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Vidhi
मॉडर्न ,ट्रेडिशनल,लिबरल,रीजनल,रिलिजन... इन सबकी अपनी अलग अलग टोपी है। थोड़े थोड़े देर में हर किसी में अपना सर घुसा कर वो अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी आगे खींचता है। इनमें से कोई भी एक टोपी दूसरे के साथ ज्यादा देर तक फिट नहीं हो पाती मग़र फ़िर भी वो अपनी पहचान इन सभी के साथ जोड़ता है। लेकिन एक टोपी ऐसी भी है जो चाहती है कि बाकि सारी टोपियाँ उतर जाएँ और बस वो एक उसके माथे पे सवार हो जाये। वो भी चाहता है कि उसे भी एक परमानेंट घर मिल जाये, एक ऐसी टोपी से उसकी पहचान बंध जाये। मग़र फ़िर भी वो चाह कर भी उसे पहन नहीं पा रहा। क्योंकि ये टोपी उससे उसे उतारने का हक़ छीन लेगी। उसके सर पे आ बैठने के बाद उससे उसका तर्क छीन लेगी। वो टोपी राष्ट्रीयता की टोपी है। काश एक टोपी इंसानियत की भी होती। वो फिर उसे बेहिचक पहन लेता। #Cap #टोपी #पहचान #Identity #Choice #Politics #YQbaba #YQdidi
Deepti Garg
#टोपी और हवा ए हवा तुम बार-बार मुझे परेशान क्यों करती हो? मेरी टोपी को उड़ा कर बार-बार नदिया के पार क्यों ले जाती हो? तुम्हें तो पता है ना मेरे सिर में बाल नहीं है, कुदरत ने मेरे सारे बाल छीन लीए फिर क्यों तुम मेरे साथ ऐसा मजाक करती हो? ऐसे मत करो ना हवा, तुम बार-बार मेरी टोपी को ऐसे गिरावोगी तो, मेरी टोपी गीली हो जाती है। और मुझे ऊपर से ठंड लग जाती है। और तुम्हें तो यह भी पता है , मेरे पास दूसरे टोपी नहीं , ना मेरे पास इतने पैसे कि मैं खरीद सकूं। तो क्यों ! मुझे बार-बार नँचाती हो और मुझे नदिया के पार ले जाती हो। क्या तुम्हें मेरी टोपी ही मिली खेलने के लिए। क्यो मुझे अपना खिलौना बनाती हो। और मुझे अपनी मम्मी की डांट खिलवाती हो। ऐसा काम तुम करती क्यों हो? पत्तों संग खेलो हवाओं के संग खेलो, चिड़ियों स॔ग गीत गुनगुनाओ। इतनी बड़ी प्रकृति है उनके साथ नाचो गाओ। बस मेरी टोपी को तुम बार-बार न उड़ाओ। क्योंकि तुम बार-बार मेरी टोपी को उड़ाओगी । मुझे बार-बार उठाने जाना पड़ेगा और झुक झुक कर मेरे कमर में दर्द हो जाएगा। और मैं उठा उठा कर टोपी थक जाऊंगी क्या !तुम्हें मेरा थकना अच्छा लगेगा? बताओ ना... हवा ,क्या तुम्हें मेरा थकना अच्छा लगेगा ,बताओ ना..... बताओ ना..... क्या तुम्हें, मुझे परेशान करके मजा आएगा। बताओ ना हवा...... क्या तुम्हें मजा आएगा। ©Deepti Garg #टोपीऔरहवा#dilkikalamse#deeptigarg #yqbaba _yqdidi
Shashi Aswal
टोपी भी कितना अजीब शब्द हैं, सर पर पहनने के लिए हैड टोपी, जो सर से लेकर गले तक में आए, वो बंदर वाली टोपी, राउंड टोपी, वो गाना तो सुना ही होगा आपने, तिरछी टोपी वाले, ये भी एक प्रकार की टोपी हैं, कई लोग ऐसे भी होगें, जो अपने सर की टोपी, किसी और को पहना देते हैं, पर इसका मतलब होता हैं, अपना किया किसी पर डाल देना, कई लोग भी होते हैं ऐसे, एक होती हैं किसी को टोपी पहनाना, मतलब किसी के साथ मजाक करना, या किसी को मूर्ख बनाना, वैसे हैं टोपी बडे़ कमाल की, गर्मी से जो बचाती हैं टोपी!!!!! #YQbaba #cap #टोपी
Ek villain
कोई माने या ना माने दुनिया भर में टोक्यो का घर से सब सदा से रहा है और अलग भी रहेगा मैं दुनिया के मंच पर रूप और रंग बदल-बदल कर आती है पुरुष के रूप में सवार होती है तो टोपी बन जाती है महिला के रूप में सिर पर बैठती है तो टोपी कहलाती है अनेक सफल व्यक्तियों उसकी टोपी उसके सिर और उसकी टोपी उसके सिर करते रहते हैं टोपी वाले भी फस जाए तो टोपी को उल्टा कर पीटो पीटो में आनंद लेने लगते हैं भारत में टोपी को वंदनीय माना गया है दिल्ली हो या पंजाब जीतने के लिए अधिक से अधिक मतदाताओं को टोपी पहनने की क्षमता होनी चाहिए जिन्हें टोपी पहनने की कला आती है व टोपी पहना कर प्रमुख कुर्सियों को टोपी किसी की रंग की हो दिल्ली जितना उसका प्रथम लक्ष्य होता है एक ही दल के सरकार होगी तो उसी रंग की टोपी स्वतंत्र दिखाई देगी 12 मिनट ओपीओ के रंग-रूप दिल्ली में तय किए जाते हैं फिर कोशिश होती है कि धीरे-धीरे पूरे देश के लोगों को ही पहना दी जाए उन्हीं लोगों से जनता जनार्दन पट जाए अनेक रंग की टोपियां अध्यारोपित हुई है तरह थी किंतु कुछ भी हुआ दिल्ली से ही हुआ जब देश स्वाधीन हुआ तब सुभाष चंद्र बोस गांधी जी आदि नेता बेदाग टोपी पहनते थे बाद में धीरे-धीरे सफेद वालों की भी सफेद समाप्त होने लगी लोग रंग अनीता की ओर बढ़ने लगे फिर तो कौन सा रंग छोटा लाल नीला काला पीला सब एक्जाम पर एक छत में नीचे दिखाई देने लगे पहले की गतिविधियों में धड़कता थी अब काली पीली होने लगी जब तू काला पीला अधिक होने लगा तो लोगों को रंग दिया से होने लगी और ध्यान फिर साफ स्वच्छ जाने लगा ©Ek villain #टोपी के रंग की अलग ही कहानी #waiting
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गौरव गोरखपुरी
अगर पूछता हूं मै तुमसे बताओ मै आज कैसा लग रहा हूं बहुत सही लग रहा हूं अगर अंदर और बाहर , एक जैसा लग रहा हूं क्या बचा हूं मै, मेरे भीतर थोड़ा भी या रोज किरदार बदलता पेशा लग रहा हूं क्यों माफ़ नहीं कर पाता मै किसी को मै क्यों जैसे को तैसा लग लग रहा हूं राम नाम का गमछा , डाल लिया गले में तो एक जान की जान लेती , भीड़ का क्यों अंदेशा लग रहा हूं नेता वाली टोपी लगा ली तो लूट खसोट का क्यों संदेशा लग रहा हूं पगड़ी से हिन्दू , टोपी से मुस्लिम , बोल जाते है मुझे कोई नहीं कहता , कि मै इंसान जैसा लग रहा हूं हिन्द का रहने वाला हूं, मै हिंदुस्तान लग रहा हूं कोई क्यों नहीं कहता , कि मै कुछ ऐसा लग रहा हूं #poeticPandey हिन्दुस्तान मेरी जान #nojotohindi
Rakesh Kumar Dogra
आज दो अक्टूबर है डरकर कपाट खोल दूं। हां खाकी निक्कर थी टोपी थी और थी लाठियाँ, कुछ लोग थे दूसरी तरफ हां आधी दाड़ी थी टोपी थी और लम्बे कुर्ते के साथ छोटी थी पजामियां। तू डरपोक कवि है सीधा बोल थे आर एस एस के लोग और कुछ लोग थे दूसरी तरफ हां थे वो मुस्लमान थी मियांओं की टोलियां।
Kalam_Kasturi
सरकार जो भी सत्ता पर काबिज हो, क्या फर्क पड़ता है। ये जीते तो होगी नफरत,वो जिते तो भी नफरत जश्न में भी रवां है नफरत,गम नें भी होगी नफरत जान पड़ता है,नफरतों का सैलाब आया है। तिलक डरता है टोपी से,टोपी ख़ौफ़ज़दा है तिलक से चाहे जिसका शासन हो,दोनों को लड़ना भिड़ना है। चाहे जितना नाम जप लो,नेताओं का नाम रट लो तुम्हारी नफरत की आग में हीं उनकी खिचड़ी पक जायेगी। बढ़ाओ नफरत और बढ़ाओ नफरत अच्छी खासी गल जायेगी। मगर भाषणों के तड़के से बनी खिचड़ी तुम्हारे हाथ नही आएगी। भला कभी चूल्हे को भोजन मिला है क्या? जिस सोन चिड़िया के लिए ,सालो लड़ी लड़ाई वो लोकतंत्र सिर्फ सपना हो गया। पैसा,ओहदा,ताकत उनका,खुन्नस अपना हो गया। बढ़ाओ नफरत और बढ़ाओ नफरत इस नफरत कि आग में हीं एक दिन चूल्हा भी जलेगा और खिचड़ी भी #सत्ता #nojotohindi
Ajay Amitabh Suman
लौट के गाँधी आये दिल्ली आज के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गांधीजी अगर हिंदुस्तान आते तो उनका अनुभव कैसा होता, इस काल्पनिक लघु कथा में यही दिखाने की कोशिश की गई है. दरअसल ये कहानी आज के राजनैतिक अवसरवादिता पे एक व्ययंग है. 15 अगस्त 2018,