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Best अस्मत Shayari, Status, Quotes, Stories

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Saba Rasheed

एक अजनबी

#हिमाकत :- बेवकूफी, नादानी #अस्मत :- इज्जत #तिज़ारत :- फायदे के उम्मीद पर व्यापार, व्यवसाय पथिक.. Ritu Tyagi R K Mishra " सूर्य " R.A.A.G THE BAD WRITER || Parul Yadav Mili Saha Sunita Pathania Nikita Garg NIKHAT الفاظ جو دل کو چھو لے Lalit Saxena Sweety mehta Shabd_siya_k shashi kala mahto Mahadev ki deewani poonam atrey Kanchan Pathak Dikesh Kanani (Vvipdikesh) Aditya kumar prasad Ashutosh Mishra Sethi Ji its.cute.girl mrunal_aradwad Anubhav Ayesha Aarya Singh sHiVa_JhA quotesofpainoff

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malay_28

हाथ बाँधकर आज व्यथित हो
न जाने किस श्राप से ग्रसित हो
मोहन तुम्हारी सखी द्रौपदी निर्वस्त्र खड़ी
तमाशाइयों की भीड़ बड़ी
अस्मत के धागे तार तार हुए
लगता है दुर्योधन से तुम भी डरे हो
हमारी आस्था से शायद तुम परे हो.

©malay_28 #अस्मत

कवि मनोज कुमार मंजू

अस्मत खोती है मासूमी, उद्दण्डी पूजे जाते हैं। 
मानवता है लाचार यहाँ, हिंसक पशु विगुल बजाते हैं।।

©कवि मनोज कुमार मंजू #अस्मत 
#मासूम 
#उद्दंड 
#मानवता 
#मनोज_कुमार_मंजू 
#मँजू 
#Pattiyan

कवि मनोज कुमार मंजू

व्यभिचारी अस्मतखोरों पर क्या सरकारी केस करें! 
जिन्दा दफन करो इनको जो ऐसे नीच कुकर्म करें

©कवि मनोज कुमार मंजू #व्यभिचारी 
#अस्मत 
#दफन 
#नीच 
#मनोज_कुमार_मंजू 
#मँजू 
#kitaabein

Shailja Purohit

निखिल कुमार अंजान

नौ दिन नौ रातें जब रहने माँ मेरे घर आएगी देख जग मे अत्याचार हिंसा कितना वो व्यथित हो जाएगी किस मुख से उसके समक्ष जाऊँगा कैसे उसको दुराचार की कथा सुनाऊँगा कन्या पूजन को लेकर भी मन मे संशय होता है मानवता को कंलकित करने वाला न जाने

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नौ दिन नौ रातें जब 
रहने माँ मेरे घर आएगी
देख जग मे अत्याचार हिंसा
कितना वो व्यथित हो जाएगी
किस मुख से उसके समक्ष जाऊँगा
कैसे उसको दुराचार की कथा सुनाऊँगा
कन्या पूजन को लेकर भी मन मे संशय होता है
मानवता को कंलकित करने वाला न जाने
किन भावों से उन नन्हे नन्हें चरणों को धोता है
पहन संत का चोला अंदर से हवस के वश मे होता है
आजकल छोटी छोटी बच्चियों का भी शोषण होता है
कैसे माँ के आने की खुशी मनाऊँ अंदर से हृदय रोता है
रिश्तों की गरिमा को भूलकर अपनों ने बलात्कार किया है
नातेदारों ने बहन बेटी की अस्मत को तार तार किया है
नग्नता नित्त दिन अपना परचम लहरा रही है
क्यों भला समाज के ठेकेदारों की आवाज नही आ रही है
ऐसे कैसे नवरात्रि का पर्व मै बना पाऊँगा 
कोई भेजेगा भला क्यों अपनी बिटिया को ऐसे माहौल मे
कँहा से मै कन्या पूजन के लिए कन्या लाऊँगा
रोज अखबार के पन्ने इन खबरों से पटे मिल जाते हैं
आम बात हो गई है रेप होना मन मे न कोई भाव आते हैं
ज्यादा हो तो मोमबत्ती ले सड़क पर उतर आते हैं
कौन भला मुझको ये विश्वास दिलाएगा नौ दिन ही सही
मेरे शहर मे ही किसी बहन बेटी बच्ची स्त्री 
की अस्मत को नही लूटा जाएगा 
नौ दिन नौ राते जब रहने माँ मेरे घर आएगी
देख इन हालातों को क्या प्रसन्न हो जाएगी
अंजान किस मुख से उनके समक्ष जाएगा
कैसे कलयुग के राक्षसों की कथा सुनाएगा........

#अंजान....... नौ दिन नौ रातें जब 
रहने माँ मेरे घर आएगी
देख जग मे अत्याचार हिंसा
कितना वो व्यथित हो जाएगी
किस मुख से उसके समक्ष जाऊँगा
कैसे उसको दुराचार की कथा सुनाऊँगा
कन्या पूजन को लेकर भी मन मे संशय होता है
मानवता को कंलकित करने वाला न जाने

रतनेश पाठक_ Protest Writer

सीता मइया की नगरी में जब लूटी थी अस्मत 40 की
मस्त मगन सब भक्त लग्न में नेता की रखवाली की
नाथ नहीं थे एक के भी अनाथ ही उनको छोड़ दिया 
उनकी इक्षा उनकी आशा जहन्नुम में झकझोर दिया
चुप रहते और कुछ ना करते लुटती अस्मत देखते रहते
मिला था मौका पूछने को सत्ता को झकझोरने को
क्यों लूटी थी अस्मत बेटी की क्या उनका कोई मान नहीं
पर अस्मत की किसको फिकर फिकर है अपने नेता की 
लूटती है तो लूटने दो आखिर मेरा क्या जाता है 
उस छोटी प्यारी गुड़िया से अपना भला क्या नाता है
क्यों पूछुं मैं सत्ता से ये सत्ता मेरे पसंद की है
फिर लूटती है अस्मत तो क्या हर सत्ता में ही लूटती है
पर याद रखो ये स्याह नहीं हाथ सने थे खुनों से
लूटी है अस्मत फिर उसकी ही जिसका तुमने ना साथ दिया
सत्ता की लोलुपता मे जाने कैसा था ये पाप किया
अब जा कर देखो दर्पण खुद ही माफ़ भला कर पाओगे क्या
तेरे घर भी बेटी होगी आँख मिला भी पाओगे क्या
खुली सड़क थी चलती कार उठा ले गए हैवान सवार
किया दरिंदगी उसके साथ फिर मानवता हुई शर्मसार
पर खामोश ही फिर हम रह जायँगे सवाल मगर ना दोहराएंगे
क्यों हो रहे ये अत्याचार धृतराष्ट्र बनी क्यों ये सरकार
न्यायपालिका त्रस्त पड़ी है सरकारें भी भ्रष्ट पड़ी हैं
सुख चुके हैं खून तुम्हारे मानवता भी नष्ट पड़ी है 
पर दोष इन्ही को बस क्यों दूँ मैं
लूटी थी अस्मत जब इनकी तो ज्ञान हमें भी था इनका
और खामोशी से फिर भी हमने खुनों से था हाथ रंगा  
बटन दबाया था उनका ही लूटी थी अस्मत जिसने इनकी
बटन दबाया था उनका हीलूटी थी अस्मत जिसने इनकी ।।

👆 मेरी कलम कुछ कहती है 👆
😊 रतनेश पाठक 😊 #nojoto #nojotoHindi #shame
#rape #beti #bihar

Shivraj Solanki

मुझको तुझपे प्यार नहीं आता

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मुझको तुझपे प्यार नहीं आता
कह दिया मैने भी अपने महबूब से 
जा मुझको तुझपे प्यार नहीं आता
पहले जैसा ऐतबार नहीं आता
मिल गया महबूब दूसरा मुझको
जिसकी अस्मत पर लूटने को हर कोई आमादा
लूट गया में भी उसी अस्मत पर 
जिसका हर कोई चाहने वाला
उसके आगे रूप सौंदर्य काम नहीं आता
जा मुझको तुझपे प्यार नहीं आता
पहले वाला ऐतबार नहीं आता
                                                                     स्वर्ग है जिसके ललाट पर 
                                                                          पहने सिर पर ताज हिम का
                                                                                   बुद्ध महावीर का ज्ञान यहां का
                                                                                        जिसके चरणों सागर धो जाता
                                                                                              जा मुझको तुझपे प्यार नहीं आता
                                                                                         पहले जैसा ऐतबार नहीं आता

                                                                               कुदरत ने जिसको संवारा हो
                                                                                जिसे प्रताप, शिवा, कलाम ने पूजा हो 
                                                                                    जिसके जैसा दुनिया में कोई नहीं दूजा हो
                                                                                   जिसके लिए बलिदान होने को हर बच्चा हो
                                                                            जहां सैनिकों में दुश्मन के लिए ज्वाला हो
                                                                              ऐसे देश के सिवा और किसी पर प्यार नहीं आता

   शिव राज खटीक मुझको तुझपे प्यार नहीं आता

Pankaj Priyam

मुक्तक

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अस्मत

नहीं अर्जुन नहीं माधव, नहीं अब राम आएंगे,
तुम्हें खुद को बचाना है, न कोई काम आएंगे।
अगर अस्मत बचानी है, जमाने के दरिंदों से-
बनो चण्डी बनो काली, कभी ना पास आएंगे।।
©पंकज प्रियम मुक्तक
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