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savita singh Meera

Adv Rudra varshney

इक छोटी सी #मै ने सब कुछ छिन लिया और फिर किसी की बातो मे फिर मै को देख लिया फिर सब कुछ #छिन सा रहा हे जैसे की आपने #varshneyrudra #rudrap #thought Love #Zindagi #India #alone

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इक छोटी सी मै ने सब कुछ छिन लिया और

 फिर किसी की बातो मे फिर मै को देख लिया फिर सब कुछ छिन सा रहा हे जैसे की आपने

©rudra varshney इक छोटी सी #मै ने सब कुछ छिन लिया और

 फिर किसी की बातो मे फिर मै को देख लिया फिर सब कुछ #छिन सा रहा हे जैसे की आपने

#varshneyrudra #rudrap #thought #Love #Zindagi #Nojoto #India 

#alone

Manjeet Sharma 'Meera'

#छिन गया बचपन कहां 😓

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छिन गया बचपन कहां लाचारगी पूछे। 
हाथ में कश्कोल क्यों है मुफ़्लिसी पूछे। 

जिन लकीरों पे उसे इतना भरोसा था
उन लकीरों ने दिया क्या ज़िंदगी पूछे। 

जो समंदर बीच रहकर भी रहा प्यासा
आब की कीमत उसी से हर नदी पूछे। 

वो हवस का शह्र है उस ओर मत जाना
जो गए वो खप गए क्यों दिल्लगी पूछे। 

क़ाफ़िया सुंदर था उसका बह्र भी कामिल
फिर ग़ज़ल में दोष क्योंकर शायरी पूछे। 

पुर-ख़तर रस्तों में भी खुद पा गए मंज़िल
मील का पत्थर कहाँ है आलसी पूछे। 

तुम कहां तक साथ मेरे जाओगी 'मीरा' 
इश्क़ में डूबी हुई दीवानगी पूछे। #छिन गया बचपन कहां 😓

प्रतिहार

आजादी की बधाई

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ये क्या दे रहे हो भाई, मुझे रास नहीं आई! 73सालो कि आजादी, हमें तो नहीं मिल पाई! 
आजादी की बधाई, हमें क्यो दे रहे हो भाई? 

बांधा गया है देखो ना हमें सवर्ण के बेड़ियों में! खाना शेरों का छिन छिन, बांटा जाता है भेड़ियो में! 
ये हांथों की बेड़ियाँ मेरी आज भी ना खुल पाई! 
 आजादी की बधाई, हमें क्यो दे रहे हो भाई? 

 तु खुश रह कि तुझे आजादी मिली आज थी, गोरो से! कैसी आजादी? गदहे भी जब जीत रहे हैं घोड़ो से! 
तुझसे ज्यादा काबिल होकर नौकरी नहीं मिल पाई! 
आजादी की बधाई, हमें क्यो दे रहे हो भाई? 

मुगलों से हम हि उलझे, अरबों को हमने मारा था! विर शिवाजी हम ही थे, राणा प्रताप हमारा था! 
सबसे पहले, हमने हि,आजादी कि बिगुल बजाई! 
आजादी की बधाई, हमें क्यो दे रहे हो भाई? 

पहला शहिद मंगल पांडे, या वृद्ध कुंवर कि बात करो! आजाद हिंद तक पैसो को, किसने पहुंचाया याद करो! 
हमने जन्मा वीरांगना, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई! 
आजादी की बधाई, हमें क्यो दे रहे हो भाई? 

छोड़ो खुशियों के दिन में अपने, दर्द को कितना खुर्दु मैं! हम ना होते भाई साब! पढते लिखते तुम उर्दू में! 
घुमो, नाचो, गाओ बोलो वन्दे मातरम् भाई! 
हां मगर, 
आजादी की बधाई हमें रास न आई!! 
लेखक-- पवन प्रतिहार आजादी की बधाई

POONAM SHARMA

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#OpenPoetry दुनिया न छिन मेरे परर इन पररो, से दुनिया कदमो मे मुझे डाल लेने दे,
मत छिन उन पल को मुझ से जो मेरे है ,
एक बार उड़ान भरने तोह दे ,फिर देख दुनिया मेरे कदमों मे होगी .

सुरेन्द्र कुमार शर्मा

भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन छत पर बिस्तर लगा, इकट्ठा सब सो जाते थे देर रात तक गपशप होती, गीत सुनाते थे मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

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स्कूल का पहला दिन भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

दृश्य उभरते हैं यादों में,  कितने ही अनगिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

रोज सवेरे उठकर जल्दी,  खेल-खेलने जाना
छुट्टी के दिन तो अकसर, दोपहरी में घर आना
सारे दिन ही मस्ती करना,हंसना और हंसाना
बूढ़ी दादी को तो मिलकर,जी भर खूब चिढ़ाना

खेल छोड़कर खाना-खाना, मीठी वो अनबन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

गर्मी की छुट्टी में सबका,  नानी के घर जाना
इतना शोर मचाना कि सब,देते लोग उलाहना
सत्तीताली, आईस-पाईस, खेल धमाल मचाना
डाल पेड़ पर झूला दिन भर, झूलें और झुलाना

खेल-खिलौने,  ठींगामस्ती, उम्र बड़ी कमसिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन
✍©#सुरेन्द्र_कुमार_शर्मा भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

सुरेन्द्र कुमार शर्मा

#raining भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन छत पर बिस्तर लगा, इकट्ठा सब सो जाते थे देर रात तक गपशप होती, गीत सुनाते थे मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

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गीत: बचपन के पलछिन

भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

दृश्य उभरते हैं यादों में,  कितने ही अनगिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

रोज सवेरे उठकर जल्दी,  खेल-खेलने जाना
छुट्टी के दिन तो अकसर, दोपहरी में घर आना
सारे दिन ही मस्ती करना,हंसना और हंसाना
बूढ़ी दादी को तो मिलकर,जी भर खूब चिढ़ाना

खेल छोड़कर खाना-खाना, मीठी वो अनबन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

गर्मी की छुट्टी में सबका,  नानी के घर जाना
इतना शोर मचाना कि सब,देते लोग उलाहना
सत्तीताली, आईस-पाईस, खेल धमाल मचाना
डाल पेड़ पर झूला दिन भर, झूलें और झुलाना

खेल-खिलौने,  ठींगामस्ती, उम्र बड़ी कमसिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन
✍©#सुरेन्द्र_कुमार_शर्मा #raining 
भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

Divya Jain

आसमां #Nojoto#heartfull#hindishayri

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जब गुजरते थे तेरी गलियों से मुस्कुरा लेते थे 
घर बदल कर तूने हमसे हंसने का हक भी छिन लिया 
हम तो मांगते थे तुझसे सूरज अपने हिस्से का 
तूने तो हमसे हमारा आसमान भी छिन लिया
                                
-दिव्या जैन #NojotoQuote आसमां
#nojoto#heartfull#hindishayri

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