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Raz Nawadwi

#worldpostday

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#ग़ज़लغزل: ३२०
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2122-1122-1122-22

माँ ये कहती है बुढ़ापा भी दग़ा देता है
जिसको भी देखो वही आके रुला देता है //१

याद रखता है बशर दौरे गुज़श्ता को मगर 
वो फ़रिश्ता है जो माज़ी को भुला देता है //२

रूह सिलती है हर इक लम्हा बदन का कपड़ा
वक़्त जिसपे किसी दिन कैंची चला देता है //३

अपने नाक़रदा फ़रायज़ की नदामत के सबब
आदमी लाश को अच्छे से सजा देता है //४

रिज़्क़ देता है ख़ुदा किर्मों को चाहे तो मगर
अच्छे अच्छों को वो मिट्टी में मिला देता है //५

शाहे मख़लूक़ का अदना सा हूँ नौकर मैं ऐ 'राज़'
भर के ख़ुद को भी जो मुट्ठी में उड़ा देता है //६

~राज़ नवादवी®

©Raz Nawadwi #worldpostday

Raz Nawadwi

#worldpostday

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#ग़ज़लغزل: ३१९
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2122-1122-1122-22

माँ ये कहती है बुढ़ापा भी दग़ा देता है
जिसको भी देखो वही आके रुला देता है //१

याद रखता है बशर दौरे गुज़श्ता को मगर 
वो फ़रिश्ता है जो माज़ी को भुला देता है //२

रूह सिलती है हर इक लम्हा बदन का कपड़ा
वक़्त जिसपे किसी दिन कैंची चला देता है //३

अपने नाक़रदा फ़रायज़ की नदामत के सबब
आदमी लाश को अच्छे से सजा देता है //४

रिज़्क़ देता है ख़ुदा किर्मों को चाहे तो मगर
अच्छे अच्छों को वो मिट्टी में मिला देता है //५

शाहे मख़लूक़ का अदना सा हूँ नौकर मैं ऐ 'राज़'
भर के दुन्या भी जो मुट्ठी में उड़ा देता है //६

~राज़ नवादवी®

©Raz Nawadwi #worldpostday

Raz Nawadwi

#ग़ज़लغزل: ३१४
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2122-1212-22

जिस्म में जैसे रोग होते हैं
'राज़', ऐसे भी लोग होते हैं //१

सिर्फ़ चाहे से कुछ नहीं होता
अच्छे कामों के जोग होते हैं //२

सच में सुख-दुख तो कुछ नहीं होता 
अपने कर्मों के भोग होते हैं /३

रोज़ मरती है ज़ीस्त तिल तिल कर
रोज़ हम ज़ेरे सोग होते हैं //४

#राज़_नवादवी
(एक अंजान शाइर)
💞💞

©Raz Nawadwi #Janamashtmi2020

Raz Nawadwi

#sunlight

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#ग़ज़लغزل: १६०
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दिल में तो जज़्बा नहीं छोड़ा मुहब्बत के लिए
आदमी अब गोलियां लेता है शहवत के लिए //१

तल्ख़ हो हर चीज़ थोड़ी, चटपटी, नमकीन भी
ख़र्च करता है वो पैसे ख़ूँ में हिद्दत के लिए //२

मर्द बस इज़्ज़त नहीं करता है औरत ज़ात की 
जब कि उसका जीना मरना सब है औरत के लिए //३

बंद है बाज़ार, दारू भी नहीं मिलती कहीं 
करना पड़ता है क़वायद अब तो शर्बत के लिए //४

बाद में हो जाती हैं गुर्दे की दस बीमारियाँ
लोग पीते हैं शुरू में शानो शौक़त के लिए //५

आदमी ही लालची है, क्यों न औरंगज़ेब हो
भाई को भी मार देता है वसीयत के लिए। //६

हमको इक लैला ही दे दो ऐ ख़ुदा गर दे सको
चाहिए दैरो हरम किसको इबादत के लिए //७

'राज़' जब छूने गए तो गिर गए गश खा के हम
कुछ हसीं चेहरे बने हैं सिर्फ़ चाहत के लिए //८

#राज़_नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸 #sunlight

Raz Nawadwi

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#ग़ज़लغزل: १५९
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है तरीका ये नहीं हर आम खा कर देखिए
वो पका है या नहीं, पहले दबा कर देखिए //१

दूसरों को मार कर खाने से पहले क्यों नहीं
आप अपना भी लहू थोड़ा बहा कर देखिए //२

बिकने वाले स्वार्थ की मंडी में कब बिकते नहीं
है नहीं विश्वास तो बोली लगा कर देखिए //३

आपको सज्दे फ़रिश्ते भी करेंगे शर्त है
दूसरों पर भी ख़ुशी अपनी लुटा कर देखिए //४

आप ख़ुद ही जान जाएँगे हवा का रुख़ है क्या 
एक मुट्ठी धूल तो पहले उड़ा कर देखिए //५

दुश्मनी और उम्र भर की, ये क़सम भी ख़ूब है
मुझसे दो दिन प्यार तो पहले निभा कर देखिए //६

आपके रुख़ पे चमक आ जाएगी सौ चाँद की 
बस कि पलकों पर मेरी यादें सजा कर देखिए //७

अब शिकायत है कि गर्मी से मरे जाते हैं आप
आपने ही तो कहा था दिल जला कर देखिए //८

ज़िंदगी पोशीदगी में ही भली लगती थी 'राज़'
क्या ज़रूरी था मियाँ पर्दा उठा कर देखिए //९

#राज़_नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸

Raz Nawadwi

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#ग़ज़लغزل: १५८
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आपका हर बात पे क्या मुस्कुराना ठीक है?
आपको लगता है क्या इतना ज़माना ठीक है? //१

आपने ही प्यार की शर्तें रखी थीं, उज्र क्यों?
आप ही कहते थे चोरी से कमाना ठीक है //२

आ गया जब हाथ ज़ानू पे तो तुम घबरा गए
पाँव तुमको जबकि लगता था दबाना ठीक है //३

खेलना तुम कर चुके, बारी है मेरे खेल की
तुम तो बस बैठे रहो, मेरा निशाना ठीक है //४

गर पड़े पैसे की ख़ातिर ख़ूँ बहाना शह्र में
फिर पसीना गाँव में रहकर बहाना ठीक है //५

आप गाएँ जो लगे अच्छा ख़ुदा के वास्ते
मेरे लब पे देशभक्ती का तराना ठीक है //६

ज़ोर से क्यों पढ़ रहे हो, गर नहीं कलमा है याद
बात ऐसी है तो ख़ाली बुदबुदाना ठीक है //७

होगी दिल्ली ख़ुशनुमा, पर हैं मज़े भोपाल में
इस जगह का कुल मिलाकर आबोदाना ठीक है //८

'राज़' को मंज़ूर है सब, प्यार से जो भी मिले
बोसा भी दे दो अगर तो मेहनताना ठीक है //९

#राज़_नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸

Raz Nawadwi

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#ग़ज़लغزل: १५७
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न मिले बोसा अगर तो, ये अधर तन्हा है
तू नहीं है तो जवानी का सफ़र तन्हा है//१

खेत सूने हैं, मकाँ सूने, डगर तन्हा है 
तन्हा था पहले सफ़र, अब तो हज़र तन्हा है //२

किसको बतलाए कहानी वो शबे फ़ुरक़त की 
बर्क़ से अपनी जुदा होके शरर तन्हा है //३

तेरे जाने से गली कूचे हैं सूने सूने
ज्यूँ बसंती के बिना रामनगर तन्हा है //४

कौन पूजेगा उसे रोज़, चढ़ावा देगा 
तेरे बिन सह्न में पीपल का शजर तन्हा है //५

तेरे कपड़े भी हैं खूँटी पे टंगे तन्हा से
और चप्पल भी तेरी, जाने जिगर, तन्हा है //६

कुछ भी दिखता नहीं वीरान मनाज़िर के सिवा
तू नहीं है तो नज़ारों की नज़र तन्हा है //७

ऐ मेरी जाने तमन्ना ऐ मेरी जाने ग़ज़ल 
इक तेरे जाने से ये पूरा ही घर तन्हा है //८

'राज़' इक वो नहीं तन्हा जो अकेले में जिए
जिसको भी लगता है तन्हाई से डर, तन्हा है //९

~राज़ नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸

Raz Nawadwi

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#ग़ज़लغزل: १५६
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प्यार के सूखे गुलाबों से महक उठती है
सिक्के चलते नहीं, पर उनसे खनक उठती है//१

जब भी तू देखती है नज़रें चुरा कर मुझको
पास के पेड़ पे बुलबुल भी चहक उठती है //२

इतने नज़दीक न आओ कि मेरी नस नस में
तुझको पा लेने की इक दम से सनक उठती है //३

सच में मिल जाएँ तो अंजामे मुहब्बत क्या हो
सोचने से ही मेरी साँस बहक उठती है //४

कैसे भर लूँ तुझे बाँहों में उठा कर मुतलक़
जबकि तू हाथ भी रखने से मसक उठती है //५

हाय वो तेरा चिंहुँक उठना मेरे छूने से 
जैसे कच्ची कली इकदम से चटक उठती है //६

वस्ल के बाद कहाँ उठती हैं वैसी मौजें
हिज्र में जैसी कि रह रह के कसक उठती है //७

जब मैं जाता हूँ उसे छोड़ के सरहद लड़ने 
मुँह को आँचल में छुपा कर वो फफक उठती है //८

हमने अपने लहू से 'राज़' लिखी है ये ग़ज़ल
इसके हर शेर से क़ातिल की महक उठती है //९

#राज़ नवादवी© راز نوادوی
🆁🅰🆉 🅽🅰🆆🅰🅳🆆🅸

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