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Babli BhatiBaisla
सखी चहरे पर कई चेहरे लगाए घूमते हैं लोग अच्छे से जानते हैं हम उन्हें ढ़ोंग का है रोग जो पहले तो दूसरे को मिट्टी में मिलाने का शौक़ रखते हैं और फिर बाद में मसीहा बनने की भी फिराक में रहते हैं खिलौना खालिस जानकर जो खेलना चाहते रहे हैं हम भी दोस्त उन्हें अब और झेलना चाहते नहीं है अपने हित को अब हम भी जानने लगे हैं अच्छे से कई गांठों वाले धागे अक्सर रह ही जाते हैं कच्चे से बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla फ़िराक़
सतीश तिवारी 'सरस'
मन का तोता तड़पे लेकिन मैना नहीं मिली, तन्हाई में जिये रात-दिन मैना नहीं मिली! ००० चले ज़िन्दगी की यह गाड़ी दो चक्रों पर ही, सोच ये मन में आती पल-छिन मैना नहीं मिली! ००० ढूँढ़-ढूँढ़कर नयन थके पर मीत नहीं पाया, गुज़र रहे अब दिन बस गिन-गिन मैना नहीं मिली! ००० लगें फ़ेसबुक़-व्हाट्सऐप भी यार! हमें बोझिल, थके उन्हें हम कर-कर लागिन मैना नहीं मिली! ००० बहनें बहुत मिलीं पर उनको नहीं मिली भाभी, 'सरस' प्रेम की कोई साथिन मैना नहीं मिली! ©सतीश तिवारी 'सरस' #ग़ज़ल