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kumaarkikalamse
वो उठता है और फिर मुझे गिराता है, कुछ इस तरह वो छोटा होकर खुद को बड़ा बताता है..! !!! हाँ वो माटी का पुतला आज इंसान कहलाता है !!! #गिरता #उठता #मुझे #इंसान #माटी #Kumaarsthought
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#बुझा #सका #है #भला #कौन #इश्क़ के #शोले #ये #वो #आग है #जिसमे #लपटें #खत्म हो #जाएं #तब भी #धुआं #उठता #है•••••••••••••••!!!💞💞 ©OMG INDIA WORLD #OMGINDIAWORLD .. #बुझा #सका #है #भला #कौन #इश्क़ के #शोले #ये #वो आग है जिसमे लपटें खत्म हो जाएं
dayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
गौरव गोरखपुरी
सीमेंट में पानी के मिलने से बुलबुला उठता है जैसे तुझसे मिल कर के वैसे ही खिलखिला उठता हूं मै #poeticPandey bulbula #nojotohindi
Mor Singh Bagdawat
माँ पर मेरी कुछ पंक्तिया ..... जब दर्द मुझे होता है तो उसका दिल तड़प उठता है , जब खुशी मुझे मिलती है तो उसका चेहरा खिल उठता है ! भले ही दुनिया में एक से एक अनगिनत रिश्ते बनाये है मेने , पर ऐसा ममतामयी ह्रदय सिर्फ ओर सिर्फ माँ का ही होता है || कवि मोहित मो. 9179311401 माँ पर लिखी पंक्तियां
Piyush singh
कांटो से भरे,मुश्किलो से भरे रास्ते बहुत ही कठिन थे मेरे उम्र का वो छोटा सा पड़ाव था तब से मैं संघर्ष करता रहा मानो बर्फ सा भी पिघलता रहा फिर भी मैं उन रास्तो पर चलता रहा। रोकना भी चाहा,टोकना भी चाहा इन मुश्किलो को सोखना भी चाहा पर ये मुश्किलेआफताब सी बड़ी थी सायद इसीलिए मैं हर बार हार जाता रहा इतने में भी हार मानी नही हमने हारकर भी जितने की कोशिश करता रहा फिर भी मैं उन रास्तो पर चलता रहा। सुना था जिंदगी बार बार इम्तिहाँ लेती ह और ये इम्तिहाँ सबके लिए मुकम्मल होती ह न जाने कौन सा मंजर देखा इसने मुझमे जो ये मुझसे ही बार बार इम्तिहाँ लेता रहा गिरता रहा,उठता रहा,थकता रहा फिर भी मैं उन रास्तो पर चलता रहा। माना ये ठोकरे भी जिंदगी की हमे बहुत कुछ सिखाती ह पर ठोकरे ज्यादा हो जाये तो हमे अपाहिज भी यही बनाती ह संघर्ष के इस कुरुक्षेत्र में मैं अकेला खुद के लिए खुदा से भी लड़ता रहा फिर भी मैं उन रास्तो पर चलता रहा फिर भी मैं उन रास्तों पर चलता रहा.. मानो जैसे दरियाँ कई, अंधेरे कई सब कुछ ही अंदर थे मेरे यू कुछ इस तरह से बढ़ते गए ये दर्द के समंदर मेरे सबके हक की रोशनी के लिए मैं खुद दीपक बनकर जलता रहा गिरता रहा,उठता रहा,थकता रहा फिर भी मैं उन रास्तों पर चलता रहा फिर भी मैं उन रास्तो पर चलता रहा...... @piyush singh संघर्ष एक कहानी
बद्रीनाथ✍️
जब भी कभी एकांत में बैठ, कुछ लिखने की सोचता हूं कलम उठातें ही याद आ जाती हो तुम । तुमसे कुछ अलग लिखूं हर रोज़ यही सोच उठता हूं लेकिन अब क्या करूँ ? जब भी कुछ लिखने की सोचता हूं याद आ जाती हो तुम । अब हर बार प्रयास कुछ अलग होता है लेकिन क्या करूँ ,ख्याल तुम्हारा होता है लिख तो दु कुछ तुमसे अलग लेकिन क्या करूँ ,जब-जब कलम उठता हूं याद आ जाती हो तुम । - बद्रीनाथ #nijoto#nojotopoem#nojotokavita#TumAurKavita #mrbnp My_Words✍✍ Gopal Kumar संजय श्रीवास्तव Soumen Kundu Kajal Singh तुम और कबिता जब भी कभी एकांत में बैठ, कुछ लिखने की सोचता हूं कलम उठातें ही
Sushma Malik "अदब"
कोई भी इंसान अपने जितने गहरे रिश्ते से ठोकर खाता है, वो जब उठता है तो वो फिर उतना ही मजबूत होकर उठता है!! Good Morning सुषमा मलिक "अदब" #Thokar #Rishta #Majbut #SushmaMalik
Omkar Sharma
सुप्रभात ! सुबह-सुबह खिल उठता है मन, भाव सद्गुणों वाले आते हैं बीती बातें रात संग गुजर जाती है सुबह-सुबह मन खिले रंग सा हो जाता है, हो चाहे तन या मन, मुख से एक वाणी निकलती सुप्रभात हर जगह, हर कहीं, हर जन-जन, सुबह-सुबह खिल उठता है मन! #सुप्रभात #hindipoem #Omkarsharma omkarsharmablog.wordpress.com