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Dheeraj Patwal
मैं फिर से जीना चाहता हूं, तुम्हारी मुस्कान देखना चाहता हूं । तुम पहले की तरह नाराज हो जाओ न , मैं तुम्हे मनाना चाहता हूं।। ©Dheeraj Patwal पहले की तरह #Moon
Safeer Khan
पहले की तरह हाँ तुम अभी भी मुझे परेशान करती हो ,बिल्कुल वैसे ही पहले तरह। वो तुम्हारा मुझे गालों पर ज़ोर से दांत काटना ,मेरे 10मिनट तक सँवारे हुए बालों को एक सेकंड में बर्बाद करना ,मेरे नोट्स चुरा ले जाना और घंटो तक पूछने पर भी न बताना ,याद है मुझे आज भी यादों में ही सही पर हाँ तुम मुझे आज भी परेशान करती हो। याद करता हूँ आज भी तुम्हारा प्यार, तुम्हारी बातों का वो अपनापन ,छोटी छोटी बातों पर तुम्हारी concern. वो कमर से रौशन तुम्हारा यौवन वो हल्के गुलाबी लिबास में आज भी तुम मेरे ख्वाबों में आकर मुझे हमेशा की तरह हैरान करती हो , हाँ हमारे अलग होकर भी मेरे ख़यालों में ही सही तुम अपनी खूबसूरती से मुझे हैरान करती हो। बिल्कुल पहले की तरह क्यों ये खयाल चीखते हैं चिल्ल्लाते हैं वो किये हुए वादे याद दिलाते हैं ,जब वक़्त नहीं लौटता तो क्यों ये पुराने पल दिल में याद बनके आ जाते हैं। क्यों ये बार बार मुझे तुम्हारी मेरा पानी का बोतल भारती हुई तस्वीर दिखाते हैं, मैं तुम्हे इसलिए लिख रहा हूँ कि शायद तुम रोक लो इन्हें ताकि मैं तोड़ लूं ये भरम मेरा की तुम अब भी मुझे प्यार करती हो पहले की तरह••••• पहले की तरह #nojotohindi
Rudra Pratap Singh
जो कुबूल नहीं इश्क़, तो नामंज़ूर ही कर दो। छोड़ दो मुझे, मेरे हाल पर, अब बदस्तूर ही कर दो। -रूद्र प्रताप सिंह (Plz Refer To Caption For Meaning) बदस्तूर*: पहले की स्थिति में, पहले की तरह
inder Dhaliwal
अब मै हर एक के सामने तेरा कर जिक्र चुका हूं। इतना टूटा हूं कि मै इन पत्तों की तरह बिखर चुका हूं। ©inder Dhaliwal इन पत्तों की तरह। #leaf
Arpit jha
सुबह तो अब भी होती है पेहले की तरह बस फर्क इतना है morning का मेसेज नहीं आता मेरे moblie में तुम्हारा pehle की तरह (Arpit झा) #morning ka message पहले की तरह
Devang shukla
रोशनी हो चाहे अंधेरा हो। तुम अगर साथ हो तो सवेरा हो। तुम वो लम्हा हो जो हर पहर रहती हो। फिर पास हो या कहीं और रहती हो। बस मिलना एक आध बार हुआ तुमसे। याद ऐसे हो जैसे शाम हर रोज बा दस्तूर रहती हो। लब इस फ़िराक में है कब लब से लम्श हो। तुम दूर हो जैसे अशरफी फकीरों से दूर रहती हो। साथ नहीं चलती हो क्यों,जिंदगी ऐसे लगती है। जैसे बिना सेल के कोई घड़ी रूक के चलती हो। तुम्हारे तबस्सुम में सबसे कीमती सुकून है। मौजूदगी में फूलों से भी बेहतर महकती हो। तस्वीर मेरी जो तुम्हारे साथ है,देख कर लगता है। जैसे काली तख्ती पर सफ़ेद स्याही चमकती हो। बा दस्तूर: पहले की तरह तबस्सुम: मुस्कान
Vidushi Saini
Naresh Kumar
जंगल के शेर बनो, सर्कस के नहीं। Motivational Speaker ©Naresh Kumar अगर सूर्य की तरह चमकना चाहते हो, तो पहले सूर्य की तरह तपना सीखो।