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किसी शाम मैं उतर आऊंगा ,तुम्हारी अधपढी़ किताबों के

किसी शाम मैं उतर आऊंगा ,तुम्हारी अधपढी़ किताबों के दरम्यां.. जब तुम छू रहे होगे ,किन्हीं लफ्जों का ज़ेहन ..
तो मैं सकुचाया सा सिमट जाऊंगा ,उन आखिरी पंक्तियों में ..जो तुम्हें बताती होंगी ज़िन्दगी का आखिरी फ़लसफ़ा ........( इश्क़ है ) 
मैं लिखावट बन ,उभर आऊंगा तुम्हारी उंगलियो के पोरों से जिसमें कैद होगा तुम्हारी छुअन का एहसास 
कलम से स्याही की तरह छिटका तो जाऊंगा 
पर बिखर आऊंगा इश्क़ की तरह ......उकेरने को कोई मुकम्मल दास्तां .......जब तुम कलम से लिख रहे होगे 
किसी बोरिंग हिस्ट्री या जियोग्राफी जैसे नोट्स 
तब मैं चुपके से ,ज़ेहन का एक ख्याल बन उतर आऊंगा नोटबुक के आखिरी पन्ने के हिस्से ..या एक नीला रंग अख्तियार कर 
लिपट जाऊंगा तुम्हारी हथेलियों की लकीरों से 
मैं देखूंगा वहाँ मेरी ही तरह लिखे कितने नाम 
मैं तुम्हारी उम्र नहीं पढूंगा , उस वक़्त ना देखूंगा तुम्हारे भविष्य की रेखाएं 
मैं देखूंगा उन हथेलियों पर आने वाली शिकन 
जिसे तुम माथे से छुपा ओढ़े रहे थे हथेलियों पर ..
मैं उन्हें छूकर महसूस करूँगा .....
कि इश्क़ की हर दास्तां लबों से शुरू हो वस्ल पर नहीं जाती कुछ दास्तां अल्हड़ता या खामोशी से शुरू हो 
विरह की ओर जाती हैं ..कुछ प्रेम कहानियों का चिरस्थायी अंत नहीं होता 
और ना ही होते हैं उनके मुकम्मल मंजर ......कुछ प्रेम कहानियां ..
नदियों की तरह होती हैं ....जो बहती हैं बस ..
अनवरत ही .

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©Andy Mann
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