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DR. LAVKESH GANDHI
चंदा मांँगने वाले आराम से घर में बैठे हैं और दान देने वाले दर-दर भटक रहे हैं | अजीब विडंबना है हमारे समाज की | ©DR. LAVKESH GANDHI #Likho # # अजीब विडंबना है #
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#ये कैसी विडंबना है कि शिव पहले भस्मासुर को वरदान दे कर उसे शक्तिशाली बनाते हैं फिर उसी से अपनी जान बचाने के लिए भागते फिरते हैं। # ये कैसी विडंबना है कि मनुष्य जाति स्वयं ईश्वर का आविष्कार करती है और फिर उसी के चरणों में लोटने लगती है। *** ©कमल कांत #विडंबना #हिंदीनोजोटो #hindinojoto #Quote #हिंदीकोट्स
अदनासा-
बहुत कुछ बुरा और बदतर भी होता रहा है और मैं कलम को दवात की दावत देता रहा बुरे के साथ बहुत कुछ अच्छा हो भी रहा है और मेरी कलम लिखने की ज़ुर्रत करता रहा सब मनमाना चलने की रवायतें चल पड़ी है और मेरी कलम चलने की हिम्मत करता रहा मौन होकर एक देश दो संविधान देख रहा है और मेरी कलम विधि का विधान देखता रहा कुछ अच्छे कुछ बुरे का मिश्रण ही जीवन है और मेरी कलम प्रेम रस समर्पित करता रहा ©अदनासा- #हिंदी #words #शब्द #विडंबना #लोकतंत्र #लेखक #कलम #Pinterest #Instagram #अदनासा
Jupiter and its moon
दो और दो हों चार ज़रूरी तो नहीं। न्याय व्यवस्था हो एकाकार ज़रूरी तो नहीं। ज़हमते उठाना क्यूं जब भुगतना किसी और को हो, हम रखें कोई सरोकार ज़रूरी तो नहीं। बेटियां जलती हैं जो किसी और की हैं रोटियां छिनती हैं जो किसी और की हैं लाचारों का बनना मददग़ार ज़रूरी तो नहीं। कल कोई और दरिंदा जिस्म कोई नोचेगा कल कोई और भी अपने हालात को सोचेगा हम हीं हो अगला शिकार ज़रूरी तो नहीं। तुम नहीं हो कोई नेता ये ग़लती तुम्हारी है। नहीं हो तुम अभिनेता ये व्यथा तुम्हारी है हो न्याय हीं बार- बार ज़रूरी तो नहीं। हो औरत तो तुम्हें औकात में अपनी रहना होगा। अपनी खुद्दारी को मर्दों से कम आंकना होगा। वो लड़के हैं, लड़कों से ग़लतियां हो हीं जाती है। संस्कारों की तमाम बातें तो लड़की के हिस्से आती है। इस सोच का करना बहिष्कार ज़रूरी तो नहीं। मर्दों को भी देना संस्कार ज़रूरी तो नहीं। कुछ होगा फिर तो कैंडल मार्च निकालेंगे तोड़ना ये सिलसिलेवार ज़रूरी तो नहीं। ©Jupiter and it's moon....(प्रतिमा तिवारी) समाज की विडंबना #मनिपुर #नारी #स्त्री #समाज #Manipur #Women #girls #Society #law #Hypocrisy
Mukul Mukund Khodey; कर्मकवी...
guru
सपनों की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन्हें हम सामुहिक रूप से नहीं देख पाते! ©guru सपनों की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन्हें हम सामुहिक रूप से नहीं देख पाते!