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घर बनाया ही क्यूँ, जब जरूरत न थी। दिल नुमाया ही क्

घर बनाया ही क्यूँ, जब जरूरत न थी।
दिल नुमाया ही क्यूँ, जब हिफ़ाजत न थी,
ज़ब्र दिल पर करूँ क्यूँ, अब यह तू बता,
नज़्र-ए-वफ़ा करें क्यूँ भला, जब शराफ़त न थी।

दग़ा देंगे उन्हें क्यूँ हम, हमारी फ़ितरत न थी
कैसे हम मान लें कि, हमसे उल्फ़त न थी।
करती नज़रें रहीं, गुजारिशें अलहदा।
साथ चलते रहे क्यूँ, जब मुहब्बत न थी।

©HINDI SAHITYA SAGAR
  घर बनाया ही क्यूँ, जब जरूरत न थी।
दिल नुमाया ही क्यूँ, जब हिफ़ाजत न थी,
ज़ब्र दिल पर करूँ क्यूँ, अब यह तू बता,
नज़्र-ए-वफ़ा करें क्यूँ भला, जब शराफ़त न थी।

दग़ा देंगे उन्हें क्यूँ हम, हमारी फ़ितरत न थी
कैसे हम मान लें कि, हमसे उल्फ़त न थी।
करती नज़रें रहीं, गुजारिशें अलहदा।

घर बनाया ही क्यूँ, जब जरूरत न थी। दिल नुमाया ही क्यूँ, जब हिफ़ाजत न थी, ज़ब्र दिल पर करूँ क्यूँ, अब यह तू बता, नज़्र-ए-वफ़ा करें क्यूँ भला, जब शराफ़त न थी। दग़ा देंगे उन्हें क्यूँ हम, हमारी फ़ितरत न थी कैसे हम मान लें कि, हमसे उल्फ़त न थी। करती नज़रें रहीं, गुजारिशें अलहदा। #Hindi #SAD #Dil #poem #शायरी #hindi_poetry #hindi_shayari #hindisahityasagar #poetshailendra #poemByShailendra

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