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hitesh panwar
स्कूल में हम यार हर रोज देरी से जाते थे फिर लेट लाइन में खडे होके सिंघम के डन्डे खाते थे पहला पीरियड हमेशा हम खेल मैदान में बिताते थे यार इकट्ठे होके हम बडी शरारत करते थे लंच में खाना खुदका छिपा यारों का छिन खाते थे लंच से पहले लडकियों के टिफीन भी खाली मिलते थे सच बताउं यारों के मन लंच ओर गेम पीरियड मे ही लगते थे यार इकट्ठे होके हम बडी शरारत करते थे पी.टी.आई सिंघम के साथ हमारी बडी जबर्दस्त पटती थी हम आगे आगे वो हमारे पीछे पीछे भगती थी फूटबाल खलने सारे दोस्त बडे शोक से जाते थे फिर जो भी गोल करता उसकी पेन्ट जरुर ही फटती थी कबड्डी खेलते वक्त यारों की शर्ट भी तो फटती थी फिर सेफ़्टी पिन लगाके इज्जत यारों की बचाते थे यार इकट्ठे होके हम बडी शरारत करते थे 2017 का बैच सारे स्कूल में रोनक रखता था यार बस यार का गाना हर दोस्त के दिल में बजता था कुछ गुस्से वाले तो कई नरम दिल के होते थे यार इकट्ठे होके हम बडी शरारत करते थे #स्कूल#लाइफ#फनी#कविता#यादें#kmpublicschool#bhiwani
Karunjot Kala
चलो सौदा कर ले खुशियां तुम रख लो,यादे में सपने तुम रख लो,झूठे वादे में चलो ना, तुम उसे रख लो और तुम्हे में। #Nojoto #Nojotopost #NojotoHindi #Love #विचार #कविता #यादें
SnehaD Gupta ( writer)
बचपन और क्रिकेट वो बचपन का भी क्या जमाना था, हाथों लकड़ी का बैट और दिल क्रिकेट का दिवाना था। हर गली मे बच्चे खुद को एक वेहतरीन खिलाड़ी समझते थे। ना खाने पीने का होश, ना ढंग से कभी नहाना था। सुबह उठ कर जैसे तैसे, बस खेल के मैदान जाना था। छक्के चौके यूँ लगाते थे हम, जैसे आज नहीं घर जाना था। हर गली, हर नुक्कड़ में सब हमारे खेल का दिवाना थे। वो बचपन का भी क्या जमाना था, हाथों लकड़ी का बैट और दिल क्रिकेट का दिवाना था। स्नेहा गुप्ता #Cricket #कविता #यादें #कहानी #कला #विचार #शायरी #बचपन
shaukiyashayari
Yowhatapp पे ऑनलाइन दिखती है पर मेसेज सेंड नहीं होता । इंस्टा एफबी पर हर रोज होती है पर अब प्रोफ़ाइल सीन नहीं होता । और शायरी लिखना ग़ज़लें पढ़ना incept पे महफ़िले ज़माना सब बहाना है। ये तो जरिया है , महज मकसद तो उस तक बात पहुंचाना होता है। Shaukiya Shayar Vivek #ignore #एकतरफा #कविता #यादें
chhavi kamakar
यादें तो हैं ना (वह दिन) रातें कभी दिन बनकर गूजरती, दिन कभी चांदनी होकर संवरती,, संग बिताए एक-एक पल जन्नत जैसी लगती थी, तेरा नम,मेरा गम,एक-एक पल धूल जैसी उड़ती थी,, यादें तों हैं ना, तू जिस पर इतना मरती थी ,, ना डरती ना मरती थी, बस गम को हँस-हँस के रो लेती थीं, जानी थी परेशानी थी,बस गम का काँटा चुन-चुनकर हटानी थी,, यादें तो हैं ना, तू जिस पर इतना मरती थी,, ©chhavi kamakar (कविता) यादें तो हैं ना (वह दिन)