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Zoya Shaik
आपकी हैसियत की बराबरी कैसे करे साहेब, आपतो महलों में रहकर फरेब करने वाले, और हम झोपडी में रहकर इश्क़... Ishq ki qadar samajhlo jab tak aashiq tumhare sath hai... #महल #हैसियत #फरेब #झोपड़ी #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #yqzoya
unknown
लगे रहो तुम हमारी शख्सियत मिटाने में, एक दिन तुम्हारी हैसियत भी हम मिटाएंगे.. बनी बनाई ईमारतों पर राज करो तुम, अपनी झोपड़ियों के पुआल, हम खुद जुटाएंगे... ©Nishank Pandey #झोपड़ी
Dr Manju Juneja
Thoughts कबीरा तेरी झोपड़ी गल कटियन के पास करन गे सो भरन गे तू क्यों भयो उदास ©Dr Manju Juneja #कबीरजी #दोहा #तेरी #झोपड़ी #जलकटियन #के #पास #तू #उदास #Thoughts
Bhaskar Dwivedi
जब तुम गाँव की मुंडेर पर बैठोगी, वह समां कितना सुहावना होगा ! बैठकर कुछ तो सोचोगी, दिल में कुछ अरमान तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ ज़माने की तमाम खुश्क मुसीबतों से, कुछ देर ही सही दूर रहने का बहाना तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ मुफलिसी, और शहर की आपाधापियों से दूर, सुदूर, तन्हा आकाश तले, सर्द हवाओं का आसरा तो होगा! जब तुम गाँव की मुंडेर........ जब कुछ सोचने लगो तुम, लम्बी सांसों में कुछ शब्दों का बयां तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ शब्द जब तुम बुनने लगो, मर्म जब उनका समझने लगो ! तो बस उकेर लेना उन्हें मन के कैनवास पर ! लिखना उन्हें दिल की कलम से, यकीन मानों दिल की गहराइयों में एक प्यारा सा अहसास तो होगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ अहसास क्या है, मन की कोमल अनुभूति है, एक मधुर गुमनाम फूल की महक है ! अनदेखा सपना है, मन के तार जँहा प्रस्फुटित होते हैं ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ आंखे बंद कर महसूस करना, दिल की धड़कनों में तरंगे बज रही होंगी, बस लफ्जों में महसूस करना उन्हें, दिल को सुकून मिलेगा ! जब तुम गाँव की मुंडेर........ थककर चूर हुई जिंदगी की दोपहर से, एक ठंडी झोपड़ी सा आराम तो होगा ! रचना - भाष्कर द्विवेदी ©Bhaskar Dwivedi मुंडेर #जब तुम गाँव की मुंडेर पर बैठोगी #कविता #जमाना #दिल #dil #Aahsaas #Aakaash ऑंखें #dophar#झोपड़ी #Mountains
भगवान ukpedia
भ्रष्टाचार बरसों की मेहनत पर भारी चार रोज के सपने हो गये, गद्दी मंथरा की हो गयी अबकी राम बनवास ही रह गये,महलों की जगमगाहट मुस्कराते रही, झोपड़ी में रहता था जो, झोपड़ी का रह गया।बाबू वो अदबों वाला अचार के लिए आचार बेच आया, पेट भरने की आस में वो उम्र सारी काट गया, चार वक़्त की रोटी वाला दो जून की रोटी खेंच लाया। #भ्रष्टाचार
Ravi Aftab
दिन-रात, सुबह-शाम या के दोपहर में हो! किसी के लिए वक़्त कहाँ जब कोई शहर में हो! भले ही फूस के छप्पर, दीवारें क्यों न हों मग़र; बादशाह होता है,जब आदमी खुद के घर में हो! #गाँव #झोपड़ी #छप्पर
Golden singh... @
झोपड़ी तो यू बन जाते हैं जनाब महलो को बनने में समय लग जाते है।। हौशला तो कुछ करने का हम में भी है, परंतु पंखों के उड़ान में समय लग जाते है।। कुछ करने का जुनून तो सब मे है, परंतु सपने किनार लग जाते है।। हजार लक्षय में से एक लक्ष्य चुनते ही है, की उम्र हजार निकल जाते है।। झोपड़ी तो यू बन जाते है जनाब महलो को बनने में समय लग जाते है।। टूटे हौशले से कभी लक्ष्य पा न सके, नाव सामने खड़ी थी किनारे जा न सके।। लक्ष्य चुनने के मेले में हम यू गम हुए की अपने ही लक्ष्य को नजरअंदाज कर बैठे।। फिर कहते है कि वो मिला ही नही खुद से लक्षय को बेकार कर बैठे।। फिर बेरोजगार हुए घूमते रहे सड़को पर और अपना दोष सरकार पर लगा बैठे।। फिर पता चला कि हजार लक्ष्य के पीछे हार कर सपना नीलम कर बैठे।। फिर समझा कि महल की सपने देखते देखते हम झोपड़ी को भी नजरअंदाज कर बैठे।। हमारा लक्ष्य
हमारा लक्ष्य
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