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RJ SHALINI SINGH
निज़ाम खान
parineeta
एक सफ़र में हूँ, रेल की... जो चलती जा रही है... कई जंक्शन पार हो गए मैं बैठी हूँ, ठीक खिड़की के सामने देखती हूँ.... शाम होगयी है... ठंडी हवाएं आ रहीं.... स्पर्श करती है मुझे... मेरे बाल खुले बिखर रहें... मैं बस सोचती हूँ, ये पल.... जहां मैं हूँ अकेली.... इस यात्रा में, और जानती नहीं मेरा गंतव्य........ भाग -१ एक सफ़र में हूँ, रेल की... जो चलती जा रही है... कई जंक्शन पार हो गए मैं बैठी हूँ, ठीक खिड़की के सामने
Ek villain
सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और राजनीतिक दलों की मतदाताओं को लुभाने के मुफ्त की राजनीति में अंतर बताने का प्रयास किया है कल्याणकारी योजना आवश्यक है परंतु रेवड़ी संस्कृत देश को बंगलो की ओर ले जाती है श्रीलंका और पाकिस्तान की स्थिति हमारे सामने है शिक्षा और इलाज के अतिरिक्त कुछ और नहीं होना चाहिए देवड़ी संस्कृति आदमी को नकारा बना देती है यह देश की प्रगति में बाधक होती है लेखक ने सही कहा है कि देश में मुकत कोई नहीं ऐसी योजना चाहिए जिनसे लोग सक्षम बनकर राष्ट्र निर्माण में योगदान कर ©Ek villain रेवाड़ी कल्चर से मुक्त हो देश नहीं तो हो सकता है बड़ा नुकसान
Divyanshu Pathak
भरतपुर के महाराजा सूरजमल जाट को राजस्थान का "प्लेटो" कहा जाता हैं 25 दिसंबर उनके बलिदान का दिन है । 😊💕💕🍫🍫🙏☕☕☕☕☕☕😊😊😊😊😊😊 : 12/25, 1:27 PM #Panchhi🐤: महाराजा सूरजमल या सूरज सिंह (फरवरी 1707 – 25 दिसम्बर 1763) राजस्थान के भरतपुर के हिन्दू जाट
अविनाश कुमार
ट्रेन की खिड़कियों से क्या देखा है तुमने कभी झाँक कर, चलती ट्रेन की खिड़कियों से, देखोगे तो पाओगे पीछे छूटता घर-बार, छूटते सारे रिश्ते, छूटती हुई दुनिया
Gudiya Gupta (kavyatri).....
मैं सार्वजनिक एक जंक्शन सी तुम रेल की भांति आते हो तुम्हारा क्या तुम तो चले गए पर मुझे कंपित कर जाते हो लबालब छलकता दर्द का गागर तुम सुकून से मुस्काते हो यात्री ..यात्रा ..यातनाएं हर बार वही दोहराते हो...! ©Gudiya Gupta (kavyatri)..... #सार्वजनिक जंक्शन
हिंदीवाले
कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरियाणा के यारों ने कभी न हमको डाली घास हास्य-व्यंग्य के कवियों में लासानी समझे जाते हैं हरियाणवी पूत हैं- राजस्थानी समझे जाते हैं ~अल्हड़ बीकानेरी ©हिंदीवाले कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर कैसा विकट समय का फेर कहलाते हम- बीकानेरी कभी न देखा- बीकानेर जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में है जो रेवाड़ी के पास पर हरि