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Jaggi Charuta
Pushpvritiya
समय-समय पर विचारकों के सांचे आएं..... वो ढली...आकारित हुई....और आंकी गई....इसी निरूपण में.... सबके द्वारा...स्वयं से भी..... @पुष्पवृतियां . . ©Pushpvritiya समय समय पर विचारकों के सांचे आएं.....वो ढली...आकारित हुई....और आंकी गई....इसी निरूपण में....सबके द्वारा...स्वयं से भी..... @पुष्पवृतियां
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} श्री भागवत जी में सत्य धर्म का निरूपण किया गया है, परम् सत्य को बताया गया है, भागवत एक पका हुआ फल है। ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} श्री भागवत जी में सत्य धर्म का निरूपण किया गया है, परम् सत्य को बताया गया है, भागवत एक पका हुआ फल है।
Divyanshu Pathak
राधा- प्राण तत्व है, कृष्ण- के जीवन का! प्रकृति का भी। जब तक साथ रहे, माधुर्य की वर्षा होती, विरह दिए तो युद्ध सहे। धारा का विपरीत प्रभाव, राधा बनकर प्रेम बनता। परिस्थितियों की धारा से, बाहर निकलने का नाम ही राधा है। #पाठकपुराण की ओर से आप सभी को #राधाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। श्री कृष्ण के जीवन का एक ऐसा पात्र है जो उनके आनंद स्वरूप और लीलाओं का साक्ष
SURAJ आफताबी
गन्ने से मीठे - मधुर संवादों को प्रेमग्रंथ की सूक्तियों के सरल अनुवादों को अथ से अंत तक नया निरूपण देना होगा मैं कवि हूँ , मुझे शब्दों की छैनी से हर क्षण तुम्हें अलग रूपण देना होगा ! तुम्हारी सूनी पावन सिंदूररेखा को आँसुओं के भाप से निर्मित स्याह मेघा को सीप में बंद मोती की भाँति मुकुट में सजाना होगा मैं कवि हूँ , मुझे वेदनाओं की स्याही से हर काव्य उक्ति में गीत कोई तुम्हारा ही लिखना होगा ! सप्तपदी के सात वादों को माथे की बिंदी के सुरीले शंखनादों को रथ बना कृष्ण सा इक सारथी बनना होगा मैं कवि हूँ , मेरे छंदों के बँधन से तुम्हारे विश्वास की हर कोंपल को भी बँधना होगा ! कविता 😊 अथ- शुरुआत निरूपण- परिभाषा रूपण- design #yqbaba #yqdidi #कविताएँज़िंदारहतीहैं
Alok Vishwakarma "आर्ष"
Not Out Of Words, Do Still Pour Many That Best Express Us, Just Can't Find Any शब्द कई सारे हैं पर तलाश तो उन शब्दों की है जो मेरी शब्दिता के सौंदर्य का शाब्दिक निरूपण करने में पूर्णतया समर्थ हों.. 💝 #महकतेपल #words #i
Alok Vishwakarma "आर्ष"
एक बार की बात है सुनना, श्रोता अभी बताऊँ धरती चँदा वार्ता की, कविता रच तुम्हें सुनाऊँ शुभग रात थी विस्मय की, धरती की उचटी नींद रात्रि मुख पर दमका चँदा, सूर्य दीप्ति से भींज पृथ्वी बोली बोल चाँद, क्यों रातों को जगते हो रवि के भास उजाला दे कर, जन-जन को ठगते हो चाँद एक टक शीतल बन, बोला विस्मय को तोड़ो पृथ्वी मेरी बहना यह, असमय का भाषण छोड़ो देखो प्राणी जगत जीव कुछ, रात्रि में भी निकलते हैं प्रकाश हीन पथ में सब जन, मेरे आलोक विचरते हैं तप्त तुम्हारे भूमण्डल को, मुझसे तृप्ति मिलती है विभावरी के उपवन में, संग रात की रानी खिलती है "धरती और चाँद" एक प्रेमपूर्ण वार्त्तालाप का काव्यात्मक निरूपण... #alokstates #yqbaba #yqdidi #essentiallydeep #hindipoetry #lovepoetry #nig
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