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Rakesh frnds4ever

#Train #दूर दूर तक ले जाते हुए भी कितनी पास रहती है #गंतव्य पर पहुंचा ही देने की आस रहती है,, कभी #कन्द्राओ से कभी #रेगिस्तानों से,, #पर्वत पठारों से, #घाटी #मैदानों से शहर ओर गावों से , सभी जगहों से गुजरती हुई जब सरपट दौड़ती है तो ,,

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Rumaisa

VATSA

#गंतव्य #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #hindiquotes #hindipoetry #yqdidi माना वक़्त ने बेमतलब के इमतेहान लिए  देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए  रुक गया क्यूँ, कालकोठरी में बैठा, मौन है  उठ ज़रा, मुझको बता दे,  तू कौन है  मूक मत बन चार फ़ीट की ये ज़ुबान लिए 

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माना वक़्त ने बेमतलब के इमतेहान लिए 
देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए 
रुक गया क्यूँ, कालकोठरी में बैठा, मौन है 
उठ ज़रा, मुझको बता दे,  तू कौन है 
मूक मत बन चार फ़ीट की ये ज़ुबान लिए 
देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए 

सो चले थकान में सब, तू तब भी जागता रहा 
सब थक गए, सब रुक गए, तू तब भी भागता रहा 
पोतले ये चेहरा, तैयार वो, फिर वही पहचान लिए
देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए 

कुछ मिट गए, कुछ हट गए, कुछ रंजिशो में बंट गए 
कमज़ोर किया बेमतलब का, धागे सारे वो कट गए 
निकल काली कुटिया से, है धरती सारा जहाँ लिए 
देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए 

वो मूढ़ सबसे अज्ञानी हैं, उनसे ना बक-बक करना तू 
जो कल की बस बातें करे, उनसे भी बचके रहना तू 
मत सुन पंडित मौलवी की, चल ख़ुदका इंसान लिए 
देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए 

तेरे ही सपने थे, तेरे ही आँखों में अब पानी है 
कोस उसे मत, चिल्ला तू, ये तेरी अपनी कहानी है 
कुछ जक्म भी अच्छे होते है, उठजा ये निशान लिए 
देख सूरज है निकला फिर नए अरमान लिए #गंतव्य #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #hindiquotes #hindipoetry #yqdidi 

माना वक़्त ने बेमतलब के इमतेहान लिए 
देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए 

रुक गया क्यूँ, कालकोठरी में बैठा, मौन है 
उठ ज़रा, मुझको बता दे,  तू कौन है 
मूक मत बन चार फ़ीट की ये ज़ुबान लिए 

Manju kushwaha

Parasram Arora

#गंतव्य.......

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माना क़ि  जीवन 
एक लम्बी  यात्रा है. और  यात्रा करने 
वाला  यात्री   भी  नहीं चाहता क़ि 
 उसकी यात्रा  कभी  थमे 
इसलिए   कई बार  वो मंद गति से  
चलने का प्रयास  भी  करता है  ताकि 
गंतव्य उससे दूरी  बनाये रखे  और 
यात्रा की  निरंतरता   जारी  रहे 
लेकिन कई यात्री  ऐसे भी होते हैँ 
जो तेज गति से चलकर  गंतव्य क़ेभी पार 
चले जाते हैँ  और  यात्रा  क़े 
   धीमी गति वाले  आनंद से 
वँचित  रह जाते हैँ

©Parasram Arora #गंतव्य.......

`sanju sharan

                   छत्तीस घंटे काव्या तेज़ तेज़ कदमों से ऑफिस जा रही थी तभी किसी के स्पर्श से चौक जाती हैं और एक भारी आवाज़ सुनकर पीछे मुड़ती है_"क्यों लेडी रावण डर गई। अचरज से देखती है  ईशान को और कहती है।  आप यहां? हा काव्या मेरी पोस्टिंग कोलकाता हो गई है और तुम कहां जा रही हो।  सिर झुकाए हुए काव्या कहती है_मैं भी ऑफिस ही जा रही हूं बैंक में काम करती हूं।। चलिए अच्छी बात है पर क्या आपके शहर में दोस्तो की खैरियत पूछी नहीं जाती, केवल मै ही बोले जा रहा हूं और आप चुप हैं क्या आप मुझसे बातें नहीं क

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                   छत्तीस घंटे
काव्या तेज़ तेज़ कदमों से ऑफिस जा रही थी तभी किसी के स्पर्श से चौक जाती हैं और एक भारी आवाज़ सुनकर पीछे मुड़ती है_"क्यों लेडी रावण डर गई। अचरज से देखती है  ईशान को और कहती है।  आप यहां? हा काव्या मेरी पोस्टिंग कोलकाता हो गई है और तुम कहां जा रही हो।  सिर झुकाए हुए काव्या कहती है_मैं भी ऑफिस ही जा रही हूं बैंक में काम करती हूं।।
चलिए अच्छी बात है पर क्या आपके शहर में दोस्तो की खैरियत पूछी नहीं जाती, केवल मै ही बोले जा रहा हूं और आप चुप हैं क्या आप मुझसे बातें नहीं क

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