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Yogenddra Nath Yogi
रेगिस्तान की तपती धूप सी, जिंदगी चल रही है। एक थोड़ी छांव की तलाश में, जिंदगी यूं ही बिखर रही है।। उम्मीद लगा रखी है बादलों से, कभी तो सूरज को ढक लें, जिंदगी नादान सफर लंबा करती रही है। कभी पूछ लूं राह चलतो से, क्या आगे तपती धूप कम होती रही है।। जवाब मिले ना मिले सफर तो जारी रखना है, यह धूप थोड़ी जलाएंगी, पर कभी तो हर किसी को, सुकून की छांव मिलकर रहती है। रेगिस्तान की तपती धूप सी, जिंदगी चल रही है..... ©Yogendra Nath #OneSeason#तपती धूप
Aaru Katwa
बारिश तपती हुई सड़क पर गिरी बारिश की बूंद हो तुम, तपती हुई सड़क को जो सुकून दे बून्दें बस वही सुकून हो तुम..!! #barish #nojoto #hindi #nojotoInstagram #love #sukoon
Pnkj Dixit
जन्मदिवस पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएं सखी अंकिता शर्मा 🎂🍫🌠✨☕🍧🍨🍿🍰 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🎼🎼🎉🎊🌠✨🎂🍫🍬🍭🍦🍨🍧🍿🍰🍫🍺🍻☕🍵🍹🍸🍷🥃🍫🍫🍫🍫 "कैसे आदमी के पल्ले बांध दी , कुछ अता-पता ही नहीं न जाने किन गाने वालियों के चक्कर में पड़ा है । हमरी तो बिल्कुल भी फिकर नहीं । नाशपिटा बिचौलिया भी अंधा निकला । पहिले बता दिया होता तो करम तो न फूटते हमरे ...... (मिश्राईन बड़बड़ाए जा रही थी और वर्मा जी चुपचाप सुन रहे आंगन की दीवार पर कुहनी टिकाए ) "अरे का हुआ मिश्राईन जी ! काहे बडबडा रही है....." ( वर्मा ने आग में घी का काम किया और अपने ओमपुरी जैसे चेहरे पर भीनी-भीनी व्यंग्य वाली मुस्कान लाते हुए बोले ।)
khamosh samander
तपती धुप में कुछ छाव सी हु बहती धारा मे ठहराव सी हू सुबह का सूरज नही रात का चाँद हू मै अल्हड़ सी कोई धुन नही संगित का ठहराव हु मैं शीतल आकाश नही मैं तपती धरती सी बेहाल हू कोई देवी सी नही मैं सीता का वो त्याग हू मैं ममता की कोई मूरत नही मैं लक्ष्मण की वो रेखा हू मैं फुलो का गुलदास्ता नही मैं काटा नुकिला हू हू अबला वी मैं हू नारी भी तेरी सोच मे लिपटी वो काली नागिन भी मै फुलो की सेज नही मैं हू तीरो की सैया सी मैं हवा नही तुफान हू मैं तो बस बदलता संसार हूँ...................
Akash Chaurasiya
Maa part:-2 कड़ी धूप में पेड़ की शीतल छांव है, माँ तपती गर्मी में शीतल हवा की बयार है, माँ तपती गर्मी के बाद रिमझिम बरसात है, माँ रिमझिम बरसात के बाद मिलने वाला खूबसूरत एहसास है, माँ बरसात से बचाने वाली छतरी की छांव है, माँ कड़क ठण्ड में स्वेटर का एहसास है, माँ हर लम्हे(सुख,दुख,सर्दी गर्मी वर्षा...) में साथ है,माँ हम सब के जीवन की आधार है, माँ।। #Part:-2 Maa poem#nojoto Shweta Kumari Sandhya Jhummi Supriya Pandey Kumari Rinu Sewli Karmakar
Ramveer Gangwar
दिन हर दिन खुद मै रोज मारता हूं हा मै पीएचडी करता हूं तपती धूप में घर से आकर, अपना थैला रखता हूं बेहिचक आहट सी तब एक मै सुनता हूं उठ चल जा अब पानी ला दे, यही काम मै करता हूं हां मै पीएचडी करता हूं । अभी अपना कार्य प्रारंभ किया भी ना था भूखे पेट पीसी स्टार्ट किया भी ना था फिर किसी के प्याले में चाय जो मै भरता हूं हां मै पीएचडी करता हूं । तपती धूप या हो या बारिश जहा की बढ़े कदम ना ज्येष्ठ दोपहर में भूख मिटाने तब वरिष्ठ की, अपना डग में बढ़ता हूं हां मै पीएचडी करता हूं सांझ ढले मन चंचल हो, थक कर तन जब ओझल हो लंबी दूरी तय करके मै तब नाश्ते का इंतजाम करता हूं हां मै पीएचडी करता हूं ©रामवीर गंगवार
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