read more
mute video

@thewriterVDS

इंतजार है तुम्हारा
जल्द आओ
क्योंकि
आओगे तो खुशियां लाओगे
किसी को अपनी गलतियां सुधारनी है
सेखी बघारनी है
किसी को प्यार करना है
इजहार करना है
किसी को किसी का इंतजार है
किसी से बेहद प्यार है
किसी को शिकवे मिटाने हैं
भुलाकर गले लगाने हैं
किसी को डांट खाना है
फिर भी वही कर जाना है
किसी का घर आना है
किसी को भूल जाना है
...

Happy New Year
🎆2⃣0⃣1⃣9⃣🎆
 #इंतजार #खुशियां #गलतियांसुधारनी #प्यारइजहार #शिकवेमिटाने #डांट

#HappyNewYear

#YQDidi
Vaibhav Dev Singh

Charli Verma

मेरा डांटना #डांट #OneSeason

read more
mute video

Charli Verma

मेरा डांटना #डांट #OneSeason

read more
मेरा डांटना बेवजह नहीं होता,
कोई रोगी बिस्तर पर यूं नहीं सोता।
 अगर कह दो क़ि तुम बेवजह मुझपर चिल्लाते हो, 
फिर अकेले ही  समन्दर  में लगाना गोता।
🙁🙁🙁🙏🏻

©Charli Verma मेरा डांटना #डांट 
#OneSeason

P S Jha

mute video

dayal singh

bachpan ke din

read more
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

ramkumar aharwar

बचपन #कविता

read more
खुशीयो से भर गया मन अचानक
 बचपन की उन यादों में
वो बारिश के मौसम में
कागज की नाव तैराना
और भीग कर वापस घर में आना
फिर मां का कान पकड़कर डांट लगाना
और बाद में कहना राजा बेटा खाना खा ले
ऐसा सुनकर खुशीयों से मन भर गया अचानक

फिर सुबह मित्रों के साथ 
छाता लेकर विद्यालय जाना
और फिर भी भीगत हुए
घर वापस आना
था वो कितना प्यारा बचपन
जिसमें मां की डांट भी अच्छी लगती थी
काश कि लौट के आए वो बचपन
जिससे खुशीयों से मन भर जाए अचानक

स्वरचित
रामकुमार अहरवार 
हर्रई बचपन

bunny HindUstani

उठ मेरे बेटे उठ, क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं 
देख सुबह सर चढ कर मुंह चिढा रही है,क्या इसको सबक सिखाना नहीं 
ये वक़्त तुझसे रेस लगा रही है,क्या तुझे वक़्त को हराना नहीं 
उठ मेरे बेटे उठ,क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं 
नासाज़ थी तबियत कल तेरी,सबक अपना मुकम्मल किया नहीं 
डर है तुझे अपने उस्ताद की मार का, उनके डांट-डपट का
पर मेरे शहजादे, बनती है एक खूबसूरत मुजस्सिम
खाकर मार छेनी-हथौरे की
ठीक उसी तरह उनके डांट से खुद को क्या तराशना नहीं 
उठ मेरे बेटे उठ,क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं
दोस्तों के साथ खेल, एक-दूसरे को खाना बांटता 
स्कूल का मैदान,वो शरारत ,वो हंसी-ठिठोली 
लम्हे बेशकीमती ये आते हैं याद बाद में,क्या इन यादों को जीना नहीं 
उठ मेरे बेटे उठ, क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं #nojotohindi #school #mom

Ainam Singh

"मम्मी पापा का प्यार"

read more
मम्मी -पापा का प्यार भी बड़ा अजीब होता है।
हर दुख में उनका साथ जरूर होता है।

अच्छा साथी चाहिए तो यह होते हैं हर दुख के साथी सिर्फ यह होते हैं।

अगर मूर्ख देखना हो तो यह होते हैं क्योंकि मना करने पर भी सुख के साथी हो ना हो मगर दुख के साथी जरूर होते हैं।
मम्मी -पापा का प्यार भी बड़ा अजीब होता है।
उनकी डांट भी अजीब होती है ना जाने   हर डांट के पीछे कैसे प्यार होता है ।
मम्मी -पापा का प्यार भी बड़ा अजीब होता है। "मम्मी पापा का प्यार"

KajuKrGupta

read more
बच्चपन और जवानी में बस एक ही फर्क पाया है मैंने..
पहले कुछ याद नहीं होता तो डांट पड़ती थी अब कुछ बाते याद है तो डांट पर रही हैं!
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile