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Santosh Jangam
N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} * अंत में भगवान् श्री कृष्ण जी को स्मरण करते हुए मरने वाला निश्चय ही भगवान् को प्राप्त होता है। भोगों का स्मरण करते हुए मरने वाला निश्चय ही नरकों में जाता है। ©N S Yadav GoldMine #SAD {Bolo Ji Radhey Radhey} * अंत में भगवान् श्री कृष्ण जी को स्मरण करते हुए मरने वाला निश्चय ही भगवान् को प्राप्त होता है। भोगों का स्म
Krishna
एखादया व्यक्तीवर काही काळ प्रेम करणे हे केवळ आकर्षण असतं पण, एकाच व्यक्तीबद्दल कायम मरेपर्यंत आकर्षण असणे हे खरं प्रेम ❤️ असतं. ©Krishna #boatclub एखादया व्यक्तीवर काही काळ प्रेम करणे हे केवळ आकर्षण असतं पण, एकाच व्यक्तीबद्दल कायम मरेपर्यंत आकर्षण असणे हे खरं प्रेम ❤️ असतं.
@maya
इतने बेवफा नही हैं जो तुम्हे भुल जयांगे, अक्सर चुप रहणे वाले प्यार बुहत करते है...! ©@maya प्यार करणे वाले अक्सर खामोष राहते hai❤️❤️❤️
महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह
vjcgigfifififjfjfjgjgjfjgjgigkgkgkgkgkgkg ©महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या
महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह
Blue Moon nsjsjsjsjsjsjsnsnsnsjsjsjnsjsjsnsnsn ©महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह आंतरराष्ट्रीय सर्व मराठी भाषिक साहित्यिकांचे ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूहात ’ सहर्ष स्वागत आहे . ‘ महाराष्ट्राची साहित्यगाथा समूह ’ या
Dk Patil
AJAY NAYAK
वो शांत था वो रज रज में था वो विश्वास था वो सभी के मन में था वो हिंदवी स्वराज का संस्थापक था वो महाराष्ट्र का वीर सपूत था वो हिंद का चमकता सूरज था वो छत्रपति शिवाजी महाराज था। वो मावलों का सखा था वो दुश्मनों का दुश्मन था वो मैदाने जंग की ललकार था वो विश्वास की तलवार था वो दुश्मनों का भक्षक था वो संस्कृति का रक्षक था वो निश्चय का महामेरु था वो बहुजनो का आधार था वो अखंड भारत का संकल्प था वो छत्रपति शिवाजी महाराज था। वो एक भूतकाल है वो एक भविष्य की राह है वो एक सोच है वो एक आस की मूर्ति है वो एक लंबा संघर्ष है वो एक जीवंत उदाहरण है वो एक जाणता राजा है वो एक छत्रपति शिवाजी महाराज है। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #ShivajiMaharajJayanti वो शांत था वो रज रज में था वो विश्वास था वो सभी के मन में था वो हिंदवी स्वराज का संस्थापक था वो महाराष्ट्र का वीर स
#काव्यार्पण
तू बेलगाम सा घोड़ा है मै अनुशासन प्रिय नारी हूं तू बेशक गंदा पानी है मैं भागीरथी दुलारी हूं दो बोल जो मीठे बोल दिये तू सर पर मेरे बैठ गया कैसे तूने ये सोंच लिया मैं अब से सिर्फ तुम्हारी हूं। मेरे झुमके के उद्दवेलन से ये पवन सुहानी चलती है एक पल को मैं मुस्काऊं तब ये कच्ची कलियां खिलती हैं जब केश मेरे लहराते हैं तब काली घटा छा जाती है मेरे यौवन से ले सुगंध रति में सुंदरता आती है तू पाप की गठरी जोड़ रहा मैं पुण्य की भागीदारी हूं तूने जब मन को सहलाया मैं उस पल की आभारी हूं तू शहर का शोर शराबा है मैं गांव की कोयल प्यारी हूं। कैसे तुमने ये सोंच लिया मैं अब से सिर्फ तुम्हारी हूं। 2.तुम वर्तमान की कालिख हो प्रारब्ध की मैं पुरवाई हूं तुम आभासी प्रतिबिंब सदा मैं अंतस की गहराई हूं तुम धूं धूं कर के जलते हो मैं सरिता जैसी बहती हूं तुम टोंका टांकी करते हो मैं पृथ्वी सा सब सहती हूं गर लगे हमारे मुंह तो अब हम दुर्गा ही बन जायेंगे है यू पी पुलिस में धाक बड़ी ऐंटी रोमियो बुलायेगे मैं पति प्राइवेट सेक्टर हूं ना मैं जनहित में जारी हूं। कैसे तुमने ये सोंच लिया मैं अब से सिर्फ तुम्हारी हूं। 3. ना बातचीत का ढंग तुझे मैं कितनी ही मृदुभाषी हूं तू नॉनस्टॉप-सा म्यूजिक है मैं मौन की बस अभिलाषी हूं है नई नई तेरी दौलत इसलिए तुझे अभिमान हुआ मेरा परिवार सदा से ही संस्कारों से धनवान हुआ है नशा तुझे दौलत का तो ये निश्चय क्षीण हो जायेगा अपनी मृत्यु पर क्या फिर तू पैसे से भीड़ जुटाएगा है ब्राह्मण कुल में जन्म हुआ है गर्व मुझे संस्कारी हूं। कैसे तुमने ये सोंच लिया मैं अब से सिर्फ तुम्हारी हूं। 4.तुम चाइनीज मोबाईल हो और मैं एप्पल का ब्रांड प्रिये तुम बेशक बादशाह होगे मैं हनी सिंह की फैन प्रिये तुम कपिल की बकबक सुनते हो और मैं बिग बॉस की दर्शक हूं तुम खुद को सलमान समझते हो मैं तुमसे भी आकर्षक हूं हम सीतापुर वाले साहब कट्टाधारी कहलाते हैं यदि बात हमारे प्रेम की हो तो नतमस्तक हो जाते हैं चिंदी चोर चांदनी चौक के तुम मैं नैमिषधाम दुलारी हूं। कैसे तुमने ये सोंच लिया मैं अब से सिर्फ तुम्हारी हूं। कवयित्री - प्रज्ञा शुक्ला सीतापुर ©#काव्यार्पण #proposeday #kavyarpan #nojoto #sitapur #HappyRoseDay तू बेलगाम सा घोड़ा है मै अनुशासन प्रिय नारी हूं तू बेशक गंदा पानी है मैं भागीरथी
||स्वयं लेखन||
स्वांग रचकर, झूठ की दौड़ में जो रिश्तों को ना बांधना और न स्वयं बंधना जानती, रखती नहीं लालसा वो मूल्यवान साजो - सामान की, आत्मविश्वास से निखरकर चमक उठती है सत्य से परिपूर्ण उसकी बेबाकी। करती है पूरे स्वप्न स्वयं के घर भी बखूबी संभालना है जानती, नहीं सुनती तो केवल अनर्गल बातों की है मनमानी, यूं तो झुकती नहीं,करती नहीं जी हजूरी वो किसी की, हां लेकिन झुका देती है उसे रिश्तों, प्रेम और सत्य की मजबूरी। यूं तो फिजूल की बहस वो करती नहीं, मगर तर्क करने में पीछे भी रहती नहीं, पौरुषता के आगे नतमस्तक वो होती नहीं, मगर निस्वार्थ प्रेम के आगे है झुक जाती । दिखावे और छलावे से है टूट जाती, झूठे प्रेम के भावों से फ़िर नहीं जुड़ पाती। स्वाभिमानी नारी स्वाभिमान से है जीती, स्वतंत्र विचार रख प्रतिदिन आलोचनाओं से है गुजरती। दृढ़ निश्चय से आगे बढ़ हर दर्द पर है विजय पाती, है वो स्त्री स्वर्णिम आभा स्वाभिमान की स्वयं के लिए संयम से है लड़ती । ©||स्वयं लेखन|| स्वांग रचकर, झूठ की दौड़ में जो रिश्तों कोना बांधना और न स्वयं बंधना जानती, रखती नहीं लालसा वो मूल्यवान साजो - सामान की, आत्मविश्वास से नि