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Balwant Mehta
दिख रही टिकटों की मारामारी दल बदली की लगी बीमारी पांच साल की फिर तैयारी सब कुर्सी का ही है सवाल ©Balwant Mehta #चुनाव #टिकट #दलबदल #कुर्सी
LOL
पहुँचने के तुम तलक वो छः सौ अस्सी रूपए के कई टिकट जो बरसों से जमा किए हैं जैसे पाण्डुलिपियां हैं प्रेम की सोख रखी हैं इन्होंने यादें कई और वो पल भी जो छलक जाया करते थे बस के सफर में तुमसे झगड़ कर लिए हेडफोन से तुम्हारा पंसदीदा गीत सुनते हुए ये सोचते हुए कि मिलूंगा तो क्या कहूँगा तुम्हें? या सीधा गले लगा लूँगा तुमको तुम्हारी इजाजत के बिना! कितना सुकूं होगा उस पल में जो गुजरेगा तुम्हारे गेसुओं के साए में कितना भारी होगा फिर यूँ मिलकर लौट जाना.. ये टिकट भी जैसे सफर हैं तुम्हारा और मेरा सुना है अब टिकट का दाम बढ़ गया है महँगा हो गया है तुमसे मिलना प्रेम में डूबे हम दोनों के भाव भी तो बढ़ गए हैं एक दूसरे के प्रति फर्क सिर्फ इतना है वो खरीदे नहीं जा सकते अनमोल हैं!! ©KaushalAlmora #टिकट #प्रेम #love #poetry #yqpoetry #life #पांडुलिपी #yqdidi
#टिकट #प्रेम love poetry #yqpoetry life #पांडुलिपी #yqdidi
read moreCalmKrishna
................. ©CalmKrishna ये बात याद रखो । #हम #यात्री #वापसी #टिकट #जीवन #सच #मृत्यु #मौत
@Devidkurre
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला शासन के घोड़े पर वह भी सवार है उसी की जनवरी छब्बीस उसीका पन्द्रह अगस्त है बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है! गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है! गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है! गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है! देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है! मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है गऱीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्छों नहीं! कुच्छों नहीं ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है कुच्छों नहीं, कुच्छों नहीं ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है! किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है! कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है! सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है। #बाबा_नागार्जुन वाणी मेरी नही लेकिन विचार इनके जैसे ही है किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
वाणी मेरी नही लेकिन विचार इनके जैसे ही है किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
read moreDr.Laxmi Kant trivedi (lucky)
मेरे दिल के अंदर धकडम पकड़म होई कि अब का होई, कि अब का होई, जब हम से नजर मिलाई, कहि कोने माँ घुस जाई, इज्जत के फालूदा अब हम कैसे लैई बचाए कि जियरा धकड़म पकडम होई जनरल बोगी से काले कोट मै ज़ुल्मी आया, तब मैं तो बहुत सकुचाई, और ये भी बहुत घबराया, कि दीन्हा हाथ टिकट पकडाई कि जियरा. उहमरी सकल देख के बोला कहा घूम रहे हो मनडोला, जनरल के टिकट संभाले, हऊ एसी मै डेरा डाले, तूमका होई है पक्का जेल कि जियरा... Train
Train
read morePratyush Saxena
जिंदगी , रेल की एक दौड़ । आज ट्रैन में सफर करते करते एक ख्याल आया । ये रेल का सफर भी कुछ जिंदगी जैसा ही होता न । कोई जनरल में है , कोई स्लीपर में है , तो कोई ऐ सी में , जैसे हम सब मुश्किल , आसान और आरामपरस्ती का जीवन जीते । जिंदगी भर जनरल वाले की कोशिश स्लीपर में चले , स्लीपर वाले की ऐ सी में , और ऐ सी वाले की प्लेन में । देखो अच्छा , टिकट भी कितना कुछ बताता , कनफर्म्ड टिकट भी बचपन से लेके किशोरावस्था की तरह होता , बेफ़िक्री वाला , जहाँ चाहो घूमो , इधर उधर देखो , और शादीशुदा जीवन आर ऐ सी की तरह , थोड़ा तकलीफदेय , पर हमसफ़र के साथ कट ही जाता है । चलो , ये सब सोचते सोचते ट्रैन चल दी है , सफर तो चलता ही रहेगा Zindagi Rail ki Tarah #PS #Nojoto #NojotoHindi #Lekh
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read moreRamji Pathak
एक छोटी सी कहानी बस मैं जाने ही वाला था सारी तैयारी हो गयी थी,रात भर सो भी नही पाया और वो भी नही।जानता हूँ बहुत प्यार करती है,रोती रही बेचारी मिलने गया कुछ बोल भी नही पा रही थी,खाने का पूछा उससे मैने तो बेमन से खाने लगी आंसू आ रहे थे उसकी आँखों मे मैने देख कर भी अनदेखा किया ये पहली बार था जब मैंने ऐसा किया। मैने टिकट कर लिया था आज जाने वाला था अचानक से रोना आ गया। तुरंत टिकट कैंसिल किया पर उसे बताया नही,सीधा शाम को पहुंच गया उससे कहा कि छोड़ने चलना,जब उसे पता लगा नही जा रहा हूँ उसके चेहरे के भाव देख कर लगा प्यार ऐसा होता है।ऐसा लग जैसे उसकी सांसें फिर चलने लगी हों। बाड़ा प्यारा अहसास है प्यार भी। मेरीकहानी #प्रेम#सच्चाप्यार#nojoto#nojotohindi#quotes#love#tales#
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