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Stories related to तन्नू वेड्स मन्नू

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Rock star

मन्नू #pyaarimaa Rajan Lalit yadav #ज़िन्दगी

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Manju Tomar

lovebeat #November kreta #23 November #Manju Tomar #मुझ मन्नू को गालीब बना डाला ❤️

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LOL

Song of d night : यूँ ही (तनु वेड्स मनु) #रोजकाडोजwithkaushalalmora #आबाद #kaushalalmora #yqdidi #रात #yourquote #yopowrimo #ठसाठस

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मैंने रात के कई टुकड़े चुने
ठसाठस भरे फिर नज़्मों में
मैंने ख़्वाबों से सौदेबाज़ी की
कुछ हर्फ़ों को आज़ादी दी
मैंने तुमको फिर याद किया
ख़ुद को फिर आबाद किया
©KaushalAlmora Song of d night : यूँ ही (तनु वेड्स मनु)
 #रोजकाडोजwithkaushalalmora
#आबाद 
#kaushalalmora
#yqdidi
#रात 
#yourquote 
#yopowrimo

Neha Pant Nupur

नमन मन्नू भंडारी जी 🌸#mannubhandari हिंदी साहित्य की जानी मानी शख्सियत, नई कहानी आंदोलन की अग्रदूत मन्नू जी को अलविदा कहा ही नहीं जायेगा, #favouritewriter #feminismisequality

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🌸नमन मन्नू भंडारी जी🌸

©Neha Pant Nupur नमन मन्नू भंडारी जी 🌸#mannubhandari


हिंदी साहित्य की जानी मानी शख्सियत, नई कहानी आंदोलन की अग्रदूत मन्नू जी को अलविदा कहा ही नहीं जायेगा,

Shilpi Signodia

शादी का घर है। चारो ओर भगदड़ मची हुई है। सबसे ज्यादा बोझ मा के सिर पर था। मा: अरे रामू! फूलो की बंदनवार लगवा दी सब जगह। रामू: हा माजी, हो ह

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Odhni शादी का घर है। चारो ओर भगदड़ मची हुई है। सबसे ज्यादा बोझ मा के सिर पर था।
मा: अरे रामू! फूलो की बंदनवार लगवा दी सब जगह। 
रामू: हा माजी, हो ह

Kr. Mannu

रोज़ रोज़ तुम रूठो, रोज़ रोज़ मना लूँ.. राहत का शेर समझा है क्या ? होंठो से लगाऊं तो वाह..चुभ जाऊँ तो आह.. गुलाब का पेड़ समझा है क्या ? का #मन्नू

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Kr. Mannu

#mohabbatein जीने के लिए चाहा था तुम्हें, तुम्हें चाहने के लिए जीने लगे अब। सांसें वस्ल से पहले थम भी जाए, फिक्र कहां.. इस बात की अब। इस ज #मन्नू

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Dr Jayanti Pandey

भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाने को चिट्ठी पहुंची हर दफ्तर हर थाने को। प्रधानाचार्य जी भी अति उत्साहित थे उच्च आदर्श सिखाने को बड़े समर्पित थ #yqdidi #jayakikalamse #anti_corruption_day

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भ्रष्टाचार विरोधी दिवस......




(कृपया पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाने को 
चिट्ठी पहुंची हर दफ्तर हर थाने को।

प्रधानाचार्य जी भी अति उत्साहित थे 
उच्च आदर्श सिखाने को बड़े समर्पित थ

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने लगी , कर #कविता

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युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२

सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद ।
पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३

करता विनय किसान है , खूब पड़े अब ठण्ड़ ।
देखो गर्मी की फसल , दे जाती है दण्ड़ ।।४

सर्दी आयी झूम के , लियो रजाई तान ।
अन्दर-अन्दर आप भी , करिये प्रभु का ध्यान ।।५

ठण्ड़ी के दिन में यहाँ , बनते लोग महान ।
हफ्ता भी जाए चला , करें नहीं स्नान ।।६

कहते मन की बात को , प्रखर हृदय को थाम ।
आज सजन के नाम से , बीती ठण्ड़ी शाम ।।७

अम्मा-अम्मा बोलता , बालक वह नादान ।
अम्मा बातों में लगी , दिए नहीं अब ध्यान ।।८

अम्मा मुझको चाहिए , ऊपर वाला चाँद ।
बेटा पहले भर यहाँ , तू अपना यह नाँद ।।९

मुझको जाना ही नही , अम्मा से अब दूर ।
क्या करना पढ़कर यहाँ , मैं अच्छा लंगूर ।।१०

आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहे :- युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने #कविता

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आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहे :-

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने
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