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कवी - के. गणेश
कष्ट कोणाचे त्याग कोणाचा कोण कोणाचा मालक आहे.. आपल्या ताटातील भाकरीचा आज जनक कोण आहे..? भाकरीचा जनक
भाकरीचा जनक
read moreNaina ki Nazar se
"कौन रुकेगा" कौन किसके लिए रुका औऱ कौन यहां रुकेगा वक़्त का पहिया है जनाब न रुका है न ही रुकेगा चले जाना तुम कभी होकर यहां से बेपरवाह हवाओं में होगा ज़िक्र तेरा फिजाओं को भी तेरी चाह शहर में तेरी यादों को आने से कौन टोकेगा मीठी भिनी खुश्बुओं को महकने से कौन रोकेगा दीदार का न होगा जुनून न तेरी चाहत का इंतज़ार आने पर तेरे आहट नही होगी और नैनो पर होगा रुखसार परिंदे को पिंजरे से मुहब्बत करने से कौन रोकेगा अजनबी जब हो ही गए तुम शहर जाने से कौन रोकेगा उसके रहते उससे ही एक चाहत सी हो गयी सुबह-शाम की सलाम-दुआ इसकी आदत सी हो गयी किताबों में लिखी इबारत तेरे सिवा कौन समझेगा जिंदगी तेरे फ़लसफ़े को जो तू न चाहे तो कौन रोकेगा --------------------------------- @ दिनेश चन्द्र, मुगलसराय 05 दिसम्बर / 2021 ©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता
दिनेश चंद्र की कविता #ज़िन्दगी
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🙏🙏 रूठ बैठा संवाद चुप है उपस्थिति ऐसी कि अनुपस्थिति चुप है अब मैं तुझमे शेष हूँ नज़रो में तुम्हारे हृदय और होठो पर एक चुप विशेष हूँ बीच दोनो के चुप अब अनकहे संवाद दम तोड़ रहे है स्वछंद थी तुम्हारी बातें हाँ को ना और ना को हाँ में बदल रहे है मानकर चाहता नैनो में ख्वाब बनकर जिंदा रहना, बचा रहना दोनो के दरमियाँ अब तो बिना बन्धन,रिश्तो के बिना जो थे संवाद ,चुप है उम्र भर वह बरसती रही नदी सागर को तरसती रही सूने होठो को मीठे बोल दे खुद तबस्सुम को तरसती रही बुलन्दियों पर गुमां नही नज़रो में पाक तू नही कोई गुनाह तू लफ्ज़ और लहज़े पर तेरे बहुत ऐतबार है अब भी मुझे समक्ष नैनो के खड़ी है मेरी तू एक उम्र है और अपनी उम्र से बड़ी है एक मीठी नदी है तू नृत्य करते जल संगीत उसका कलकल गीत चुप है। --------------- ------------- ------- - *दिनेश चन्द्र, मुग़लसराय* 08 सितम्बर /2022 ©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता #philosophy
दिनेश चंद्र की कविता #philosophy
read moreNojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
सुभाष चंद्र बोस पर कविता रिकॉर्ड करें #NojotoHindi #NojotoTopicalHindiQuoteStatic
सुभाष चंद्र बोस पर कविता रिकॉर्ड करें Hindi #NojotoTopicalHindiQuoteStatic #nojotohindi
read moreVishal Chavan
पौर्णिमा... डोळे भरुन बघून घेतो, सजलेलं चंद्रबिंब.. मन भरून जगतो, होतो आनंदात चिंब... पूनवेच्या चंद्रासम, सजू दे उपेक्षितांच आयुष्य.. अस्तित्वावर तलवार ज्याच्या, मिळो त्याला भविष्य... चंद्र शिंपण करत फिरतो, चांदणं वत्सल चंदेरी... चंद्र आहे हा विश्वास असुदे, आली रात्र जरी अंधारी.. अमावस्येला असतो तो, तुला तो विसरत नाही.. एक दिवस विश्रांती घेतो, विश्रांती घेतो; मरत नाही... 17-12-2021 Vishaal/Aadinaath ©Vishal Chavan चंद्र
चंद्र #मराठीशायरी
read moreकवी - के. गणेश
सुगंध तुझ्या सहवासाचा अंगणी माझ्या दरवळत राहतो.. पूनवेच्या चंद्राची शीतलता मी तुझ्या रुपात पाहतो..! चंद्र..
चंद्र..
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