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भगवान ukpedia
स्याही का रंग जरा जाना सा लगता है, वो लिखते है कि लहू जलाते है, इतना दर्द तो ज़ख्म भी नहीं देता, कलम चलाते है कि नश्तर चलाते है..! उनकी कलम में है वो दर्द जाना सा, मरहम लगाते है कि घाव दुखाते है..!
Santosh Sagar
सफर में हमसफ़र बन जाते हैं , बारिस में छतरी के भाँति काम आते है ! मुश्किल भरी सफर होती है हमारी, साहब हम रेल चलाते है ....... दो परिवारों को साथ लाते हैं, पर्वत को झीलों से मिलाते हैं! भूले- भटके को घर पहुंचाते है , साहब हम रेल चलाते हैं...... दो धर्मो के मानाने वाले , दूसरे की भाषा न जानने वाले ! सभी को हम साथ ले जाते हैं, साहब हम रेल चलाते हैं..... एक अकेले बेटे को,दिल में आंशु लपेटे को! माँ की ममता मिट न जाये , आँचल में उनके गुल खिलाते है ! साहब हम रेल चलाते हैं..... दो प्रेमी दीवाने को , चढ़े प्यार परवाने को ! बिच खड़े दिवार को चंद घंटो में मिटाते हैं! साहब हम रेल चलाते हैं..... :- संतोष 'साग़र' #gif सफर में हमसफ़र बन जाते हैं , बारिस में छतरी के भाँति काम आते है ! मुश्किल भरी सफर होती है हमारी, साहब हम रेल चलाते है ....... दो परिवारों को साथ लाते हैं, पर्वत को झीलों से मिलाते हैं! भूले- भटके को घर पहुंचाते है , साहब हम रेल चलाते हैं......
सफर में हमसफ़र बन जाते हैं , बारिस में छतरी के भाँति काम आते है ! मुश्किल भरी सफर होती है हमारी, साहब हम रेल चलाते है ....... दो परिवारों को साथ लाते हैं, पर्वत को झीलों से मिलाते हैं! भूले- भटके को घर पहुंचाते है , साहब हम रेल चलाते हैं......
read moreBhawna Sagar Batra
खेल वो बचपन के कहीं खो गए हैं,अब हम बड़े हो गए हैं.. वो नादान बचपन कितना प्यारा था,जब मेरी चोट पर मॉ ने फूंक हलके से मारा था, वो पानी में जहाज़ हम चलाते थे,लाईट जो न आए तो सब बच्चे मिलकर शोर मचाते थे, खेल वो छुप्पन छुपाई,पकड़म पकड़ाई,कटी पतंग सब कहीं खो गए हैं,देखो मोबाईल चलाते आजकल के बच्चे भी अब बड़े हो गए हैं वो मम्मी से मार खाकर भी छुपकर दोस्तों के घर जाया करते थे,जो देखले मईया,तो न चलने वाले नादान बहाने बनाया करते थे, रातों को छतों पर सोना,तारों को गिनना और बादलों के भूत बनाना आज भी याद आता है,आज की जनरेशन को ये मोबाइल बचपन से दूर ले जाता है खेल वो बचपन के कहीं खो गए हैं,अब हम बड़े हो गए हैं.. #खेल#बचपन#खो#गए #nojoto #poetry
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