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भ्राता के संग बचपन बीता, भ्राता के संग बड़ा हुआ। भ्

भ्राता के संग बचपन बीता, भ्राता के संग बड़ा हुआ।
भ्रात प्रेम का दर्पण था वह,जिसके संग मैं बड़ा हुआ।।
खट्टा-मीठा प्यार लिए, प्रेम भरी तकरार लिए ।
उसकी गोदी में खेला था,गोदी में ही बड़ा हुआ।।
जब जब मेरे चोट लगी,झट पलकों पर उसने उठाया था।
मेरी हर मुश्किल में वह,सबसे पहले खड़ा हुआ ।।
कुदरत का खेल निराला है,किस्मत ने मुझसे छीन लिया।
निर्जीव हुआ है तन उसका, तन्हा बिल्कुल पड़ा हुआ।।

©Shubham Bhardwaj
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