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Sanjay Ni_ra_la
भीड़ की इस तन्हाई में, मैं तुझको ढूंढा करता हुँ सोच सोच कर तुझको सारे ख्वाब पूरा करता हुँ मंदिर से आती हैं सदाएं, तेरी अवाज सुनाई देती है होकर व्याकुल निहारूं इधर उधर, और तूँ मेरे अन्दर बसती है जब चाँद गगन में लरजकर लहरा जाता है बादलों में छुपा तेरा चेहरा और तेरी खिलखिलाहट सुनाई देती है ढूंढता हूँ तूझे मैं इधर उधर होकर निराला व्याकुल और तूँ मेरे अंतस में जन्मों से समाई लगती है ©Sanjay Ni_ra_la #तूँ मुझमे समाई लगती है
#तूँ मुझमे समाई लगती है
read moreShivangi Priyaraj
#ऒ__कन्हैया …💦 #मेरी खुशियों की #दुकान…… तूँ …💦 #तूँ ही मेरी #मोहब्बत का मकान है …💦 #तुझ से ही #मुक़म्मल है ……#दुनियां मेरी …💦 ##तूँ ही मेरा…… #जहान है … #हर हॉल में #तूँ ही ……#तूँ … #मेरे_सुर_ताल में……#तूँ ही #तूँ … #वहीँ तूँ है…#कान्हा……#जहाँ मैं … #गर तूँ ही नही #मुझ में … #तो इस दुनियां में #कहाँ मैं … ©Shivangi Priyaraj
Kranti Thakur
सारी दुनियाँ की रूसवाई का गिला नहीं है मुझे। ग़म तो बस इतना है के एक तूँ है जो मिला नहीं है मुझे।। - क्रांति #तूँ
Shayar Samar S M
उसे इतना भी याद ना कर ऐ दिल की तूँ फिर पुरानी यादों में खो जाए मुद्दतो से भूला बैठा है जो तुझे आज उसकी खातिर तूँ फिर रो जाए #NojotoQuote
Kranti Thakur
जो कुछ समझा जान मैं पाया मैं तुमको अर्पण करता हूँ। जीवन रूपी समर शेष है मैं आत्मसमर्पण करता हूँ। कब चाहत थी मेरी ये के तेरी बाँहों के हार मिले। मैंने फ़क़त ये चाहा था के उम्र तलक तेरा प्यार मिले। तेरी आँखों में डूब सकुँ मुझको बस मझधार मिले। जीवन की सब उलझी राहें ज़ुल्फ़ों सा तेरी सुलझ जाये। अपना हर ग़म भूल मैं जाऊँ तेरा ग़म गर मिल जाए। रूह में कुछ तूँ यूँ बस जाये के साँसों को क़रार मिले। खोयी हुई दिल की धड़कन को फिर से वही रफ़्तार मिले। ख़्वाहिशें मेरी जो हो हमदम बस तूँ ही मुझे हर बार मिले। हाँ तूँ ही मुझे हर बार मिले।।। - क्रांति #आत्मसमर्पण
कवि मुकेश मोदी
धरती माँ की पुकार माँ हूँ बच्चों मैं तुम्हारी और तुम हो मेरे लाल पाल पालकर तुम सबको हो गई मैं कंगाल कमजोर किया मुझे चीर के देखो मेरा सीना प्रदूषण फैलाकर कठिन कर दिया मेरा जीना बाँझ मुझे बनाया पिलाकर जहरीले रसायन अपने विकास का तुम करते हो झूठा गायन कहीं किया मुझे बंजर कहीं दलदल फैलाया घोर बिमारियों से मुझको भी ग्रसित बनाया ऐसी जर्जर हालत में कैसे तुम सबको पालूं कैसे अपने सीने से अमृत तुल्य फल निकालूं पुत्र समान मेरे प्रिय वृक्षों को तुमने काट दिया मेरे ही आँचल को तुमने सीमाओं में बाँट दिया चलते चलते मुसाफिर थककर ही मर जाता है दूर दूर तक पेड़ की ठंडी छाँव नहीं वो पाता है छलनी किया मेरा सीना तूने ये क्या कर डाला लालच में तूने मेरे मुख का छीन लिया निवाला तेरे पांवों तले रहती थी तुझसे क्या मैं लेती थी जितना लेती थी तुझसे हजार गुना मैं देती थी अब भी नहीं बिगड़ा कुछ खुद को तूँ संभाल विलासिता के जंजाल से खुद को तूँ निकाल हरियाली बढ़ाकर करते जाना तूँ मेरा पालन श्रीमत के बल पर करना जीवन का संचालन प्यार करके मुझको तूँ पा ले सुख अविनाशी हरियाली फैलाकर तूँ मिटा दे मेरी भी उदासी मेरी सेवा करेगा तो मैं भी सेवा करूंगी तेरी सुख दूंगी अपार तुझे ये है अटल प्रतिज्ञा मेरी ॐ शांति
कवि मुकेश मोदी
धरती माँ की पुकार माँ हूँ बच्चों मैं तुम्हारी और तुम हो मेरे लाल पाल पालकर तुम सबको हो गई मैं कंगाल कमजोर किया मुझे चीर के देखो मेरा सीना प्रदूषण फैलाकर कठिन कर दिया मेरा जीना बाँझ मुझे बनाया पिलाकर जहरीले रसायन अपने विकास का तुम करते हो झूठा गायन कहीं किया मुझे बंजर कहीं दलदल फैलाया घोर बिमारियों से मुझको भी ग्रसित बनाया ऐसी जर्जर हालत में कैसे तुम सबको पालूं कैसे अपने सीने से अमृत तुल्य फल निकालूं पुत्र समान मेरे प्रिय वृक्षों को तुमने काट दिया मेरे ही आँचल को तुमने सीमाओं में बाँट दिया चलते चलते मुसाफिर थककर ही मर जाता है दूर दूर तक पेड़ की ठंडी छाँव नहीं वो पाता है छलनी किया मेरा सीना तूने ये क्या कर डाला लालच में तूने मेरे मुख का छीन लिया निवाला तेरे पांवों तले रहती थी तुझसे क्या मैं लेती थी जितना लेती थी तुझसे हजार गुना मैं देती थी अब भी नहीं बिगड़ा कुछ खुद को तूँ संभाल विलासिता के जंजाल से खुद को तूँ निकाल हरियाली बढ़ाकर करते जाना तूँ मेरा पालन श्रीमत के बल पर करना जीवन का संचालन प्यार करके मुझको तूँ पा ले सुख अविनाशी हरियाली फैलाकर तूँ मिटा दे मेरी भी उदासी मेरी सेवा करेगा तो मैं भी सेवा करूंगी तेरी सुख दूंगी अपार तुझे ये है अटल प्रतिज्ञा मेरी ॐ शांति
कवि मुकेश मोदी
धरती माँ की पुकार माँ हूँ बच्चों मैं तुम्हारी और तुम हो मेरे लाल पाल पालकर तुम सबको हो गई मैं कंगाल कमजोर किया मुझे चीर के देखो मेरा सीना प्रदूषण फैलाकर कठिन कर दिया मेरा जीना बाँझ मुझे बनाया पिलाकर जहरीले रसायन अपने विकास का तुम करते हो झूठा गायन कहीं किया मुझे बंजर कहीं दलदल फैलाया घोर बिमारियों से मुझको भी ग्रसित बनाया ऐसी जर्जर हालत में कैसे तुम सबको पालूं कैसे अपने सीने से अमृत तुल्य फल निकालूं पुत्र समान मेरे प्रिय वृक्षों को तुमने काट दिया मेरे ही आँचल को तुमने सीमाओं में बाँट दिया चलते चलते मुसाफिर थककर ही मर जाता है दूर दूर तक पेड़ की ठंडी छाँव नहीं वो पाता है छलनी किया मेरा सीना तूने ये क्या कर डाला लालच में तूने मेरे मुख का छीन लिया निवाला तेरे पांवों तले रहती थी तुझसे क्या मैं लेती थी जितना लेती थी तुझसे हजार गुना मैं देती थी अब भी नहीं बिगड़ा कुछ खुद को तूँ संभाल विलासिता के जंजाल से खुद को तूँ निकाल हरियाली बढ़ाकर करते जाना तूँ मेरा पालन श्रीमत के बल पर करना जीवन का संचालन प्यार करके मुझको तूँ पा ले सुख अविनाशी हरियाली फैलाकर तूँ मिटा दे मेरी भी उदासी मेरी सेवा करेगा तो मैं भी सेवा करूंगी तेरी सुख दूंगी अपार तुझे ये है अटल प्रतिज्ञा मेरी ॐ शांति