सोचती हूँ न लिखना आता तो फिर क्या होता? अकेलेपन में कटता जीवन एकांत सरीखा होता, लिखकर बयाँ कर लेती अपने अंतर्मन के भाव को, कलम से बेहतर कोई नहीं जानता मेरे अनुभाव को, कलम से ही सीखा है सिर झुका कर स्व को कहना, बनी हूँ मृदुभाषी सोच यही कि बस लिखती रहना, लेखन के महत्त्व को रचनाकार ही समझ सकता है, लिख कर जनजागृत करने वाला वहीं एक प्रवक्ता है, सुसुप्त राष्ट्र को भी शांत हुँकार से,नींद से जगा देता है, क्रांति आ जाती समूल जब लेखक"शब्द"लिख देता है, लिखना एक तपस्या के समान ही एक कठिन तप है, बिन कहे जब चले कलम तो समझना यही तेरा जप है, सूक्ष्म अति सूक्ष्म विषय पर भी बख़ूबी लिख देता है, लेखक है साहब हर क़िस्से को जहन से समझता है। @निशा कमवाल ****लेखन का महत्व**** सोचती हूँ न लिखना आता तो फिर क्या होता? अकेलेपन में कटता जीवन एकांत सरीखा होता, लिख कर बयाँ लेती हूँ अपने अंतर्मन के भाव को, कलम से बेहतर कोई नहीं जानता मेरे अनुभाव को,