चीखती है, "चिल्लाती" है, मिन्नतें वो करती है मासूम निगाहों में वो अपना "दर्द" दिखाती हैं वास्ता देती "माँ-बहन" का उन "जालिमों" को हाथ जोड़, "अश्क" भर, "विनती" करती उनको हैवानियत की हद, "नोचते" उसको जानवरो सी कतरा-कतरा बहती "इज्ज़त" जिस्म की लहू सी ऐसे मानव क्या मानव? पशु से "अधम" जीवन वासना भरी मन में, कलंकित उनका ये जीवन पुरुष जितेन्द्रिय कहलाते फिर इसको लज्जाते है नारी "माँ" आधार पुरुष का हम क्यूँ भूल जाते है ना छोड़ते नन्ही बच्ची को बहनो को भूल जाते हैं क्षणिक सुख हेतु, जीवन नर्क उनका कर जाते हैं संस्कार ताक पर, शिक्षा ज्ञान विमुख करते पाप राक्षस सा हम करते, कोमल मन-शरीर पर वार मैं भी पुरुष हूँ अपराधी मातृ समाज का "कृष्णा" क्षमा प्रार्थी सबसे, रक्षा का अब वचन मेरा कृष्णा रमज़ान:_ बलात्कार (17/30) #कोराकाग़ज़ #kkr2021 #collabwithकोराकाग़ज़ #kkबलात्कार #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #अल्फाज_ए_कृष्णा #बलात्कार #rape