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Stories related to आम बजट 260

Himanshu Prajapati

#AkelaMann सुखा सुखा सा हो गया है स्वाद-ए-जिंदगी, चटपटा के लिए एक आम सा अचार चाहिए..?💔 #36gyan #hpstrange

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सुखा सुखा सा हो गया है 
स्वाद-ए-जिंदगी,
चटपटा के लिए 
एक आम सा अचार चाहिए..?💔

©Himanshu Prajapati #AkelaMann सुखा सुखा सा हो गया है 
स्वाद-ए-जिंदगी,
चटपटा के लिए 
एक आम सा अचार चाहिए..?💔
#36gyan #hpstrange

gauranshi chauhan

day 479 जनाब चर्चे आम जरूर है , पर भरी महफ़िल मे सरेआम होंगे, जिस जिसने मुझे रुलाया है, उन सबके हिसाब बहुत जल्दी होंगे।। जय माँ भवान

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day 479
जनाब चर्चे आम जरूर है ,
पर भरी महफ़िल मे सरेआम होंगे,
जिस जिसने मुझे रुलाया है,
उन सबके हिसाब बहुत जल्दी होंगे।।


       जय माँ भवानी
✨🔱🙆‍♀️❣️🧿✨

©gauranshi chauhan day 479
जनाब चर्चे आम जरूर है ,
पर भरी महफ़िल मे सरेआम होंगे,
जिस जिसने मुझे रुलाया है,
उन सबके हिसाब बहुत जल्दी होंगे।।


       जय माँ भवान

Diya

#मेरा तो #बजट ही #तुम हो.. #मुस्कुरा दो तो #फायदा, रूठ जाओ तो नुकसान.#फायदा____उठाओ सुबह-सुबह दिख #जाओ,#Diyakikalamse तो सारा दान #अच्छा d

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मेरा तो बजट ही तुम हो..
मुस्कुरा दो तो फायदा,
रूठ जाओ तो नुकसान.
सुबह-सुबह दिख जाओ,
तो सारा दीन अच्छा।

©Diya #मेरा तो #बजट ही #तुम हो..
#मुस्कुरा दो तो #फायदा,
रूठ जाओ तो नुकसान.#फायदा____उठाओ 
सुबह-सुबह दिख #जाओ,#diyakikalamse
तो सारा दान #अच्छा #d

Vijay Vidrohi

||बजट_बिगडया|| #my #New #Poetry #poem #shayri #बजट #बेरोजगारी #महंगाई #byaj #Garibi zindagi in hindi urdu poetry poetry in hindi h

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White ""बजट बिगडया""
सब्जी पर लहसुन का राज
बढ़े टमाटर बढ़े प्याज 
कैसे सूखी रोटी खाएं,
बहुमूल्य हो गया अनाज

चटनी हो गई दाल बराबर
दाल हो गई मछली मांस 
गोभी बैंगन और मिर्च के 
रेट देखकर फूले सांस।

100 ₹ पर लगा रहे हैं
पांच टके का सीधा ब्याज।
मजदूरी दर बढ़ी न उतनी
जितनी महंगाई है आज।

कुछ तो जतन करो रे भैया
दिलवादो कोई धंधा-काज 
बेरोजगारी में भटक रहा
देश का सारा यूथ समाज।

©Vijay Vidrohi ||बजट_बिगडया|| #my #new #poetry #poem #shayri #बजट #बेरोजगारी #महंगाई #byaj #garibi      zindagi     in hindi  urdu poetry poetry in hindi h

ranjit Kumar rathour

आम से खास

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कुछ खास नहीं वो आम सी लड़की थी 
हमेशा गुम सुम सी रहती थी 
पूछा था उससे सब ठीक तो है न 
बोली नहीं मै बीमार रहती हुँ 
क्योँ आखिर परेशानी क्या है 
एक दम से भावुक हो बोली 
है कुछ मुश्किलें मुझे दिखाने जाना है 
फिर हर बात मुझसे बताती 
पता नहीं कब उसको मुझ पर यकीन हो गया 
और फिर अच्छे दोस्त और अब सब कुछ 
हर बात जिद कर मनवा लेती 
अब तो बिना बात किये दिन नहीं गुजरती 
हर वक्त उसका इंतज़ार होता
नहीं बता सकता वो कब आम से खास हो गयी 
हां खास हो गयी

©ranjit Kumar rathour आम से खास

N S Yadav GoldMine

#SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey} किसी को आपकी क़ीमत जब पता चलेगी, जब आपकी जरूरत होगी, वरना आप किसी की नजर में सामान्य भी नही, सिर्फ एक आम आद

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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset {Bolo Ji Radhey Radhey}
किसी को आपकी क़ीमत जब पता 
चलेगी, जब आपकी जरूरत होगी,
वरना आप किसी की नजर में सामान्य 
भी नही, सिर्फ एक आम आदमी हो।
जय श्रीसीताराम जी!!

©N S Yadav GoldMine #SunSet {Bolo Ji Radhey Radhey}
किसी को आपकी क़ीमत जब पता 
चलेगी, जब आपकी जरूरत होगी,
वरना आप किसी की नजर में सामान्य 
भी नही, सिर्फ एक आम आद

Himanshu Prajapati

#GreenLeaves हर काम हो जाएं आम, खुशियां हो जीवन में तमाम, आप‌ जो चाहे पालो, आपका हो जग में नाम..! 🎉Happy New year🎉

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green-leaves हर काम हो जाएं आम,
खुशियां हो जीवन में तमाम,
आप‌ जो चाहे पालो,
आपका हो जग में नाम..!

🎉Happy New year🎉

©Himanshu Prajapati #GreenLeaves हर काम हो जाएं आम,
खुशियां हो जीवन में तमाम,
आप‌ जो चाहे पालो,
आपका हो जग में नाम..!

🎉Happy New year🎉

Praveen Jain "पल्लव"

#good_night बजट तक नही होता इंतजार

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White पल्लव की डायरी
मनसूबे किया है
जंगल जहाँ को बना देंगे
सभ्यसमाज की हिला दी शिला
खोदकर बुल्डोजरो से सब कुछ
इंसानियत की मिशाल बुझा देगे
धर्म की आड़ में लूटकर
भिखारी जनता को बना देंगे
बजट तक नही होता इंतजार
हर महीने दाम बढ़ा देगे
सरकार हो गयी बनिया की दुकान
नफा नुकसान की भरपाई में
कोई भी फार्मूला लगा देंगे
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #good_night बजट तक नही होता इंतजार

Adv AK Valmiki

#वह_मिला_किसी_और_को, शायद_वो_मेरे_नसीब_में_नहीं_था। उसका नाम लेकर, उसे बदनाम करूं। यार वह इतना, बुरा भी नहीं था।। _______________________

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नवनीत ठाकुर

#षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी, भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी। शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़, जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा

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White षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी,
भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी।
शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़,
जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगाज़।

अपहरण के धंधे अब आम हो गए,
अपराधी खुलेआम इनाम हो गए।
छेड़छाड़ के ज़ख्म लहू-लुहान हैं,
इंसाफ के मंदिर खुद बदगुमान हैं।

यह कैसी सभ्यता, यह कैसी रवायत?
जहां जुर्म को मिलती है हर इक सहायत।

©नवनीत ठाकुर #षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी,
भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी।
शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़,
जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा
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