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Divyanshu Pathak
21वीं सदी के इन 20 वर्षों में दुनिया के बाकी 142 देश शानदार प्रगति कर रहे हैं जिनमें - चीन ब्राजील रूस इंडोनेशिया तुर्की केन्या दक्षिण अफ्रीका के साथ हमारा भारत भी शामिल है । इस विकास की हमारे देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। आबादी की बेलगाम बढ़ोतरी और अनियंत्रित अनियोजित औद्योगिकीकरण ने कई शहरों को पर्यावरणीय नर्क बना डाला और तमाम नगर इसी राह पर चल रहे हैं। देश के 88 में से 75 जॉन बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं और पवित्र नदियों का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा है। 💕🙏#नमस्कार 💕🙏 : बढ़ती जनसंख्या के दबाव और अंधाधुंध तरीके से औद्योगिकीकरण व शहरीकरण की मार झेल रहे हमारे देश में इन समस्याओं से निपटने के नाम
Anamika Nautiyal
चीन की प्रगति और उसका भविष्य........ सोवियत संघ के पतन के बाद पेंटागन के एक उच्चाधिकारी ने कहा था कि अब हमारे स्तर का कोई शत्रु दुनिया मे न
PRAKASH SHARMA
anil meena
नित्य क़दम ब क़दम चल रहीं कुकाल की लहर मुसलसल वक्ष मै बढ़ रहा विभीषिका का क़हर मानुष के अन्तःकरण मै ख़्याल यंत्रणा का खेप-लदान उमड़ पड़ा है विलिनता के त्रास से मनुज भी आकस्मिक रंजोग़म हो पड़ा है अब तो उरस्थल का पाषाण भी इस संताप के दुर्भिक्ष मै भग्नावशेष के रूप मै ध्वस्त हो पड़ा है आलय की प्राचीर मै से क़ैद देखों हयात के सम्मुख कौन खड़ा है माना मन की इप्साओं का नेत्रजल भरा पड़ा है। अनिल मीणा (बोड़ाणा) रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ चुका कुकाल का क़हर नगरों मै रंग ना रहा,, बंद पड़े वो शहर
anil meena
नित्य क़दम ब क़दम चल रहीं कुकाल की लहर मुसलसल वक्ष मै बढ़ रहा विभीषिका का क़हर मानुष के अन्तःकरण मै ख़्याल यंत्रणा का खेप-लदान उमड़ पड़ा है विलिनता के त्रास से मनुज भी आकस्मिक रंजोग़म हो पड़ा है अब तो उरस्थल का पाषाण भी इस संताप के दुर्भिक्ष मै भग्नावशेष के रूप मै ध्वस्त हो पड़ा है आलय की प्राचीर मै से क़ैद देखों हयात के सम्मुख कौन खड़ा है माना मन की इप्साओं का नेत्रजल भरा पड़ा है। अनिल मीणा (बोड़ाणा) रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ चुका कुकाल का क़हर नगरों मै रंग ना रहा,, बंद पड़े वो शहर
Veer Keh Raha
Anand vishnushali
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त