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Manas K M Agrawal
उसकी आँखें उसकी आंखें खामोशी में भी सौ बातें करती हैं, मैं सुनता हूं सम्मोहित होकर , वो मन के सारे राज़ कहती है, कभी नम पलके, कभी शरारत और कभी हया, कभी कनखियों से छुप के चोर निगाहों से देखना , मैने देखा है, सुना है और समझा है बहुत , उन आंखों की जुबा में वो बहुत कुछ कहती है | अक्सर जब वो होठ और लफ़्ज़ कोई नागुज़र कह दें, उसकी आँखें झट से ही विद्रोह करती है, और मन के भेद कहती है, कभी लफ्जो, कभी लहज़े कभी रूखे अंदाज से , वो ऊपर से बेरुखी और अंदर दिल्लगी , मैने देखा है , सुना है और समझा है बहुत , उन आंखों की जुबां में वो बहुत कुछ कहती है । उसकी आँखें ख़ामोशी में भी सौ बातें करती है... मैं सुनता हूं सम्मोहित होकर , वो मन के सारे राज़ कहती है । ©Manas K M Agrawal #बस_यूं_ही
Shree
अरी भाग्यवान! तुम्हारी हथेलियां छोटी-छोटी सी थक जाती हैं.. फिर भी मरी सुकून कहां छोड़ आती है! सच कहो, इतनी लापरवाह कब से और क्यों हुई? एक-एक दिन बन-ठन काहे नहीं शृंगार से इठलाती हो? छोड़ो भी अब इसकी, उसकी, सब जन मन की... बतलाओ कैसे इत-उत 'विस्मृत स्वयं' लिए व्यंग्य व्यंजना पी जाती हो! Shree #a_journey_of_thoughts #बस_यूं_ही #कुछभी अरी भाग्यवान! तुम्हारी हथेलियां छोटी-छोटी सी थक जाती हैं.. फिर भी मरी सुकून कहां छोड़ आती है!
Vinay Sinha
वक्त देना पड़ता है कतरे को समंदर बनाने के लिए चाहिए खाद पानी मुक्कमल पौधे को शज़र बनाने के लिए गिनतियों की क्या बात है बढ़ेंगी ख़ुद ब ख़ुद वक्त से मुश्किलें तो आती हैं जानवर को बशर बनाने के लिए ©Vinay Sinha #बस_यूं_ही
शिवानी त्रिपाठी
जिन रिश्तों के धागे जरा से झटके से बस यूं ही एक पल टूट गए कैसे मान लूँ की वो सच में गहरे थे.... ©Shivani Tripathi #बस_यूं_ही
Prashant Shakun "कातिब"
मैं बड़े जोश से उठा धुँए की तरह आसमान की तरफ, पलक झपकते ही ओझल हो बादल हो गया और भेज दिया गया बूँदों के रूप में वापस धरती पर ©Prashant Shakun "कातिब" #बस_यूं_ही 1052hrs Wednesday 29, 2022
Prashant Shakun "कातिब"
एक लम्हा था ज़िंदगी सा एक ज़िंदगी है लम्हे सी ©Prashant Shakun "कातिब" #एक_खयाल #बस_यूं_ही #प्रशांत_शकुन_कातिब #Time