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SHAYARI BOOKS

गए साल ने ज़िंदगी को नया आयाम दिया, जो शामिल थे दौड़ में उन्हें भी विराम दिया। दुनिया के रंगमंच का दृश्य ही बदल दिया, जीने के अंदाज़ को कठिन से सरल किया। "घर से काम" और घर के काम सिखाने आया था, ये साल हमे भूले बिसरे कुछ काम गिनाने आया था। किसी की रोजी छिन गयी कोई हालात पे रोया, कोई लड़ा कोविड से ,कुछ ने अपनो को खोया। #शायरीबुक्स #shayaribooks #bye2020

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गए साल ने ज़िंदगी को नया आयाम दिया,
जो शामिल थे दौड़ में उन्हें भी विराम दिया।
दुनिया के रंगमंच का दृश्य ही बदल दिया,
जीने के अंदाज़ को कठिन से सरल किया।
"घर से काम" और घर के काम सिखाने आया था,
ये साल हमे भूले बिसरे कुछ काम गिनाने आया था।
किसी की रोजी छिन गयी कोई हालात पे रोया,
कोई लड़ा कोविड से ,कुछ ने अपनो को खोया।
मास्क और सैनिटाइजर की आदत भी अपना ली,
हाथ मिलाना छोड़ कर नमस्ते की प्रथा बना ली।
शायद यह साल हमको सबक सिखाने आया था,
"हम ज़िंदा ये उपलब्धि है",याद दिलाने आया था।

©SHAYARI BOOKS गए साल ने ज़िंदगी को नया आयाम दिया,
जो शामिल थे दौड़ में उन्हें भी विराम दिया।
दुनिया के रंगमंच का दृश्य ही बदल दिया,
जीने के अंदाज़ को कठिन से सरल किया।
"घर से काम" और घर के काम सिखाने आया था,
ये साल हमे भूले बिसरे कुछ काम गिनाने आया था।
किसी की रोजी छिन गयी कोई हालात पे रोया,
कोई लड़ा कोविड से ,कुछ ने अपनो को खोया।

SHAYARI BOOKS

जिसकी आरजू में एक उमर निकला किसी और आँगन में वो क़मर निकला! यूँ तो उसे रहती है ख़बर जहान की बस मेरे जज्बातों से ही बेख़बर निकला! एक मुद्दत हुए प्यासा है शहर मेरा के कुछ दूर से बादल बरस कर निकला! #worldpostday #शायरीबुक्स #shayaribooks

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जिसकी आरजू में एक उमर निकला
किसी और आँगन में वो क़मर निकला!

यूँ तो उसे रहती है ख़बर जहान की
बस मेरे जज्बातों से ही बेख़बर निकला!

एक मुद्दत हुए प्यासा है शहर मेरा
के कुछ दूर से बादल बरस कर निकला!

हर बार रख आया दिल तेरे कूचे में
जब भी तफरीह को मैं उधर निकला!

रिवायत है दिल के बदले दिल देने की
पर तूने जो दिया वो पत्थर निकला!

बड़े अरमान से खोले थे लिफ़ाफ़े मैंने
तवक़्क़ो फूल की थी, खंज़र निकला!

वो ख़्वाब जो आते नहीं रातों में कभी
उन्हें ढूंढते हुए आज फ़िर सहर निकला!

पलकों के पीछे था तो बस एक बूंद था
बहने क्या लगा पूरा समंदर निकला!

जिस फसाने को मैंने जीस्त समझा
वो तो एक लम्हे सा मुक्तसर निकला!

संगसार क्या हुआ एक आशिक़ आज
हस्र देखने को है सारा शहर निकला!

क्या बीती होगी उस पर वही जाने
रुस्वा हो महफ़िल से यूँ शजर निकला!

#शायरीबुक्स #shayaribooks

©SHAYARI BOOKS जिसकी आरजू में एक उमर निकला
किसी और आँगन में वो क़मर निकला!

यूँ तो उसे रहती है ख़बर जहान की
बस मेरे जज्बातों से ही बेख़बर निकला!

एक मुद्दत हुए प्यासा है शहर मेरा
के कुछ दूर से बादल बरस कर निकला!


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