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नदी के घाट पर भी घर सियासी लोग बस जाएं, तो प्यासे

नदी के घाट पर भी घर सियासी लोग बस जाएं,
तो प्यासे होंठ एक एक बूंद पानी को तरस जाएं।
गनीमत है कि मौसम पर हुकूमत चल नहीं सकती,
नहीं तो सारे बादल इनके खेतों में बरस जाएं।

-जमुनाप्रसाद उपाध्याय

©साहित्य संजीवनी
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