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कविता : "तुम आए" काली रात के अंधेरे, जीवन भर थे घ

कविता : "तुम आए"

काली रात के अंधेरे,
जीवन भर थे घेरे,
तुम आए,
और सुबह हो गयी....

तमाम रातें जो,
काटी थी अकेले,
कितने ख़्वाब,
बुने,उधेड़े गए थे।

जाने, अनजाने
जाने कितने?
डर और मायूसी,
दिल में ज़ब्त
किए हुए थे।

तुम आये,
नीरवता टूटी,
तंद्रा जागी,
सुबह हो गयी।
ज़िंदगी फिर से,
रोशन हो गयी।

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #Youme #तुम_आये

कविता : "तुम आए"

काली रात के अंधेरे,
जीवन भर थे घेरे,
तुम आए,
और सुबह हो गयी....

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