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ओढ़ चादर बादल की, ये अपने दाग़ छुपा तो लूं। पर जो

ओढ़ चादर बादल की,
ये अपने दाग़ छुपा तो लूं।
पर जो दूं आलोक नहीं,
फिर आत्म शील भुला न दूं।

मैं अपना अंश रहा बांटता,
फिर तम में एकाकी क्यूं?
हाँ श्वेत वस्त्र हैं पहन लिए,
पर राह सूफ़ी कैसे मैं बनूं?

©गुस्ताख़शब्द
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