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Alfaaj
मेरे दोस्त ये मुर्दों का शहर है , कोई नहीं समझेगा तुझे , चाहे कोई रोटी को तरसे या किसीका चिराग बुझे , आते तो बहुत हैं यहां हमदर्द बनके ताकि उनके काम सूझे , हम भी आये थे कमाने चार पैसे यहां , लेकिन चलती फिरती लाशो के बाजार मिले मुझे ©Alfaaj #लाशों के बाजार #sad_feeling #brockenheart #Loneliness Yogesh@@@ Amiya Bhattacharjee SwaTripathi Ravi Govind Dubey
pramod malakar
लाशों का अभी तो झांकी है +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ तूफान उठना अभी बांकी है , लाशों का अभी तो झांकी है । धधक रही है धरती सारी , मानवता का जलता राखी है ।। पहाड़ खड़ा है अधर्म का आगे , धर्म का बुझ रहा बाती है । इतिहास पुराना देखो तुम , हर एक का अपना साथी है ।। दुख के दरिया में डूब रहे हो , बवंडर उठना अभी बाकी है । मौज में धरा पर उछल रहे हो , मंद बयार का अभी बेला है । कश्मीर से कन्याकुमारी तक , जिहादी जमात का रेला है । हर तरफ है धुआं धुआं , हर इंसान अभी अकेला है ।। खौफनाक वक्त है आने वाला , हो रहा अंधेरा है । दिक्कत नहीं हमें खून के दरिया से , मौत के आगोश में हिंदुओं का मेला है । ख्वाहिशें हजार है अंतिम वक्त में , जल रहा है उमंग भी और वेदना अकेला है । मूर्खों का शिकार अभी बाकी है , दर्द जो मिल रहा जलवा शायद नहीं काफी है । तूफान उठना अभी बाकी है , लाशों का अभी तो झांकी है ।। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar #लाशों का अभी तो झांकी है।
Satendra Patel
अमृतसर में हिन्दुओ और सिखों की लाशों से भरी ट्रैन आती थी लिखा रहता था, "ये आज़ादी का नजराना" पहली ट्रेन पाकिस्तान से (15.8.1947)😢 अमृतसर का लाल इंटो वाला रेलवे स्टेशन अच्छा खासा शरणार्थियों कैम्प बना हुआ था । पंजाब के पाकिस्तानी हिस्से से भागकर आये हुए हज़ारों हिन्दुओ-सिखों को यहाँ से दूसरे ठिकानों पर भेजा जाता था ! वे धर्मशालाओं में टिकट की खिड़की के पास, प्लेट फार्मों पर भीड़ लगाये अपने खोये हुए मित्रों और रिश्तेदारों को हर आने वाली गाड़ी मै खोजते थे... 15 अगस्त 1947 को तीसरे पहर के बाद स्टेशन मास्टर छैनी सिंह अपनी नीली टोपी और हाथ में सधी हुई लाल झंडी का सारा रौब दिखाते हुए पागलों की तरह रोती-बिलखती भीड़ को चीरकर आगे बढे...थोड़ी ही देर में 10 डाउन, पंजाब मेल के पहुँचने पर जो द्रश्य सामने आने वाला था,उसके लिये वे पूरी तरह तैयार थे....मर्द और औरतें थर्ड क्लास के धूल से भरे पीले रंग के डिब्बों की और झपट पडेंगे और बौखलाए हुए उस भीड़ में किसी ऐसे बच्चे को खोजेंगे, जिसे भागने की जल्दी में पीछे छोड़ आये थे ! चिल्ला चिल्ला कर लोगों के नाम पुकारेंगे और व्यथा और उन्माद से विहल होकर भीड़ में एक दूसरे को ढकेलकर-रौंदकर आगे बढ़ जाने का प्रयास करेंगे ! आँखो में आँसू भरे हुए एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे तक भाग भाग कर अपने किसी खोये हुए रिश्तेदार का नाम पुकारेंगे! अपने गाँव के किसी आदमी को खोजेंगे कि शायद कोई समाचार लाया हो ! आवश्यक सामग्री के ढेर पर बैठा कोई माँ बाप से बिछडा हुआ कोई बच्चा रो रह होगा, इस भगदड़ के दौरान पैदा होने वाले किसी बच्चे को उसकी माँ इस भीड़-भाड़ के बीच अपना ढूध पिलाने की कोशिश कर रही होगी.... स्टेशन मास्टर ने प्लेट फार्म एक सिरे पर खड़े होकर लाल झंडी दिखा ट्रेन रुकवाई ....जैसे ही वह फौलादी दैत्याकार गाड़ी रुकी, छैनी सिंह ने एक विचित्र द्रश्य देखा..चार हथियार बंद सिपाही, उदास चेहरे वाले इंजन ड्राइवर के पास अपनी बंदूकें सम्भाले खड़े थे !! जब भाप की सीटी और ब्रेको के रगड़ने की कर्कश आवाज बंद हुई तो स्टेशन मास्टर को लगा की कोई बहुत बड़ी गड़बड़ है...प्लेट फार्म पर खचाखच भरी भीड़ को मानो साँप सुंघ गया हो..उनकी आँखो के सामने जो द्रश्य था उसे देखकर वह सन्नाटे में आ गये थे ! स्टेशन मास्टर छेनी सिंह आठ डिब्बों की लाहौर से आई उस गाड़ी को आँखे फाड़े घूर रहे थे! हर डिब्बे की सारी खिड़कियां खुली हुई थी, लेकिन उनमें से किसी के पास कोई चेहरा झाँकता हुआ दिखाई नहीँ दे रहा था, एक भी दरवाजा नहीँ खुला.. एक भी आदमी नीचे नहीँ उतरा,उस गाड़ी में इंसान नहीँ #भूत आये थे..स्टेशन मास्टर ने आगे बढ़कर एक झटके के साथ पहले डिब्बे के द्वार खोला और अंदर गये..एक सेकिंड में उनकी समझ में आ गया कि उस रात न.10 डाउन पंजाब मेल से एक भी शरणार्थी क्यों नही उतरा था.. वह भूतों की नहीँ बल्कि #लाशों की गाड़ी थी..उनके सामने डिब्बे के फर्श पर इंसानी कटे-फटे जिस्मों का ढेर लगा हुआ था..किसी का गला कटा हुआ था.किसी की खोपडी चकनाचूर थी ! किसी की आते बाहर निकल आई थी...डिब्बों के आने जाने वाले रास्ते मे कटे हुए हाथ-टांगे और धड़ इधर उधर बिखरे पड़े थे..इंसानों के उस भयानक ढेर के बीच से छैनी सिंह को अचानक किसी की घुटी.घुटी आवाज सुनाई दी ! यह सोचकर की उनमें से शायद कोई जिन्दा बच गया हो उन्होने जोर से आवाज़ लगाई.. "अमृतसर आ गया है यहाँ सब हिंदू और सिख है. पुलिस मौजूद है, डरो नहीँ"..उनके ये शब्द सुनकर कुछ मुरदे हिलने डुलने लगे..इसके बाद छैनी सिंह ने जो द्रश्य देखा वह उनके दिमाग पर एक भयानक स्वप्न की तरह हमेशा के लिये अंकित हो गया ...एक स्त्री ने अपने पास पड़ा हुआ अपने पति का 'कटा सर' उठाया और उसे अपने सीने से दबोच कर चीखें मारकर रोने लगी... उन्होंने बच्चों को अपनी मरी हुई माओ के सीने से चिपट्कर रोते बिलखते देखा..कोई मर्द लाशों के ढेर में से किसी बच्चे की लाश निकालकर उसे फटी फटी आँखों से देख रहा था..जब प्लेट फार्म पर जमा भीड़ को आभास हुआ कि हुआ क्या है तो उन्माद की लहर दौड़ गयी... स्टेशन मास्टर का सारा शरीर सुन्न पड़ गया था वह लाशों की कतारो के बीच गुजर रहा था...हर डिब्बे में यही द्रश्य था अंतिम डिब्बे तक पहुँचते पहुँचते उसे मतली होने लगी और जब वह ट्रेन से उतरा तो उसका सर चकरा रहा था उनकी नाक में मौत की बदबू बसी हुई थी और वह सोच रहे थे की रब ने यह सब कुछ होने कैसे दिया ? जिहादी कौम इतनी निर्दयी हो सकती है कोई सोच भी नहीँ सकता था....उन्होने पीछे मुड़कर एक बार फ़िर ट्रेन पर नज़र डाली...हत्यारों ने अपना परिचय देने के लिये अंतिम डिब्बे पर मोटे मोटे सफेद अक्षरों से लिखा था....."यह गाँधी और नेहरू को हमारी ओर से आज़ादी का नज़राना है " ! हिन्दुओ और सिखों की लाखों लाशों पर बनी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर नेहरू ने इस देश पर शासन किया भीष्म साहनी के उपन्यास से एक अंश। ©Satendra Patel #OneSeason
Prabhat malik
#लाशों के बोझ हम दबे जा रहे हैं #जयहिंदजयभारत Read my thoughts on YourQuote app at https://www.yourquote.in/prabhat-malik-9hjz/quotes/laashon-ke-bojh-se-hm-dbe-jaa-rhe-hain-kyuun-dhrm-ke-naam-pr-4h9vc
Ram Yadav
#बुलंद हो #हौंसला तो #मुठ्ठी में हर #मुकाम है, #मुश्किलें और #मुसीबते तो #ज़िंदगी में आम है, #ताकत रखो #बाज़ुओ में #लहरों के #खिलाफ तैरने की, क्योकि #लहरो के साथ #बहना तो #लाशों का काम है।
Shivam Tripathi
कभी पत्थरों पर फूल खिल जाते हैं कभी अजनबी अपने बन जाते हैं कभी लाशों को कफ़न तक नहीं मिलताकभी लाशों के ऊपर ताज महल बन जाते हैं tere liye
BROKENBOY
*कभी पत्थरों पर फूल खिल जाते हैं,*❣ *कभी अजनबी अपने बन जाते हैं!*❣ *कभी लाशों को कफ़न तक नहीं मिलता,*❣ *कभी लाशों पर ताजमहल बन जाते हैं!!*❣ *कभी पत्थरों पर फूल खिल जाते हैं,*❣ *कभी अजनबी अपने बन जाते हैं!*❣ *कभी लाशों को कफ़न तक नहीं मिलता,*❣ *कभी लाशों पर ताजमहल बन जाते हैं!!*❣
राजेश गुप्ता'बादल'
लाशों के बीच भी लाशों के बीच भी लाशों के बीच भी कुछ जिंदगीयां हैं जो पलती हैं, बजह हो गर मुस्कुराने की तो वहां भी चल पड़ती है। मातम तो दस्तूर है बादल इस इश्क ए जहांन का,
RAEESXADA
*कभी पत्थरों पर फूल खिल जाते हैं,*❣ *कभी अजनबी अपने बन जाते हैं!*❣ *कभी लाशों को कफ़न तक नहीं मिलता,*❣ *कभी लाशों पर ताजमहल बन जाते हैं!!*❣ J.J.Hirapara Pravin Kolhal