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रुख से जमाने के,कभी पर्दा उठाकर देखो। खुशियों की च

रुख से जमाने के,कभी पर्दा उठाकर देखो।
खुशियों की चाहत में,अपना बनाकर देखो।।
दर्दोग़म की बातें, तुम खुद ही भूल जाओगे।
किसी रोते हुए मुसाफिर को,हँसाकर देखो।।
चाहत है अगर जिंदगी को खुशियों में ढालने की।
पतझड़ में भी कभी बहार लाकर देखो ।।
तन्हाई के आगे भी एक मंजर मिलेगा यारों ।
हर अजनबी को अपने माफिक बनाकर देखो।।

©Shubham Bhardwaj
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