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Shashi Bhushan Mishra

#बेवज़ह उम्मीद की ऐसी तैसी# #शायरी

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बेवज़ह उम्मीद की ऐसी तैसी,
ख़्वाहिशें हैं अधूरी कैसी-कैसी,

वक्त जाया हो चुका मनुहार में, 
चाहिए कोई न अब ऐसी वैसी,

हो गई आसान मुश्किल भी सभी,
छोड़ चाराग़र गई पानी में महिषी,

अटकना क्या ज़िंदगी की मोड़ पे,
याद रखता कौन था कोई हितैषी,

क़द्र करना चीज की जो पास तेरे,
बचाकर रखना  उसे  जैसी-तैसी,

मोह लेती मन पुकारा बाँकपन से,
नाम लेकर बुलाई कोमल हृदय सी,

बेज़ुबानों को जुवाँ  दे गई  'गुंजन', 
देखता हूँ  छलकती आँखें मय सी,
     --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
           चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #बेवज़ह उम्मीद की ऐसी तैसी#

एक इबादत

#बेवज़ह के शौक हम रखते नही है झूठी दिखावेबाजी़ हम करते नही है, शहरों की भाषा में हम गाँव के गंवार है स्वीकार है जनाब यह उपाधि हमें खानदानी है किसी का अपमान सपने में भी करते नही है..!! # स्वीकार Deepak Raj Patalwansi

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प्रभात नही गाँव में मेरे अजोर होता है
भानू उदय नही गाँव में मेरे दिन चढ़ जाता है,

माॅर्निंग वाॅक का इनके पास वक्त नही 
गाँव के लोग दिन चढ़ने से पहले खेत में होते है,

नास्ता इनको टेबल,कुर्सी पर नही 
चाय कटोरी ,प्लेट में खेतों की माटी में मिलता है,

और उस वक्त खेत में बैठकर जो चाय का स्वाद आता है
दार्जिलिंग की चाय भी उसके सामने बेमोल है,

गाँव में मेरे बच्चे स्कूल नही पाठशाला जाते है
शिक्षक सर जी नही,गुरूजी ,आचार्य जी कहलाते है,

अभिभावक वाहन से छोड़ने नही 
बस्ता उठा बच्चा स्वयं अपने पैरों से जाता है,

बस्ता किसी बडे़ के हाथों में नही 
बच्चे खुद अपनी पीठ पर उठा जाते है,

खैर छोडो़...फिर भी हम गाँव के गंवार ही तो है
ठीक ही तो है अपने कदमों माता-पिता बचपन में संभलना सिखा दिया 

तो आज खुद पैरों से मीलों की दूरी नाप जाता हूँ 
बिन रूके बिन थके,कई बार प्यास को भी मात दे जाता हूँ,

रही वजन उठाने की बात ,तो किसान है 
समूचे देश का उठा रखा है,

फिर भी अजमाने का ख्याल़ आये तो 
बेहिचक गाँव हमारे चले आना..!! #बेवज़ह के शौक हम रखते नही है
झूठी दिखावेबाजी़ हम करते नही है,

शहरों की भाषा में हम गाँव के गंवार है
स्वीकार है जनाब यह उपाधि हमें 
खानदानी है किसी का अपमान सपने में भी करते नही है..!!
# स्वीकार 
Deepak Raj Patalwansi

kumar ramesh rahi

अपनी टूटी ज़िंदगी से तुझे खोने ना दूंगा 
बेवज़ह इन हालात पर तुझे रोने ना दूंगा 

मिरी यादों को तकिए तले संभाले रखना
 सरक गया कहीं ग़र तो तुझे सोने ना दूंगा 

दर्द तो बढ़ गया मुसलसल तेरे हिज्र में 
नासूर हो जाए, किसी और को छूने ना दूंगा

 लबों पर तेरे, मिरे उल्फ़त का रंग चढा़ है
घुल जाऊंगा तुझमें मग़र तुझे धोने ना दूंगा

 खुद्दार हूँ, मजबूर हूँ, हैसियत से अपनी 
यूं फसल काटने वास्ते तो तुझे बोने ना दूंगा

 बेशक तेरी मर्जी है बेवफाओं की तरह रहे 
लेकिन यूं किसी और का तुझे होने ना दूंगा,

©kumar ramesh rahi #जिंदगी #बेवज़ह #यादों #दर्द #उल्फ़त 
#हिज्र #हैसियत #kumarrameshrahi 

#wetogether

Roshan dubey

#जाने  क्यूँ  #तुम्हारे  #बग़ैर,
हर  #वजह  #बेवज़ह  सी  #लगती  हैं..!!

Lakshya Pandey

😔 pritha #Quote #बेवज़ह

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एक समय था कि दुनिया जीतने का ख्वाब देखा करता था,
कमबख्त इक समय आज है,
कि खुद से नहीं जीत पा रहा हूं।।
😔😔😔

#बेवज़ह........।



                                              😔😔😔 😔 pritha

The_hidden_writer✍✍

बेवज़ह तो नहीं, यूँ सोचना मेरा । #बेवज़ह #जिन्दगी #फैसले #आपबीती #मजबूरी #जवाब #सवाल

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बेवज़ह  तो नहीं 
यूँ सोचना मेरा,वज़ह कुछ तो होगी

यूँही तो ना लिये होंगे जिन्दगी में फैसले,
मेरी भी कुछ आप-बीतीं होगी

समझने वालों ने तो ;कुछ भी समझ लिया होगा 
मेरी भी कुछ मजबूरी होगी 

ग़र हूँ शांत ,
कोई बात तो होगी 

चाहतीं हूँ जवाब, 
तो सवाल भी कई होंगे 

बेवज़ह तो नहीं;यूँ सोचना मेरा
वज़ह कुछ तो होगी । बेवज़ह तो नहीं, यूँ सोचना मेरा ।
#बेवज़ह  #जिन्दगी 
#फैसले #आपबीती 
#मजबूरी #जवाब 
#सवाल

Shukla Sakshi

बेवज़ह मै अब रात में जगने लगी हूं 
किसी के इन्तजार में रास्ता अब तकने लगी हूं #बेवज़ह #रात #जगना #इन्तजार #रास्ता #तकना

Prajwal Gupta

मुस्कुराहट

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बेवक्त बेवज़ह यूंही मुस्कुरा दो

ज़हन में थम जाए वो अंदाज़ फ़िर दिखा दो

तवज्जोह है तबस्सुम हर शागिर्द को तुम्हारे
ज़रा इस अजनबी का भी दिन बना दो

बेवक्त बेवज़ह यूंही मुस्कुरा दो मुस्कुराहट

विकास सैनी

ना मुस्कुराया कर यू बेवज़ह 
दिल करता हैं तेरे होटों की लाली बन जाऊं 
ना सरमाया कर यू बेवज़ह 
दिल दिल करता हैं तेरे कानो की बाली बन जाऊं #vikas #saini #poetry

विकास सैनी

मैं अब और नही चल सकता, मुझको मज़बूर ना कर । 
रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ 
मैं अब जज्बातों को , कागजों पर नही लिखता हूँ । 
रूबरू हो दुनिया मुझसे , ऐसे शब्दों को नही गढ़ता हूँ ॥ 
मंजिलों को पाने का हौसला , अब मुझमें नही है । 
दुनिया से संघर्ष करूँ , अब इस मन में तमन्ना नही है॥ 
कोयला सा बन कर रहना चाहता हूँ , मुझे कोहिनूर ना कर । 
रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको  मशहूर ना कर ॥ 
अब मैं ना अश्कों को लिखता हूँ , ना मोहब्बत को सुनाता हूँ । 
आशिकी के अधूरे सफ़र में , बस ख़ुद को लिखता हूँ गुनगुनाता हूँ ॥ 
मेरे हांथों में गुमनामी की लकीरें हैं , नाम मेरे अपनी तक़दीर ना कर । 
रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ 
महफ़िलों में जाने तमन्ना नही हैं , ना मुस्कुराने का हुनर रख़ता हूँ । 
वाहवाही की अभिलाषा नही हैं , ना तालियों का शौक  रख़ता हूँ ॥ 
अब क्या देखा मुझमें , पहले तो पागल आशिक़ कहती थी । 
हर पल बातों को समेटते हो , ये क्या लिखते हो कहती थी ॥ 
पहले दुनिया को लिखता था , तुम को सुनाया करता था । 
तेरे जाने के बाद तुमको लिखता था , दुनिया को सुनता था ॥ 
तन्हाइयों से होकर गुज़ारा हैं सफ़र , अब मेरे साथ ना चल । 
रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ 
तुम को लिखकर मशहूर तो हो जाऊं , पर तुम याद आती हो । 
तुम को पढ़कर  मशहूर तो हो जाऊं , पर तुम दिल में समां  जाती हो ॥ 
तुमको सुनाकर मशहूर तो हो जाऊं , पर तुम गीत बन जाती हो ॥ 
तुम्हारे साथ चल तो सकता हूँ , लेकिन तुम मीत बन जाती हो । 
मैं लौट आया हूँ छोड़ कर गीत-ए-महफ़िल की राह , मेरा इन्तजार ना कर । 
रहने दे इस गुमनामी में , बेवज़ह मुझको मशहूर ना कर ॥ 


स्वरचित विकास सैनी श्रीमाली #love #isq
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