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Shubham Dobriyal

Satyajit Bhuniya

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Satyajit Bhuniya

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Satyajit Bhuniya

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Satyajit Bhuniya

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ashutosh anjan

🔶खुशियों की बरसात🔶
ज़िंदगी क़दम क़दम पर और  दुश्वार होती जा रही है,
अपनो से बिछड़ जाने के लिए तैयार होती जा रही है।

न इश्क़ का सावन आया न खुशियों की बरसात हुई,
साँसों  के दरमियाँ देखों अब  दीवार होती जा रही है।

ख़ुश-रंग मौसम  गुलज़ार समां अब कल की बात है,
हर चौराहा  हर गली अब  गुनहगार होती जा रही है।

ग़मो से तो ऐसा रिश्ता सा बनकर रह गया है 'अंजान',
रुख़्सती देते देते मेरी रूह अब बीमार होती जा रही है। #कोराकाग़ज़ 
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ashutosh anjan

स्याह  रातों  से  जानें  क्यों  अब  बंदगी  होने लगी है,
लब  ख़ामोश  है  फिर भी  अब  गुफ़्तगू  होने  लगी है।
आईनें में देख  लिया है  जिस  दिन  से  चेहरा  उसका,
जेठ  की  दोपहरी में  अब  बाद-ए-सबा  बहने लगी  है।
जिस दिन से बरसी है तेरी इनायत अब्र बनकर मुझ  पर,
दुनिया  तबसे  मुझें  मोहब्बत का  देवता  कहने लगी है।
रोज़ -रोज़ नई -नई ख़्वाहिशें ज़हन क्यों बढ़ती जाती है,
भीड़  इतनी कि दिल के  कूचें में घुटन सी होने लगी है।
दिल  आज़ाद  है  लेकिन  धड़कन  तेरी  मुट्ठी में  क़ैद है,
रहमतों की रात में रूह बदन छोड़ जाने को कहने लगी है।
मेरी मोहब्बत  का असर पानी जैसा हो  गया है  'अंजान',
रंगीनियाँ  छाई है ज़हाँ  में मग़र ज़िंदगी बेरंग होनें लगी है। (रहमतों की रात)
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ashutosh anjan

जंगल  के  जंगल  मकान  हुए  जाते  है,
एक एक करके शहर वीरान  हुए जाते है।

हम उनसे जख्मों का इज़हार कैसे करते,
जो मेरे तेज़ साँसों से परेशान हुए जाते है।

रेत की सीपियां  मिलने  लगी है  पानी में,
क्या दरिया भी अब रेगिस्तान हुए जाते है।

चलते  चलते  गाँव  से शहर  आ गए है हम,
रौशन बहुत है फिर भी बयाबान हुए जाते है।

तिश्नगी  फ़ैली  है  इस  कदर  ज़माने  में  अब,
आँखें बंद करके अंज़ाम से अंजान हुए जाते है। चलते चलते(ग़ज़ल)

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