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कर्म गोरखपुरिया
औरत सम्माननीय है ©कर्म भक्त कवि [आशीष मिश्रा] औरत के गर्व मे पलकर औरत के शरीर से निकलकर औरत की जवानी को नीगलकर एक समय के बाद मर्द कहने लगता है कि औरतें बड़ी बेशर्म होती है MAHAK kHAN
Anil Ray
💫✨तुम माता सीता को भूलते रहे✨💫 मर्द को जन्म ही नही देती खुद भी मर्द बन सकती हूँ मैं जब भी जरूरत रहे पर..... सदियों से सदा स्त्री रही हूँ मैं। और शायद! ऐसे ही तुम्हारा पौरुष सदा पालन-पोषण करती रहती हूँ मैं। दर्द का असीम सागर-सी सरिता पर.. हरेक रक्तरंजित बूंद तड़पाती रहती मुझे आज तक दर्द से कभी आह तक नही। मेरे तन से निकलकर एहसान फरामोश तेरे मूंह से कभी भी कोई वाह तक नही। मैं सहती रही दर्दे-गमों को युगों से ही ज़ालिम जमाने को मेरी परवाह नही। हर माह पानी जैसे खून बहाया है मैंने ताकि तुम्हारे चेहरे पर लालिमा आये। इसलिए नही कि मेरी काबिलियत को कमजोरी मान मुझ पर उंगली उठाये। मैं नित्य निभाती किरदार शिद्दत से मेरे तुमने फिर भी नियमग्रंथ बना दिया मेरे लिए मेरी ही इजाजत के बगैर.... क्या तुम्हारी इज्जत अधिक है या ऐसे दिनों-दिन बढ़ जाती है समाज। हमारी कठोरता पिघलकर नरम ही रही दुखों में भी हम ख़्वाहिशों में झूलते रहे। श्रीराम तुम्हारे लिए पुरूषोत्तम बन गये.. परन्तु तुम माता सीता को भूलते रहे....! ©Anil Ray 💫✨तुम माता सीता को भूलते रहे✨💫 मर्द को जन्म ही नही देती खुद भी मर्द बन सकती हूँ मैं जब भी जरूरत रहे पर..... सदियों से सदा स्त्री रही हूँ म
Ankita Shukla
बहुत भीड़ है यहां अपनों की कतार से निकलकर देखा अपना कोई नहीं पर par अपने सब है यहां ©Ankita Shukla बहुत भीड़ है यहां अपनों की कतार से निकलकर देखा अपना कोई नहीं पर par अपने सब है यहां
Mili Saha
// पहली बारिश // उलझन में ऐसा उलझा मौसम की पहली बारिश भूल गया, ज़िंदगी कितनी आगे निकल गई पीछे देखना ही भूल गया, वो हथेली पर पड़ती हुई बारिश की पहली बूंद का एहसास, ज़िन्दगी के सफ़र में, जाने कब कहांँ छूट गया उसका साथ, आज बरसो बाद जब तन्हाई में, बैठा था खिड़की के पास, बादलों की गड़गड़ाहट और तेज बिजली की आई आवाज़, खिड़की से बाहर झांँककर देखा,थे उमड़ते घुमड़ते बादल, देखकर उनकी लुकाछुपी याद आ गया बचपन का वो पल, कैसे बादलों को देख कर, बारिश का इंतजार हम करते थे, मस्ती करने की सारी योजना पहले ही बना लिया करते थे, सोच ही रहा था कि सहसा ही, रिमझिम सी आवाज़ आई, बारिश की अनगिनत बूंदे, खिड़की के शीशे से आ टकराई, देखकर बारिश की बूंदों को, मन कहीं ख्यालों में खो गया, दिल के कोने से बचपन निकलकर, बारिश में भीगने चला, बेफिक्र मस्ती में झूमने लगा ऐसे मानो दुनिया से अनजान, ना माथे पर कोई शिकन ना, उलझन भर रहा ऊंँची उड़ान, कभी आसमान निहारता कभी पानी में छप छपाक करता, तनिक भी चिंता नहीं बीमार होने की, ऐसी मस्ती है करता, आंँखों को बंद कर मुस्कुराहट के साथ बाहें फैलाता है ऐसे, दोनों हाथों से जैसे बारिश की, हर बूंद को समेटना चाहता, इतने में कुछ दोस्त भी पहुंँच जाते लेकर काग़ज़ की कश्ती, फिर तो रोके भी किसी के न रुकेगी ऐसी चल पड़ती मस्ती, ज़मीन पर गड्ढों में भरे जल में तैर रही अनगिनत कश्तियांँ, पानी उछलते एक दूजे पर, मासूमियत भरी वो मनमर्जियांँ, पुकार रहे मम्मी पापा दादा दादी, किसी की नहीं है सुनता, बरसात की आखिरी बूंँद तक, बचपन मस्ती करना चाहता, हाथ पैरों में लगे कीचड़ कपड़ों का भी हो गया है बुरा हाल, पर मन है कि रुकने को तैयार नहीं ये बचपन भी है कमाल, तभी अचानक ही बंद हो गई खिड़की तेज़ हवा के झोंके से, मानों ख़्वाब में था और जगा दिया है किसी ने गहरी नींद से, मैं तो वहीं बैठा था, किन्तु ये मन बचपन की सैर कर आया, कल्पना में ही सही, मौसम की पहली बारिश में भीग आया, कितनी सुंदर वो तस्वीर, सच में कितना सुखद एहसास था, बारिश की बूंदों में भीगा हुआ एक एक क्षण बेहद खास था, हमने खुद को इतना उलझा कर रखा है, इस दुनियादारी में, कि खुद के लिए जीना ही भूल गए जीवन की इस क्यारी में, हर रंग मिलेगा भीगकर तो देखो मौसम की पहली बारिश में, दिल फिर से बच्चा बन जाएगा, मौसम की पहली बारिश में।। ©Mili Saha #Barsaat // पहली बारिश // उलझन में ऐसा उलझा मौसम की पहली बारिश भूल गया, ज़िंदगी कितनी आगे निकल गई पीछे देखना ही भूल गया, वो हथेली पर पड़त
keshav
alfaz_dilon_ke_
jai shankar pandit
खुद पर भरोसा करने का हुनर सीख लो सहारे कितने भी सच्चे हो एक दिन साथ छोड़ ही जाते हैं ।। नाम उन्हीं का होता है, जो बस्ती से निकलकर हस्ती बन जाते हैं। ©jai shankar pandit खुद पर भरोसा करने का हुनर सीख लो सहारे कितने भी सच्चे हो एक दिन साथ छोड़ ही जाते हैं ।।नाम उन्हीं का होता है, जो बस्ती से निकलकर हस्ती बन जा