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जगदोश

जगदीश नायक गाउन सूट #nojotophoto

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 जगदीश नायक गाउन सूट

Rk Chhetri

#LOVEGUITAR दिलमा सुटुक्क लुकाई बसाउन मन छ म रोएर पनि तिमी लाई हसाउन मन छ छिपाउदै नजरले थाहै नदिई दिल चोरेर यो मुटुमा लुकाई राखेर सजाउन मन #आर

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Rk Chhetri

दिलमा सुटुक्क लुकाई बसाउन मन छ म रोएर पनि तिमी लाई हसाउन मन छ छिपाउदै नजरले थाहै नदिई दिल चोरेर यो मुटुमा लुकाई राखेर सजाउन मन छ धेरै भयो #Shayari #आर

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रिंकी✍️

तुम्हे याद है वो गली की लुक्कड़ हाँ उसी चाय की टपरी पर जिसके सामने एक राशन की दुकान हुआ करती थी हाँ वही जहाँ तुम अक्सर आया करती थी तुम्हे #आंनद #निश्वार्थ #यकहिन्दी #यकदीदी #दिलकीकह #मुक्तिबन्धन

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मुझे विश्वास था तुम फिर दिखोगी
       👇
नीचे कैप्शन में पढ़े 
तुम्हे याद है 
वो गली की लुक्कड़ 
हाँ उसी चाय की टपरी पर
जिसके सामने एक राशन की दुकान हुआ करती थी
हाँ वही जहाँ तुम अक्सर आया करती थी
तुम्हे

Ravikant Raut

ये तस्वीर निश्चय ही उस #पीली_साड़ी_और_नीली गाउन वाली अधिकारी से ज्यादा शेयर नही हुई होगी पर अबतक आपने पीली साड़ी वाली और नीली गाउन वाली #एक_कर्मचारी_भी_है #एक_चुनाव_अधिकारी_भी_है #एक_महिला_भी_है #आदर्श_बहु_भी_है #एक_मां_भी_है #एक_आदर्श_बहु #एक_जिम्मेदार_कर्मचारी_और_एक_माँ_नन्ही_बिटिया

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 ये तस्वीर निश्चय ही उस #पीली_साड़ी_और_नीली गाउन वाली अधिकारी से ज्यादा शेयर नही हुई होगी पर 
     अबतक आपने पीली साड़ी वाली और नीली गाउन वाली

Rooh_Lost_Soul

कैसे मिलाऊ नजरे तुझसे मेरे बच्चे, सोचा था इस बार तेरे फटे जूते बदल दूंगा।। पर मेरी छोटी सी महिने भर की तन्ख्वाह ना जाने क्युं इस सर्द रातो #Poetry #Pain #poem #nojotohindi #Internet_Jockey #Arun_Raina #shabdanchal #k2diary

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अधूरी ख़्वाहिश कैसे मिलाऊ नजरे तुझसे मेरे बच्चे,
सोचा था इस बार तेरे फटे जूते बदल दूंगा।।
पर मेरी छोटी सी महिने भर की तन्ख्वाह ना जाने 
क्युं इस सर्द रातो

Anup Ranjan

उसकी उम्र तक़रीबन 14-15 साल रही होगी ! हालांकि वो मेरे पड़ोस में रहती थी पर पहली बार मैंने उसे गाँव के मेले में गुब्बारा बेचते हुए देखा ! मुस्

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......... उसकी उम्र तक़रीबन 14-15 साल रही होगी !
हालांकि वो मेरे पड़ोस में रहती थी पर पहली बार मैंने उसे गाँव के मेले में गुब्बारा बेचते हुए देखा !
मुस्

amii

आज घर का आंगन किलकारियों से सज्जित हैं। हर कोई देख के मंत्रमुग्ध है। ऐसी छवि जो घर मे साक्षात लक्ष्मी के रूप में आई है आज हर कोई उस घर मे बध

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happy womens day 😍 आज घर का आंगन किलकारियों से सज्जित हैं।
हर कोई देख के मंत्रमुग्ध है।
ऐसी छवि जो घर मे साक्षात लक्ष्मी के रूप में आई है
आज हर कोई उस घर मे बध

Ananya Singh

𝙎𝙝𝙚 𝙨𝙩𝙞𝙡𝙡 𝙧𝙚𝙢𝙚𝙢𝙗𝙚𝙧 𝙩𝙝𝙖𝙩 𝙨𝙘𝙖𝙧𝙮 𝙣𝙞𝙜𝙝𝙩 , 𝘿𝙖𝙧𝙠𝙣𝙚𝙨𝙨 𝙖𝙧𝙤𝙪𝙣𝙙, 𝙝𝙤𝙡𝙙𝙞𝙣𝙜 𝙝𝙚𝙧 𝙗𝙧𝙚𝙖𝙩𝙝 𝙩𝙞𝙜𝙝𝙩 𝙒𝙖𝙣𝙣𝙖 𝙨𝙘𝙧𝙚𝙖𝙢; 𝙬𝙖𝙣𝙣𝙖 𝙨𝙘𝙧𝙚𝙚𝙘𝙝 𝘽𝙪𝙩 , 𝙝𝙪𝙨𝙝𝙚𝙙 𝙝𝙚𝙧𝙨𝙚𝙡𝙛 𝙛𝙧𝙤𝙢 𝙨𝙤

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She still remember that scary night , 
Darkness around, holding her breath tight 
Wanna scream; wanna screech
But , hushed herself 
from someone's shadow friet

Someone's Shadow were roaming in house up and down
Maybe looking for someone else's shadow unknown , 
It's becoming difficult to breathe in dark town
Yes, she were in almirah hiding behind a large gown 

Finally she saw a man fluttering around 
Playing with everything in the house upside down
Suddenly he's eye's freezed on almirah in right 
He's steps reaching towards her with greedy eyes 

He's climbing hands,her rolling legs
His odious touch,her teary eyes 
His pressing hand , her muffled voice 
Buried in devil's laugh noise 

Night passed but her deep fear lasted
 believing herself dirty and wasted
Every touch seems greasy with evilness to her 
Maybe she's not ready to feed another greedy 

Yeah she's alive, but wanna feel alive again
She's trying to escape from her fear again but 
there's always those greedy eyes
 around her everywhere,
 seems like she's alive but her soul  
 isn't getting the feel of life  ... 🙃
 
𝙎𝙝𝙚 𝙨𝙩𝙞𝙡𝙡 𝙧𝙚𝙢𝙚𝙢𝙗𝙚𝙧 𝙩𝙝𝙖𝙩 𝙨𝙘𝙖𝙧𝙮 𝙣𝙞𝙜𝙝𝙩 , 
𝘿𝙖𝙧𝙠𝙣𝙚𝙨𝙨 𝙖𝙧𝙤𝙪𝙣𝙙, 𝙝𝙤𝙡𝙙𝙞𝙣𝙜 𝙝𝙚𝙧 𝙗𝙧𝙚𝙖𝙩𝙝 𝙩𝙞𝙜𝙝𝙩 
𝙒𝙖𝙣𝙣𝙖 𝙨𝙘𝙧𝙚𝙖𝙢; 𝙬𝙖𝙣𝙣𝙖 𝙨𝙘𝙧𝙚𝙚𝙘𝙝
𝘽𝙪𝙩 , 𝙝𝙪𝙨𝙝𝙚𝙙 𝙝𝙚𝙧𝙨𝙚𝙡𝙛 
𝙛𝙧𝙤𝙢 𝙨𝙤

N S Yadav GoldMine

#City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न #पौराणिककथा

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{Bolo Ji Radhey Radhey}
अध्याय 2 : सांख्ययोग
श्लोका 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
अर्थ :- मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है।

जीवन में महत्व :-  यह गीता में कई प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे आत्मा अपने शरीर को छोड़ देती है और अन्य शरीरों के साथ पहचान करके नई परिस्थितियों में नए अनुभव प्राप्त करती है। व्यासजी द्वारा प्रयुक्त यह दृष्टान्त बहुत जानी मानी है ।

भगवान अपने विचारों को विशद उपमाओं के माध्यम से समझाने की विधि अपनाते हैं। इस तरह की तुलना आम आदमी को विचार स्पष्ट करने में मदद करती है।

जैसे कोई जीवन की अलग अलग परिथितियों के लिए अलग अलग कपडे पहनता है, उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर अन्य प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने के लिए दूसरे शरीर को धारण करती है। कोई भी नाइट गाउन पहनकर अपने काम पर नहीं जाता या ऑफिस के कपड़े पहनकर टेनिस नहीं खेलता। वे अवसर और स्थान के अनुकूल कपड़े पहनते हैं। यही हाल मौत या आत्मा का भी है।
यह समझना इतना सरल है कि केवल अर्जुन ही नहीं, कोई भी विद्यार्थी या गीता का श्रोता त्याग के विषय को स्पष्ट रूप से समझ सकता है।
अनुपयोगी कपड़े बदलना किसी के लिए भी मुश्किल या दर्दनाक नहीं होता है और खासकर जब किसी को पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनने पड़ते हैं। इसी तरह, जब जीव को पता चलता है कि उनका वर्तमान शरीर उनके लिए किसी काम का नहीं है, तो वे पुराने शरीर को त्याग देते हैं। शरीर का यह "बूढ़ापन" या यों कहें कि शरीर की घटती उपयोगिता को केवल पहनने वाला ही निर्धारित कर सकता है।

इस श्लोक की आलोचना यह है कि इस संसार में बहुत से बच्चे और युवा मरते हैं जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं था। इस मामले में, "बूढ़ापन" का अर्थ वास्तविक बुढ़ापा नहीं है, लेकिन शरीर की कम उपयोगिता यानी | इन बच्चों और युवाओं के लिए, यदि शरीर अनुपयोगी हो जाता है, तो वह शरीर पुराना माना जाएगा। एक अमीर व्यक्ति हर साल अपना भवन या वाहन बदलना चाहता है और हर बार उसे खरीदने के लिए कोई न कोई मिल जाता है। उस धनी व्यक्ति की दृष्टि से वह भवन या वाहन पुराना या अनुपयोगी हो गया है, लेकिन ग्राहक की दृष्टि से वही मकान उतना ही उपयोगी है जितना नया। इसी तरह, शरीर अप्रचलित हो गया है या नहीं, यह केवल वही तय कर सकता है जो इसे धारण करता है।
यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को पुष्ट करता है।
(राव साहब एन. एस. यादव )
अर्जुन इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं कि मृत्यु उन्हें ही डराती है जो इसे नहीं जानते। लेकिन जो व्यक्ति मृत्यु के रहस्य और अर्थ को समझता है, उसे कोई दर्द या दुख नहीं होता है, क्योंकि कपड़े बदलने से शरीर को कोई दर्द नहीं होता है, और न ही हम हमेशा वस्त्र त्यागने की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार विकास की दृष्टि से आत्मा भी शरीर त्याग कर नये अनुभवों की प्राप्ति के लिये उपयुक्त नये शरीर को धारण करती है। इसमें कोई दर्द नहीं है। यह वृद्धि और परिवर्तन जीव के लिए है न कि चेतना के रूप में आत्मा के लिए। आत्मा हमेशा परिपूर्ण होती है, उसे विकास की आवश्यकता नहीं होती।

©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey}
अध्याय 2 : सांख्ययोग
श्लोका 22
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
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