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दीपक पंडित
तेरी आन रहे तेरी शान रहे जीवित तेरा सम्मान रहे मैं रहूं चार दिन या न रहूं जिंदा मेरा हिंदुस्तान रहे गीत नया गाऊंगा,गीत नया गाऊंगा
गीत नया गाऊंगा,गीत नया गाऊंगा
read morekumaarkikalamse
ख़ामोश रहने की सलाह देते हैं अक्सर वो लोग, जिन्हें चिल्लाकर लोगो को चुप कराने की आदत है! #कड़वा_सच #चिल्लाकर #चिल्लाना #kumaarsthought #ख़ामोश
#कड़वा_सच #चिल्लाकर #चिल्लाना #Kumaarsthought #ख़ामोश
read moreAbhishek Singh Rathore
"मेरा हर जिक्र उसकी फ़िक्र से जुदा होगा मैं उसका नाम किसी गीत में न गाऊंगा" "मेरा हर जिक्र उसकी फ़िक्र से जुदा होगा मैं उसका नाम किसी गीत में न गाऊंगा" ~ @DrKumarVishwas
"मेरा हर जिक्र उसकी फ़िक्र से जुदा होगा मैं उसका नाम किसी गीत में न गाऊंगा" ~ @DrKumarVishwas
read more#maxicandragon
घुन खुद परेशान आखिर गया कहाँ मेरा अनाज चिल्ला चिल्लाकर चिखता रहा कितना बेरहम हो गया समाज #Sadharanmanushya ©#maxicandragon घुन खुद परेशान आखिर गया कहाँ मेरा अनाज चिल्ला चिल्लाकर चिखता रहा कितना बेरहम हो गया समाज #Sadharanmanushya
घुन खुद परेशान आखिर गया कहाँ मेरा अनाज चिल्ला चिल्लाकर चिखता रहा कितना बेरहम हो गया समाज #Sadharanmanushya
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
मैं पतझड़ गाऊंगा।। आज मैँ पतझड़ गाऊंगा, उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा। जो आस की जननी रही सदा, मैं अमर उसे कर जाऊंगा।, धरती बंजर ये बोल रही, चिड़िया भी मुख है खोल रही। वीरान पड़े हैं बाग ये देखो, डाली बिन पत्ते डोल रही। मन मे आस लिए डोले, अन्तर्मन भी खुल खुल बोले। नवजीवन का संचार लिए, बीज उड़े हौले हौले। बगिया भी मन्द मुस्काती है, श्रृंगारोत्सव की बेला है। संग झूमेंगे उसके सहोदर भी, पता झूम रहा जो अकेला है। दुख की बदली जब जब छाये, आशाएं तभी पनपतीं हैं। घना अंधेरा जो दिख जाए, दीप-लौ तभी दमकतीं हैं। जन्मोत्सव है आज आस की, आज मैं जी भर गाऊंगा। आज मैँ पतझड़ गाऊंगा, उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा। जो आस की जननी रही सदा, मैं अमर उसे कर जाऊंगा।, पतझड़ कहती, अवसान मेरा, एक सुखद लाभ पहुंचाएगा। जब भी होगी मेरी विदाई, बादल भी घिर घिर छायेगा। शुष्क धरा जल की बूदें, भीनी महक जगाएगी। निर्जीव पड़ी ये पत्ती भी, यौवन पा कर शर्माएगी। परम् सत्य है, गांठ बांध लो, हर सुबह रात के बाद हुई। मेरा चर्चा तो आम रहा, जब नवजीवन की बात हुई। एक सत्य पतझड़ बोली, अवसान सुखद भी होता है। सुबह तेरी होगी एक दिन, क्यूँ पकड़ माथ तू रोता है। इस परमसत्य की आभा में, चमक चमक मैं गाऊंगा। आज मैँ पतझड़ गाऊंगा, उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा। जो आस की जननी रही सदा, मैं अमर उसे कर जाऊंगा।, ©रजनीश "स्वछंद" मैं पतझड़ गाऊंगा।। आज मैँ पतझड़ गाऊंगा, उमड़ घुमड़ मैं गाऊंगा। जो आस की जननी रही सदा, मैं अमर उसे कर जाऊंगा।, धरती बंजर ये बोल रही,
रजनीश "स्वच्छंद"
कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ।। कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। कद तेरा जग में बढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। तेरा दूध लहू बन दौड़े रग में,यौवन भी तुझपे वार रहा। है खेद जरा जयचंदों की,हिम्मत फिर भी न हार रहा। तू जननी, तू माता मेरी,विश्वकर्मा रचनाकार तू ही। तू ही भाल का चन्दन है,कुंडल कवच श्रृंगार तू ही। तेरी आभा ही लिए चले हम,निशा-दिवस और चार पहर। ये धरती तेरी, अम्बर तेरा,कस्बा नगर और गांव शहर। जीवन तेरे नाम करा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। ये भुजा तेरी, ये भुजबल तेरा,शत्रुबल क्षीण कर आया हूँ। शत्रुदलन का भाव लिए मैं,रिपु को दीन कर आया हूँ। तेरे शौर्य की मादकता में,बन गज रण में झूमा हूँ। मुंडमाला लिए गले मे,हो रौद्र शत्रुदल में घूमा हूँ। आंख न कोई उठने पाए,सजग तेरे संतान खड़े हैं। सहिष्णु तो हम रहे सदा,कर में तीर-कमान पड़े हैं। शोणित से लाल धरा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ,मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। ©रजनीश "स्वछंद" कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ।। कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ, मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। कद तेरा जग में बढ़ा कर आया हूँ, मैं वन्दे मातरम गाऊंगा।
कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ।। कदमों में शीश चढ़ा कर आया हूँ, मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। कद तेरा जग में बढ़ा कर आया हूँ, मैं वन्दे मातरम गाऊंगा। #falconfilms19
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