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122 122 122 122 न ढूंढो मुझे अपने प

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न   ढूंढो  मुझे   अपने  परछाइयों  में
बसा  हूँ  तेरे  दिल  कि  गहराइयों  में

गुजरती   रही  साय  ज़ुल्फो  में  मेरी
तेरे    हुस्न   की    यार   रानाइयों  में

अहद इश्क का कर गया गर्क उल्फत
सितम  सहते है  हम  ये  तन्हाइयों में

जलाया  मुझे  मेरे  अपनों  ने  ही था
कहाँ  दम  चिरागों की रोशनाइयों  में

सबा  कह  रही  दास्ताँ  दर्द  की अब
रही   गूँजती   आहें    शहनाइयों   में

छुपा  बैठे  है   सीने  में   दर्दे उल्फत
कभी  सुन ले  आकर ये चौपाइयों में
        ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
19/1/2017
अहद - प्रतिज्ञा
सबा - ठंडी हवा

©laxman dawani
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