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दीपक झा रुद्रा

अरमान है जिंदा दिलों में,हूं मैं धरा पर आसमानी मत सुनाओ यह हकीकत,जीतकर हारा हुआ हूं। कवि दीपक झा रुद्रा काव्य संगम परिवार संयोजक सह पत्रकारिता राष्ट्र हित में 🙏

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दीपक झा रुद्रा

#गौमाता #हिंदूसंस्कृति #घनाक्षरी
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दीपक झा रुद्रा

मीलों तक जाना छोड़ दिया,
                क्यों तुमने चलना छोड़  दिया?
यह बात गगन को   खटकेगी,
                पंछी   ने  उड़ना  छोड़  दिया।

लोगों    का  आना  जाना  है, 
                जीवन    का   यही तराना  है।
क्यों गैरों से जब बिछड़े तब, 
                अपना घर चलना छोड़ दिया।

एकाकीपन इस जीवन    के ,
                 मेलों    में    आता   रहता है।
किंतु यह जटिल समस्या है,
            खुद   में  क्यूंँ  रहना छोड़ दिया?

जो    होंठ   तेरे    दर्दों में भी ,
              है सुबक नहीं  पाया  अबतक।
उन होंठों से क्या शिकवा हो,
             जो तुझको जपना छोड़  दिया।

ख़्वाहिश हर पल जिंदा रखना,
             तुम अल्हड़  सी  मुस्कानों की।
किस फ़रेब की  दुनियांँ   खातिर?
                 तुमने   हंँसना   छोड़ दिया।

दीपक झा "रुद्रा"

©दीपक झा रुद्रा #dilemma
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दीपक झा रुद्रा

#हिंदी #गज़ल
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दीपक झा रुद्रा

#प्रेम हिंदी #प्रेम
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दीपक झा रुद्रा

–जलहरण घनाक्षरी छंद –

स्वप्न अच्छे दिन का जो देशवासियों  ने देखा
आंँतों लगी आग ये बुझाऊंँ कैसे  बोलो   जी...

बीता  है दशक  प्रतियोगी का तैयारी  में  तो
अपने डिग्रियों को मैं जलाऊंँ कैसे बोलो जी...

कई थी   संस्थाएं   जब    की   तैयारी  शुरू...
सारी आज बिक रही बताऊंँ कैसे बोलो  जी..

छप्पन की छाती ने ही देश को छला है आज
खोया है सितारा जो दिखाऊंँ कैसे  बोलो जी...

©दीपक झा रुद्रा #हिंदी_छंद  #घनाक्षरी 

#Journey
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दीपक झा रुद्रा

वो पीने से ही चढ़ती है नशा का  दोष   क्या  देना?
जो मंजिल याद ही न हो पता का  दोष क्या देना?

कभी घायल हुए जुगनू से मत  बोलो दिखा  राहें 
पतंगा खुद जला है फिर दिया का दोष क्या देना!!

खुदी बिगड़ा हूं उल्फत के नशीले दौड़  में   मैं  तो
नहीं मां का कभी माना पिता का दोष क्या   देना!!

यहां गुल ही अड़ी नाहक न  खिलने को हुई  तत्पर
जहां मौसम में सावन है धरा का दोष   क्या    देना!!

मेरी किस्मत  मेरे   मुट्ठी  में  उसने   कैद   कर   भेजा...
न मुमकिन प्यार पाना है खुदा का  दोष   क्या  देना!!

हरेक  अरमान   के  भट्टी  में  मैं  जलता  रहा  दीपक
कि अब खुद थक चुका हूं मैं हवा का दोष क्या देना।।

©दीपक झा रुद्रा #हिंदी_ग़ज़ल

#Love
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दीपक झा रुद्रा

जज़्बात मर गए हैं उल्फत की  राह   में.....
कोई न मिला ऐसा जो मुझको समझ  ले!!

वादा था एक कस्म एक एक ही था प्यार.....
दस बीस कोशिशें कि कोई न टिक सका....!!

सबने   खुदी से मतलब  रखा  है  गैर   को....
खुदगर्ज बोल खुद में   झांका   नहीं   कोई...!!

जीने से  यहां जुर्म है मरने  से    है   खुशी....
लेकिन ये बुजदिली क्यों मुझमें नहीं  आई...!!

रोशन किया है खुद  जलाकर  के  बारहा...
वो मुझसे कह रहा है दीपक नहीं हो  तुम....!!

हर शख्स परेशां है ज़िंदगी से मगर  फिर...
ज़िंदगी को मौज़ लेने बनाया है खुदा क्यों....!!

एक रास्ता है प्यार कि जीना ही सिख लो....
दिल में हो मुहब्बत तो मौत आएगी  नहीं....!!

©दीपक झा रुद्रा #शेर 

#candle
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दीपक झा रुद्रा

ज़िंदगी   तुम    नाराज़  न  हो बस
कल को लाऊंगा जीत कर दुनियां 

आज है पहली  पहल ज़हमत  का
कल  को  देगी नई  सहर   दुनियां।

©दीपक झा रुद्रा #जिंदगी
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दीपक झा रुद्रा

#छंद #हिंदी #कविता #काव्यखंड 

#Kathakaar
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दीपक झा रुद्रा

मेरे   मन   में     लाख    प्रश्न हैं,
उत्तर आख़िर  कहां    मिलेंगे।
आज जलाए  धवल दीप   जो
क्या उनको बस धुआं मिलेंगे?

आज  अभागा  बना  हुआ  है
क़िस्मत  के     किरदारों   पर।
मेहनत के  तासीर  से    बोलो
कब ताशों के   मक़ाँ   मिलेंगे?

मारा वक्त ने  जबसे   मुझको
तब   से   बस    ख़ामोशी   है।
मन में  सजी   आदलत    को 
आख़िर कब खुशजुबां मिलेंगे?

आज दिखाया  है   जुगनू   ने
मंज़िल तक   का  डगर  मुझे।
सूरज आकर  बस जाएं पर
मन को कब आसमां मिलेंगे?

दीपक झा रुद्रा

©दीपक झा रुद्रा
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