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Anamika
शास्त्रार्थ आता तुमको तर्क वितर्क में दोषी ठहराए मुझको। #cinemagraph #ब्लॉक #अनब्लॉक #तर्क_वितर्क #शास्त्रार्थ #तूलिका
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 *शास्त्रार्थ में क्रोध आने का अर्थ है – हार मान लेना* *जैसा कि सभी जानते हैं कि आद्य शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार ऐतिहासिक शास्त्रार्थ चला था.उस शास्त्रार्थ में निर्णायिका थीं – मंडन मिश्र की धर्मपत्नी "देवी भारती".* *हार-जीत का निर्णय होना बाक़ी था, लेकिन शास्त्रार्थ के अंतिम दौर में "देवी भारती" को अचानक किसी आवश्यक काम से जाना पड़ गया.* *जाने से पहले देवी भारती ने दोनों विद्वानों के गले में फूलों की एक एक माला डालते हुए कहा, ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में आपकी हार और जीत का फैसला करेंगी.लोगों को यह बात विचित्र लगी परन्तु आद्य शंकराचार्य ने मुस्कराते हुए सर झुकाकर उनकी बात को स्वीकार कर लिया.* *देवी भारती वहाँ से चली गईं और शास्त्रार्थ की प्रक्रिया चलती रही.* *जब देवी भारती वापस लौटीं तो शास्त्रार्थ सुन रहे अन्य विद्वान उनको बताने के लिए आगे बढ़े कि उनकी अनुपस्थिति में क्या क्या चर्चा हुई.* *लेकिन देवी भारती ने उन्हें रोक दिया और खुद ही अपनी निर्णायक नजरों से आद्य शंकराचार्य और मंडन मिश्र को बारी-बारी से देखा...और आद्य शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में विजयी घोषित कर दिया.* *वैसे वहाँ उपस्थित ज्यादातर दर्शक भी यही मान रहे थे लेकिन उनको भी आश्चर्य था कि बिना शास्त्रार्थ को सुने देवी भारती ने एकदम सही निर्णय कैसे सुना दिया.* *एक विद्वान ने देवी भारती से अत्यंत नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की – हे देवी! आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं, फिर वापस लौटते ही आपने बिना किसी से पूछे ऐसा निर्णय कैसे दे दिया?* *देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया – जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है और उसे अपनी हार की झलक दिखने लगती है तो वह क्रोधित होने लगता है.* *मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की ताप से सूख चुकी है, जबकि शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भाँति ताजे हैं,इससे पता चलता है कि मेरे पति क्रोधित हो गए थे.* *विदुषी देवी भारती की यह बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी दर्शक उनकी जय जयकार करने लगे.* *आज पहले की तरह शास्त्रार्थ नहीं होते हैं लेकिन सोशल मीडिया ने दूर दूर रहने वालों को शास्त्रार्थ का माध्यम उपलब्ध करा दिया. सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा (शास्त्रार्थ) का परिणाम भी देवी भारती के सिद्धांत से ज्ञात किया जा सकता है.* *अगर किसी बिषय पर कोई चर्चा हो रही हो और कोई व्यक्ति नाराज होकर तर्क और तथ्य देने के बजाय अभद्र भाषा बोलने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि वह व्यक्ति अपनी हार स्वीकार कर चुका है.* *अज्ञानता के कारण अहंकार होता है और अहंकार के टूटने से क्रोध आता है जबकि विद्वान् व्यक्ति हमेशा तर्क और तथ्य की बात करता है और विनम्र बना रहता है.* अपनी दुआओं में हमें याद रखें 🙏 बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'शिवाया ' ASTRO सर्व समाधान Numerologist Tarot Card Astrology Vastu Remedies Expert & other modalities ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 *शास्त्रार्थ में क्रोध आने का अर्थ है – हार मान लेना* *जैसा कि
Sanjeev Prajapati
5 वक्त की हनुमान चालीसा बाद में पढ़ लेना । अगर सच्चे सनातनी हो तो हर रोज 5 प्रश्न खुद से जरूर करना । 1. राम चंद्र जी ने भरत को राजा (सत्ता) का धर्म क्या बताया था ? 2. शंकराचार्य का मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ किस मूल बिंदु पर हुआ ? 3. बाल गंगाधर तिलक की देश की परिभाषा क्या थी ? 4. भगत सिंह ने कैसे कानून के खिलाफ असेम्बली में बम फेंका था ? और आखिरी 5. अगर धर्म के मूल में अर्थ है तो देश की बैंकिंग और मौद्रिक व्यवस्था कहां से नियंत्रित है ? ©Sanjeev Prajapati 5 वक्त की हनुमान चालीसा बाद में पढ़ लेना । अगर सच्चे सनातनी हो तो हर रोज 5 प्रश्न खुद से जरूर करना । 1. राम चंद्र जी ने भरत को राजा (सत्त
Ankit Pathak
मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ (Read caption) मैं राम हूँ, मैं श्याम हूँ मैं वेद और पुराण हूँ मैं पितृ हूँ, मैं मातृ हूँ मैं ही तो शास्त्रार्थ हूँ मैं मान हूँ, अभिमान हूँ मैं स्त्री का
Sanjeev Prajapati
5 वक्त की हनुमान चालीसा बाद में पढ़ लेना । अगर सच्चे सनातनी हो तो हर रोज 5 प्रश्न खुद से जरूर करना । 1. राम चंद्र जी ने भरत को राजा (सत्ता) का धर्म क्या बताया था ? 2. शंकराचार्य का मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ किस मूल बिंदु पर हुआ ? 3. बाल गंगाधर तिलक की देश की परिभाषा क्या थी ? 4. भगत सिंह ने कैसे कानून के खिलाफ असेम्बली में बम फेंका था ? और आखिरी 5. अगर धर्म के मूल में अर्थ है तो देश की बैंकिंग और मौद्रिक व्यवस्था कहां से नियंत्रित है ? ©Sanjeev Prajapati 5 वक्त की हनुमान चालीसा बाद में पढ़ लेना । अगर सच्चे सनातनी हो तो हर रोज 5 प्रश्न खुद से जरूर करना । 1. राम चंद्र जी ने भरत को राजा (सत्ता
RockShayar
Divyanshu Pathak
सत सत नमन... हमें शंकराचार्य को पढ़ना चाहिए। देवियों और सज्जनों, आज चर्चा विशेष प्रयोजन के साथ है। आज समाज में धर्म को लेकर एक संकीर्ण दृष्टिकोण देखने को मिल रहा है, कुछ लोग धर्म के मर्
abhishek manoguru
#IndiaFightsCorona चहारदीवारी को बिना लांघे , किताबों से दूरी बनाकर , खुद को एक दायरे में समेटकर , गुण और विचारों से मेल खाते चंद लोगों से मिलकर , कुछ नया सीखने-जानने के अनुभव की लालसा खत्म कर , एक निश्चित दिनचर्या में स्वयं को पिरोकर , पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर रूढ़ियों में बांधकर भी यदि आप खुद को सूक्ष्म मुद्दों पर बहस के योग्य समझते हैं , देश दुनिया वेद पुराण धर्म धार्मिक-ग्रन्थों पर शास्त्रार्थ , तर्क-कुतर्क भी कर लेते हैं और आपको सर्वज्ञता का अनुभव हो रहा है तो , निश्चित ही कलयुग में ईश्वर ने अवतार ले लिया है और वो आप ही हैं क्योंकि ये आत्मज्ञान नहीं तो क्या जो आपको बिना मेहनत मिल गया है , एक कमरे के अंदर ही पीपल के पेड़ की छाँव में बिना बैठे 😂 © मनोगुरु ©abhishek manoguru चहारदीवारी को बिना लांघे , किताबों से दूरी बनाकर , खुद को एक दायरे में समेटकर , गुण और विचारों से मेल खाते चंद लोगों से मिलकर , कुछ नया सीखन
Pushpvritiya
कहते हैं पिता उस दानी को समसुप समान हृदय होगा, प्राण प्रिय सुता बिन उसका, कैसा अरूणोदय होगा...... कि बीज दिया और लहू भी और स्वेद भी और नीर भी, और स्वांस भी दी होगी अवश्य इसमें न कोई संशय होगा...... फिर क्यूं तुमने जीवन देकर, यूं जड़ता का मान किया, हे पिता...यूं निज सुता का, ऐसा कन्यादान किया........ कि धिक्कारों में सो लेगी, वो हाहाकार में डोलेगी, और पिता से बोलेगी......... कि रूधिर भी था और स्वांस भी, अस्थियां और मास भी....... जीवन होकर भी प्राण विहीन, ऐसी क्यूं मैं मानी गई, क्यूं शास्त्रार्थ तुम्हारे में, मैं मानुष न जानी गई...... कि अस्थियां भी टूट रही, मास देह भी छोड़ रहा, बहा रूधिर कईयों दशक, और स्वांस स्वांस को जोड़ रहा..... तुम नभ मेरा आधार भी थे, अब मैं हूं आधार बिना, अब आओ भी तो धन लेकर धन देकर ही जल पीना............. तेरे वचनों की अस्तु थी, क्या मैं दान की वस्तु थी........... अवमान जीया,अपमान पीया निज को जीवित समशान किया, और हे पिता कहो निज सुता का क्यूं ऐसा कन्यादान किया.......... @पुष्पवृतियां . ©Pushpvritiya #दानकीवस्तु कहते हैं पिता उस दानी को समसुप ही हृदय होगा, प्राण प्रिय सुता बिन उसका, कैसा अरूणोदय होगा...... कि बीज दिया और लहू भी
Anita Saini
घूँघट पौराणिक, वैदिक हिंदू संस्कृति का अंग न था स्त्री पुरूष के रहन सहन में भेदभाव का रंग न था स्त्री के अस्तित्व पर अवांछित प्रतिबंध न था लोक लाज का घूँघट से वांछित संबंध न था स्त्री को भी शिक्षा शास्त्रार्थ का समान अधिकार था मनवांछित जीवन साथी, वर चुनने का अधिकार था योग्य वर की खोज में पिता पुत्री का स्वयंवर करते थे देश परदेश के विशिष्ट अतिथियों में से श्रेष्ठ वर चुनते थे तब यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः जीवन का आधार था उस समय पुरूष को स्त्री का स्वतंत्र रूप स्वीकार था शनै शनै विदेशी आक्रांताओं के अधीन होते गए मन कर्म के साथ बुद्धि विवेक भी मलिन होते गए। तुर्कों की कुदृष्टि से बचाने को स्त्री को घूँघट ओढ़ाने लगे विचार बदलते गए स्त्री स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने लगे! बाद इसके ये हिंदू संस्कृति संस्कार का अभिन्न अंग बन गया स्त्री के गुण अवगुणों को परखने का समाज का ढंग बन गया अगर स्त्री वेशभूषा पर तर्क दे वो मुँहफट निर्लज्ज होती है हाँ! पर पुरूष के भद्दे कटाक्ष सही व नीयत स्वच्छ होती है घूँघट पौराणिक, वैदिक हिंदू संस्कृति का अंग न था स्त्री पुरूष के रहन सहन में भेदभाव का रंग न था स्त्री के अस्तित्व पर अवांछित प्रतिबंध न था