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ये शाम ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ, धनक के रंग

ये शाम ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ,
धनक  के रंग  पहने खिल  रहा ये आसमाँ।

सभी फिराक में  हैं अपनी वापसी को,
जो गए  भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ।

उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल,
गुज़र  चुका  इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।

इश्क़ खुश्बू है जो महके इस करीने से,
पाक  हो  जाती हवा  गुज़रे जो छूकर अर्ग़वाँ।

शाम की दहलीज़ पर ज़र-फ़िशाँ यादें हैं,
इक चाँद रोएगा चाँद देख, हर सूं आब-ए-रवाँ।

“मदीहा” ग़ज़लों में लज़्ज़त तो होगी ही,
कि उनमें ज़िक्र उसका आ ही जाता जहाँ-तहाँ।

–अबोध_मन//“फरीदा”


.

©अवरुद्ध मन ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ,
धनक  के रंग  पहने खिल  रहा ये आसमाँ।

सभी फिराक में है अपनी वापसी को,
जो गए  भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ।

उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल,
गुज़र  चुका  इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।
ये शाम ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ,
धनक  के रंग  पहने खिल  रहा ये आसमाँ।

सभी फिराक में  हैं अपनी वापसी को,
जो गए  भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ।

उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल,
गुज़र  चुका  इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।

इश्क़ खुश्बू है जो महके इस करीने से,
पाक  हो  जाती हवा  गुज़रे जो छूकर अर्ग़वाँ।

शाम की दहलीज़ पर ज़र-फ़िशाँ यादें हैं,
इक चाँद रोएगा चाँद देख, हर सूं आब-ए-रवाँ।

“मदीहा” ग़ज़लों में लज़्ज़त तो होगी ही,
कि उनमें ज़िक्र उसका आ ही जाता जहाँ-तहाँ।

–अबोध_मन//“फरीदा”


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©अवरुद्ध मन ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ,
धनक  के रंग  पहने खिल  रहा ये आसमाँ।

सभी फिराक में है अपनी वापसी को,
जो गए  भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ।

उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल,
गुज़र  चुका  इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।

ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ, धनक के रंग पहने खिल रहा ये आसमाँ। सभी फिराक में है अपनी वापसी को, जो गए भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ। उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल, गुज़र चुका इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ। #शायरी #शाम_और_इंतजार #अबोध_मन #she_fireflies_moon_herlove #अबोध_poetry #रहोगे_मेरे_हमेशा_हमेशा #अबोध_love #अबोध_ग़ज़ल #चाँद_इश्क़