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Niaz (Harf)
Taransh
Mysterious Girl
Arsh
Rahul Yadav
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इस कल्पना से परे मैं कहां तक जाता, खुद से ही घुलमिल बर्बाद फिर मैं हो जाता। खत्म नहीं होती फिर सोच कि क्षमताएं, जीवन शैली सुचारू ढंग कहां चला पाता । गर्त की गहराई अब ना नापी जाए, निकलने की चाहा देखो धस फिर जाती। मिट्टी की कब्रों में घुटन बहुत देखी, शांत हृदय तल को समझ फिर भी पाता सच के जीवंत हिस्से को लेस मात्र भी ना समझ पाऊं कि मैं कटी पतंग बन अपनी मांझे से ही कटता जाऊं ©Naveen Chauhan इस कल्पना से परे मैं कहां तक जाता, खुद से ही घुलमिल बर्बाद फिर मैं हो जाता। खत्म नहीं होती फिर सोच कि क्षमताएं, जीवन शैली सुचारू ढंग कहां च
अदनासा-
Nisheeth pandey
कविता- परछाई..... सूरज के उदय ,चांद की चांदनी तक हमसफ़र मिल गया मुझे ,मिल गई मेरी परछाई । बचपन कहता ! जवानी भी दिखाती आई ? कोई डराया ! कोई दिखाया देख तेरी परछाई उतर आई ....। बचपन के खेल-खिलौने, वो संगी-साथी बिछड़ गए भाई पर आज तक संग संग पाये , लगता है हम एक दूजे के लिये बने हैं ऐ परछाई .....। उम्र गुज़र रहीं , अपने पराये नज़रों में बसते गए बिछड़ते भी गए न जाने क्यूं तू करीब ही है कल भी आज भी शायद कल भी रहें..... । रंग बदला, रूप बदला हर शैली बदली, नियति से की इस जीवन की लड़ाई खुशियां हो या दुःख कुझ पलों के बाद छोड़ा साथ सभी ने, सबने जैसे मुझसे मेहमान गिरी निभाई ....। उथल पुथल भी होती रहीं जीवन-गाथा में, जब न सूरज था न चांद की चांदनी अपने पराये हो गए थे बेवफ़ा उस काली स्याह अंधेरे वक्त में साथ-साथ चलने वाली परछाई भी औरों की तरह हो जाती है बेवफ़ा .….…। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Parchhai कविता- परछाई..... सूरज के उदय ,चांद की चांदनी तक हमसफ़र मिल गया मुझे ,मिल गई मेरी परछाई । बचपन कहता ! जवानी भी दिखाती आई ? कोई