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Priya Dubey
नारी की निजता जब सम्मान का बोध कराना होता है समता को भी जहाँ सिखाना होता है जब विश्वास रगों में भरना पड़ जाये, वही जन्म लड़की का निश्चय होता है शक्ति के स्वप्रमाण को भी आखिर क्या दुर्लभता होगी अपनी निजता खुद आप बना निश्चित कर विजय तेरी होगी असमंजस का कोहरा हो या भृम के काले बादल हों भय के चक्रवात में मन की कितनी जर्जर हालत हो ध्यान रहे जितना उफान बारिश भी उतनी ही होगी हर धुंध धवल हो जाएगा आल्हाद मयी बेला होगी अपनी निजता खुद आप,बना निश्चित कर विजय तेरी होगी निश्चित कर विजय तेरी होगी। जीवन कोई दौड़ नहीं, प्रत्युत प्रवाह सन्तुलन है यह परिपूर्ण ह्रदय से होता है, जितना समझो उतना है यह। कुल अपभिलाषाओ की कुंजी, मिल जाए अगर इन हाथों में क्या मनः दशा हो?फिर क्या प्रथम चरम पर अभिलाषा होगी? सब कुछ तय करना ही होगा, निश्चित ही विजय तेरी होगी निश्चित कर विजय तेरी होगी। ©Priya Dubey # महिला दिवस विशेषांक