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Deepak Kumar Katariya
Ayush Awasthi
कलम मैं हूँ बहुत ही छोटी सी पर काम बहुत मैं आती हूँ लोगो के मन को भाती हूँ हाँ मै कलम कहलाती हूँ मैने ही वो ग्रंथ लिखे जो लोगो का ज्ञान बढ़ाते है मैं ही शब्दो को मोती सा लिख जाती हूँ हाँ मै कलम कहलाती हूँ मैं तब से हूँ जब से कागज भी ना तो जन्मा था तब मुझको लिखने का काम पत्तो पर ही करना था कभी मोर पंख से कभी सरकंडों से लिखी जाती हूँ हाँ मै कलम कहलाती हूँ ईश्वर अमिता:(भगवान गणेश) ने डोर जब मेरी थामी थी तब महाभारत जैसा महा ग्रंथ इसकी रचना कर डाली थी इतिहासों के पन्नो मे अलग रूप था अब अलग रूप मे आती हूँ हाँ मै कलम कहलाती हूँ जब मुझको कोई जज पकड़े तो लोगो को सजा सुनाती हूँ जब मुझको कोई कवि पकड़े तो महाकाव्य लिख जाती हूँ आफिसर से बच्चो तक सबके मन को भाती हूँ हाँ मै कलम कहलाती हूँ हाँ मै कलम कहलाती हूँ ............... आयुष अवस्थी #कलम
dayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
Ravi Bhadauriya
बचपन और लड़ाई खड़े थे हम एक दूसरे के कॉलर पकड़े कुछ यूं होते थे हमारे झगड़े फिर ऐसे हम दोनों गए पकड़े और मां ने हम दोनों को पीटा थोड़ा घसीटा फिर कुछ यूं प्यार से पूछा क्यों करते हो आपस में झगड़े वो कोई और नहीं हम थे दोनों भाई जो खड़े थे एक दूसरे की कॉल नहीं पकड़े ..!vaR #_भाई_बचपन_और_झगड़ा
Himanshi Bulbul 2918
आज इतने साल बाद बारिश के बेहतरीन शाम को देखकर मुझे वह शाम याद आ गई वहीं शाम जहां से ये कहानी शुरू हुई थी कैसे भूल सकती हूं उन दिनों को "वो पहली बारिश थी जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था मैं रोज की तरह अपने कमरे में थी और दिन उस दिन इतवार था" उस दिन बारिश मानो एक बेहद खूबसूरत तोहफा थी मेरे लिए बारिश आई और मैं छाता लेकर छत की ओर भागी तभी 'बुलबुल संभल कर जाना' कहते हुए मां की आवाज कान से टकराई लेकिन मैंने अनसुनी कर दी फिर ऊपर रूम में खड़ी खड़ी बारिश का मजा लेते रही खिड़की से अपना हाथ बाहर निकालकर बारिश की कुछ बूंदों को महसूस कर रही थी फिर रूम से मैं छाता लेकर बाहर आई सोचा बाहे फैला कर भीग लू इस बारिश की एक-एक बूंद को अपने अंदर भर लू फिर मम्मी की ढाट याद आई सोचा बेटा, अगर भीग गई तो घर में घुस नहीं पाएगी फिर बस चुपचाप छाता पकड़े खड़ी रही मगर पता है बारिश , यह बारिश एक ऐसी चीज है जो बैंकर को भी राइटर बना देती है और हम पहले से ही कलम हाथ में पकड़े रहते थे तो एक हाथ में छाता पकड़कर और दूसरे हाथ से बारिश की बूंदों को छूने में मैं इतनी खोई थी की तभी सामने वाली छत पर मैंने उसे बाहें फैलाए खड़े देखा था मैंने भी छाका फेंका और खुले मन से बारिश को गले लगाया था वह बेखबर था कि उसे कोई देख रहा था अचानक ही बारिश कम हुई और उसकी नजरें मुझ पर गई मैंने कुछ ना कहा और सीधा नीचे चली गई कुछ देर बाद छत पर कपड़े सुखाने मैं आई थी तब भी वो हमारी छत की ओर देख रहा था . ...... .......... "ये प्यार की शुरुआत थी बरसात में हुई हमारी पहली मुलाकात थी"
Anil Siwach
M choudhary
गुजरात में रह रहे 46 अवैध बांग्लादेशी पकड़े गए.. अन्य राज्यों से भी पकड़े जा रहे हैं.. और आपके आस पास दिखे तो इसकी सूचना नजदीकी पुलिस थाने में दें..🙏
Dev Sharma
हाथों में चिंगारी पकड़े बातों में खुद्दारी पकड़े पैरों से धरती खुजलाई तब तूफां चाल हमारी पकड़े मात से बाज नहीं आए पर बाज की साज सवारी पकड़े बात पे बात शिकार हुए पर अबकी बार शिकारी पकड़े क्यों आंखें रिस रिस लाल हुई रिश्तो की लाज बेचारी पकड़े आंख से आंख मिले तब ही कोई आंख की फांस हमारी पकड़े धर दाम पै दाम निजाम हुए जो बंदर आज मदारी पकड़े लाला ,अपनी जेब कतर लाए फिर रात विराट भिखारी पकड़े #NojotoQuote #nojoto
Anil Siwach