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एक अजनबी
कमज़ोर हिम्मत है हुई या शान की आदत गई मज़लूम ख़ातिर अब नहीं होती बग़ावत क्यूँ यहाँ इक ख़ौफ़ के ही ख़ौफ़ में इंसान अब है रह रहा है ख़ौफ़ करती फिर रही ऐसी हिमाकत क्यूँ यहाँ क्या फेर ली आँखें ख़ुदा ने या बला का राज है नीलाम अस्मत और जिस्मों की तिज़ारत क्यूँ यहाँ क्या एक इंसानी बदन में आज रहती रूह दो तरफ के मुस्कान लब पर और दिल में है अदावत क्यूँ यहाँ 🙂🙂🥀🥀🙂🙂 ©एक अजनबी #हिमाकत :- बेवकूफी, नादानी #अस्मत :- इज्जत #तिज़ारत :- फायदे के उम्मीद पर व्यापार, व्यवसाय पथिक.. Ritu Tyagi R K Mishra " सूर्य " R.A.A.G
Gaurav Christ
Gaurav Christ
Pushpvritiya
बच्चों के स्कूली दाखिला पत्र में व्यवसाय संबंधी विवरणी माता पिता दोनो की मांगी गई...... माता के व्यवसाय में "गृहस्वामिनी" (हाउसवाइफ) ( गृह की अधिष्ठात्री) उल्लेखित किया गर्व से....... अब बारी आई अर्निंग की..कमाई की..... पास खड़े भाई साहब ने कहा..... "ज़ीरो लिख दीजिए"..... भौंहों में एक सिकुड़न.... मस्तिष्क में एक सोच........ और एक मंद मुस्कुराहट के साथ मैंने ज़ीरो लिखा............. वैसे गृहस्वामिनी "पदनाम" तो अच्छा है... किन्तु मानदेय....शून्य... कोई अतिरिक्त भत्ता नही............ न कोई लीव...... और न ही इंक्रीमेंट............ गैस की कीमतें दिन पर दिन गगनचुंबी ही क्यों न हो......... राशन दूध के पैकेटों में एमआरपी की उछाल निफ्टी सेंसेक्स को भी क्यूं न मात दे रही हो....... मासिक इंक्रीमेंट बमुश्किल ही है........ फिर भी तीस दिनों का अंक गणित सटीक बैठा लेती है....... है न 😊 ©Pushpvritiya बच्चों के स्कूली दाखिला पत्र में व्यवसाय संबंधी विवरणी माता पिता दोनो की मांगी गई...... माता के व्यवसाय में "गृहस्वामिनी" (हाउसवाइफ) ( गृह क
Gaurav Christ
SHREENIVAS MITAKUL
Jiyalal Meena ( Official )
Devesh Dixit
महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।। बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम। अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।। फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम। महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।। चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष। महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।। विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर। शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।। मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान। महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #महँगाई_की_मार #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये